बाँड़ का जनिहें चोरउका के पीड़ा : बाति के बतंगड़ – 14

– ओ. पी. सिंह


मंगल का दिने मोदीजी फेरू एगो सर्जिकल स्ट्राइक मार दिहलें आ अबकी के हमला सीधे देश का हर घर, हर परिवार पर हो गइल. अबकी केहु के सबुतो माँगे के जरुरत ना पड़ल काहे कि हर घर के देवीजी लोग एह हमला से परेशान हो गइल बाड़ी. हमला त कइल गइल चोरी का धन पर, बाकि जौ का साथे घुनो पिसा गइल. चोरी क धन त आगा पाछा निकलीत, चोरउका के धन सबले पहिले निकल आइल. मोदी जी त कबो पर परिवार में ठीक से रहलन ना, बिआहो भइल त यशोदा के यशोधरा बना दिहलन. बेचारी के कबो मौके ना मिलल चोरउका बिटोरे के.
चोरी का धन प चोरो आपन हक ना माने, ओकरो मालूम होला कि ई अपराध के कमाई ह, बाकि चोरउका के धन पर बाकायदा हक मानेली मेहरारू लोग. एक तरह से ई परम्परा से चलत आइल हक ह ओह लोग के. आ जब कबो परिवार पर अचके में जरुरत आ पड़ेला त ई धन अमृत बनि के सामने आ जाला. हमरा याद बा लइकाईं में जब कबो बड़का बाबूजी के अचके में कुछ रुपिया के जरूरत आ पड़े त हमरा के एह काम प लगा दिहल करीं. आ हमहुं माई, चाची, भउजाई लोग का लगे से चोरउका के ई धन बटोर के बाबूजी के समस्या हल करा देत रहीं. बस ई ना बतावत रहीं कि केकरा से कतना मिलल बा. आ बाद में बड़का बाबूजी से ले के सबका के लवटा देत रहीं.
मोदी जी जब पाँच सौ आ हजार के नोट बन्द करे के एलान क दिहलन त कारोबारी आ कालाबाजारी चिन्ता फिकिर में डूब गइलन. आ साथे परेशान हो उठली गृहलक्ष्मी लोग. संयुक्त परिवार त गिनले चुनल रहि गइल बाड़ी सँ. अधिका परिवार एकल परिवारे रहि गइल बाड़ें. एह व्यवस्था में चोरउका के धन लुकावल संभव ना रहला का चलते सबके अपना एह धन के खुलासा करे के पड़ गइल. सोनारो का लगे जाए के मौका ना रहि गइल रहुवे. काहे कि एलान ओह बेरा भइल जब ई लोग चुल्हा चउका में अझूराइल रहल. चोरउका के एह अर्थ व्यवस्था के समुझे में नीमन नीमन अर्थशास्त्री चकरा जइहें. ई अर्थ व्यवस्था संकट के ओइसनो घड़ी में काम आ जात रहल जब बैंक आ एटीएम के सुविधा मिले क संभावनो ना रहत रहल.
एह चोरउका के धन का अलावे घर का मुखिया लगे कुछ लुकावल धन रहेला जवन एडमिशन करावे के समय कामे आवे. एडमिशन चाहे स्कूल कॉलेज में करावे के होखे भा अस्पताल में.
कोढ़ में खाज करत सगरी बैंकन आ एटीएमनो के बंद करा दिहल गइल आ अगिला दिने के आपाधापी के अनुभव अब से सौटकिया में एह धन के राखे ला मजबूर करा दी. दूध के जरल लोग अब मट्ठो फूंक के पीयल करी. का जाने कब नयका दू हजारी नोटो बन्द हो जाव.
आम जनता एह एलान के करिया धन पर सर्जिकल स्ट्राइक के नाम दे दिहलसि बाकि मोटका माल धइले लोग के सरापल देखल बनत बा. एगो अपवाद छोड़ कवनो बड़का नेता एह मुद्दा पर खुल के विरोध ना कइले. काहे कि सभे जानत बा कि विरोध कइला क मतलब जनता का बीच गलत सनेसा चहुँपल होखी. जनता जानत बिया कि अचके भइल एह एलान से जाली नोट के कारोबारी, बम इंडस्ट्री क कारोबारी, आ आतंकियन के त धंधे चउपट हो गइल बा. एह माहौल में एह फैसला क विरोध कइला क मतलब आपन छवि अपने खराब कइल हो जाई.
सोशल मीडिया त अतना गह गह बा कि पूछीं मत. ओकरा लागत बा कि नीमनका दिन आखिर आइये गइल. जेल खोल दीं बाकि कैदी ना भगीहें आ अब तिजारी खोल के राखीं तबो डकैत ना ले जइहें. अफसोस बा त बस ओह लोग के जे 30 सितम्बर वाली ट्रेन छोड़ दीहल. ओह दिन पैंतालिसे फीसदी देबे के रहुवे आ अब नब्बे फीसदी देबे के पड़ी. अलगा बाति बा कि अनुभव इहे बतावेला कि अगलगी में कुकुर ना जरऽ सँ.

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