– शिलिमुख
आम आदमी का नाँव प’ सत्ता पावे वाली पारटी के मुखिया, आम आदिमी क भला करसु भा ना करसु बाकि आम आदमी का टेक्स से कमाइल पइसा से आम मनई का संवेदना-सद्भाव क राजनीतिकरन त कइये देले बाड़न. शेखी बघारे आ आत्म प्रचार में त ऊ पहिलहीं से आगा रहल बाड़न. लोग कतनो चिचियाव, ऊ आपन जोतले रहिहन.
अपना वादा का मुताबिक बिजुली सस्ता त कर ना पवले, अब ओकरा प 100/- से लेके 500/- रुपया तक टैक्स लगा दिहले. वी.आइ.पी. तौर तरीका आ ठाट बाट से परहेज करे के बात अउर बा, अब ऊ अपना बिधायकन के चानी कटवावे पर उतारू बाड़न. एही से उनहन लोग क तनखाह एकठ्ठे 400 प्रतिशत करे क अनुमोदन कइले बाड़न. माने तनखाह एक लाख आ टी.ए., डी.ए. अलगा से. ईहे ना मँहगाई क खयाल राखत वाहन यानी गाड़ी घोड़ा क राशि 2 लाख से बढा के 12 लाख करे क फैसला कइलन.
लोभ-लालच, बाहबाही आ झुठिया समाजिक स्टेटस का चकरघिन्नी में पिसात एह महानगर दिल्ली में सुव्यवस्था आ सुशासन खोजे वाला समाज भकुवाइल बा कि जवन सत्यवादी हरिश्चन्द महराज सबसे अलगा, पारदर्शी राजनीति क दावा करत, भ्रष्टाचार मेटावे खातिर आइल रहलन, एघरी अपना दल आ अपना के चमकावे में लागल बाड़न; मय बिपक्षी पारटियन क मसीहा बने खातिर कबो थर्ड त कबो फोर्थ फ्रन्ट बनावे में बाझल बाड़न. अकेल का का करसु, आम आदमी ठहरलन, कबो चान कबो सूरुज पर टोन कसेलन, कबो समाजिक सौहारद का नाँव पर, हिन्दू मुसलमाँ, गाय -सूअर क दोहाई देत, अपना प्रचार खातिर सद्भावना बिज्ञापन देलन.
हाय-हाय रे मजबूरी, जीउ मानत नइखे, देश क सबसे बड़का नेता जे बने क सूर सवार बा. घर सम्हारस कि देश; बुझाते नइखे. लोभ-लालच, सबसिडी, पानी -बिजली फ्री बाँटे क जवाल अलगा चउँड़ धइले बा; दिमाग में रहि रहि ईहे खेयाल आवऽता कि जब जनते के पथभ्रष्ट कइल जा सकेला त का फालतू में समाजिक आ राष्ट्रीय “विजन” क बात सोचल जाव ? त रुपयवा फेंड़ पर फरे खातिर नया सोचान सोचे के परल. कहलन कि अब शराब रात भर बिकाये क छूट मिले के चाहीं आ पिये वालन क उमिर घटाइ के 21 बरिस कइ देबे के चाही. बस ई आम नाँव के आदमी “झूम शराबी झूम, रात दिन खूब नशे में झूम.” गावे लागी; “थोड़ी सी और पिला दे साकी” कहला क झंझटे खतम, फेर त एह ससुरन के रोटी दाल, पढ़ाई लिखाई, आ रोजी रोजिगार क चिन्तवे ना रही. मस्त आ पस्त परल रहिहें स.
बे नशा के ई सब संभव नइखे, कबीर बाबा झुठहीं थोरे कहले रहले “मन मस्त हुआ तब कयूँ बोले ?” जब मन टंच रही, त खुदे लोग अपना के शहंशाह बूझे लागी, आ “चाह गई, चिन्ता गई, मनुआ बेपरवाह” हो जाई. बड़ा सोचावट का बाद त “मेक इन इन्डिया” के काट “मेक-इन्डिया” भेंटाइल. एही आइडिया से “मेक पार्टी” होई ढेर चिन्ता आ चिन्तन क जरूरते नइखे, इहाँ त कानून बेवस्था ठीक करे का चक्कर में दू-दू गो कनून-मंत्री खुदे कनून का फेरा मे गँवावे के पर गइल. जवन रुचेला, तवने पचेला ;उनहूँ खातिर ठीक रही आ एह आम अदिमियो खातिर ठीक रही.