डा॰ हरिराम पाण्डेय के ‘कही-अनकही’ के लोकार्पण कइलन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल

by | Feb 15, 2014 | 1 comment

kahiankahi-lokarpan
पिछला दिने कोलकाता में ३८ वाँ लागल अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला के स्टाल नं॰ ३६२ पर कोलकाता के मशहूर हिंदी दैनिक सन्मार्ग के संपादक डा॰ हरिराम पाण्डेय के लिखल चुनिंदा संपादकियन के संकलन “कही अनकही” के लोकार्पण पश्चिम बंबाल के राज्यपाल एम॰ के॰ नारायण के हाथे भइल.

“कही अनकही” के एह संस्करण में साल २०१३ में लिखल संपादकीय बिटोरल गइल बा. अपना बेबाक, तटस्थ आ संवेदनशील लेखन ला डा॰ हरिराम पाण्डेय पत्रकारिता का दुनिया में अलगे से चिन्हाइलें. इहाँ के लिखल सपादकीयन के मुरीदन में बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी, प्रख्यात हिन्दी आलोचक डॉ.नामवर सिंह, डॉ.जगदीश्वर चतुर्वेदी, कवि केदारनाथ सिंह समेत अनेके साहित्यकार शामिल बाड़ें.

इहो जाने जोग बा कि बिहार के सिवान जिला के मूल निवासी डा॰ हरिराम पाण्डेय के संपादन काल में सन्मार्ग लोकप्रियता के शिखर छू लिहलसि. आ ओहु ले बड़ बात हमहन भोजपुरियन खातिर ई बा कि भोजपुरी अनुरागी पाण्डेय जी का चलते सन्मार्ग में हर हफता नियमित रूप से तीन गो भोजपुरी स्तंभ प्रकाशित होखेला. कोलकाता में भोजपुरी भाषियन के बड़हन मौजुदगी के ओह लोग का भाषा से जोड़े के प्रशंसनीय काम इहाँ का कइले बानी.

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1 Comment

  1. अमृतांशु

    डा॰ हरिराम पाण्डेय के बहुत बहुत बधाई….

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अँजोरिया के भामाशाह

रहिमन वो नर मर चुके ..... रहीम जी के एगो दोहा हऽ कि - रहिमन वो नर मर चुके जो कहूं मांगन जाय, उनके पहिले वो मुए जिन मुख निकसत नाहिं. बहुत शर्म का साथ कहे के पड़त बा कि हम ओह समाज से कुछ मांगल चहनी जवन कि ऊ देइए ना सकत रहे. करोड़ों भोजपुरियन में से लाख ना त हजार ना त कुछ सौ लोग त जरुरे रहल होखी जे अंजोरिया पर आइल होखी. भामाशाह बने के निहोरो पढ़ले होखी. कुल 13 गो लोग अइसन मिलल जे भामाशाह बने के दयाशीलता देखा सकल. आजु हम एह योजना के बन्द करे के एलान करत बानीं. ना चाहीं रउरा सभे से कवनो तरह के कवनो सहजोग. लिखनिहार के रचना ना चाहीं, पढ़निहारन के कमेंटो के जरुरत नइखे. आजु से अंजोरिया पर भोजपुरी के कवनो रचना भा एकरा से जुड़ल कवनो खबर प्रकाशित ना कइल जाई. स्वांत सुखाय लिखेनी, लिखत रहब. बाकिर अब से भोजपुरी में ना लिखब. अलविदा भोजपुरी ! भोजपुरी अमर रहे !
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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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