दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को देश की सर्वोच्च अदालत ने दस लाख रुपये का बेलबाण्ड भरवाने के बाद जमानत तो दे दी पर रोक लगा दी उनके मुख्यमंत्री कार्यालय या सचिवालय जाने पर. यह भी कहा कि मुख्यमंत्री किसी भी सरकारी आदेश पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे जब तक ऐसा करना अत्यन्त आवश्यक न हो जाय.
सरदार भगत सिंह से अपनी तुलना करने वाले स्वघोषित कट्टर ईमानदार ने आज अपने दल की सभा में घोषणा कर दी कि वह दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे देंगे. इतने दिन तक जेल में रहने के बाद भी दिल्ली सरकार को नेतृत्वविहीन बनाए रखने वाले केजरीवाल कि ये दो दिन चाहियें क्यों ?
क्या इस लिये कि वह इस बीच अपने दल में नेतृत्व का चयन करवा सकें या इस लिये कि दो दिन तक अपने दल की तरफ से दबाव की नौटंकी बना कर अपना निर्णय बदल देने की योजना है.
केजरीवाल देश के ऐसे अभूतपूृ्र्व या यों कहा जाय तो न भूतो न भविष्यति वाले नेता रहे हैं. पहले उन्होंने कहा कि वे राजनीति में नहीं जायेंगे. आ गये. फिर कहा कि कांग्रेस से समझौता नहीं करेंगे. किया. कहा कि सरकारी बंगला या गाड़ी नहीं लेंगे. लिया. क्योंकि ऐसा करना दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिये आवश्यक था. फिर कोविड के दौरान अपने लिये ‘शीशमहल’ बनवा लिया.
जिनको हमेशा गाली देते रहे उनके साथी हो गये. अब त्यागपत्र दे ही देंगे ऐसा भरोसा किसको हो सकता है. चलिये दो दिन देख ही लिया जाय.