फगुआ के चकल्लस

– लव कान्त सिंह

फगुआ के शुरू हो गइल रहे चकल्लस
ऊ हमरा तरफ देखलस या कहलस
भइया जी हम तहरा के रंग लगायेम
हम कहनी, ओसे पहिले भाग जाएम।

हम भाग के गइनी दोसरा गली में
ऊ दउड़ल रंग लेले पिचकारी के नली में
लागल बांचल मुश्किल बा एह होली में
हम भाग के पहुँच गइनी रंग के टोली में।

उन्हां सब देखते आइल हुल
बगल में खड़ा रहे राहुल
उनका चेहरा पर कौनो अइसे रंग लगवले रहे
जइसे पप्पू के कवनो जबर्दस्ती पास करवले रहे।

सोनिया जी भी लाल-पियर होत रहली
ममता जी कुर्सीये पर ही सूतत रहली
जोर से चिल्लात कन्हैया नाम के बच्चा रहे
जवन पकौड़ी हम खइनी उ तनी कच्चा रहे।

मुलायम-बहन जी लाएल रहस अबीर अपना घर से
चुपचाप दुनो खात रहस सीबीआई के डर से
येचुरी-केजरी हंसत रहले मोदी जी के हाल पर
शायद चर्चा होत रहे जातिकार्ड के चाल पर।

वेटर के ध्यान ना रहे खाली हो गइल थाल पर
ऊ एकटक देखत रहे रहरी के दाल पर
योगी जी के हाथ रहे ओवैसी जी के हाथ में
दुनु ठंढाई पियत रहस दिग्गी-आजम के साथ में।

शीला-सोनिया-लालू शिवराज के होत रहे जश्न
जइसे सब घोटालन के हो रहल होखे मिलन
राहुल-तेजस्वी नाचत रहले डीजे के ताल पर
किसान के मौत बेअसर रहे गैंडा के खाल पर।

केजरीवाल बइठल रहस नजीब जंग के पास में
उनकर टीम पियत रहे शीशा के गिलास में
विश्वास कविता करत रहस स्मृति जी के बाल पर
अबीर के लाली फइलत रहे हेमा जी के गाल पर।

इहे रूप संसद में रहित तब सोंची का बात होइत
देश के तरक्की दिन दूनी चौगुनी रात होइत
नेतन के भी देशहित में एक साथे होखे के होई
होली से ही इंसानियत के मतलब सीखे के होई।

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