आन्हर घुमची

 

33a जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 

घेंटा मिमोरत

तोड़त – जोड़त

आपन –आपन गायन

अपने अभिनन्दन

समझवनी के बेसुरा सुर

बिना साज के

संगीत साधना .

 

झाड़ झंखाड़ से भरल

उबड़ खाबड़ बंजर जमीन

ओकर करेजा फारत

फेरु निकसत

कटइली झाड़

लरछे-लरछे लटकल पाकल

लाल टहक घुमची

अपने गुमाने आन्हर

दगहिल घुमची .

 

देखलो पर

अनदेखी करत

अनासे शान बघारत

बरियारी आँख देखावत

अनेरे तिकवत

बिखियायिल मुसुकी मारत

औंधे मुँह

धूरी में सउनाइल धुमची

 

 

 

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