– डॉ० उमेशजी ओझा
मिठू आपन हाथ पीछे कइले हाथ में देवी माई के पूजा कइल परसादी लिहले जइसही अपना घर का डेवढ़ी प खाड़ भइले, ओसहि ऊ अपना सुनयना चाची के चिल्लात सुनले कि – “ई दोसरा के ना ओहि नालायक मिठुआ क काम ह. उहे बक्सा खोलके खुचुरा एक एक क 200 रोपया क चोरी कइले बा. ना त का हो गइल सब पइसा, का ऊ सब पइसवन के पांखी लाग गइल ? ऊ अपने से उड़ गइल बाडे़ स ? घर के बाहर खेत के मेड़ प मिठू के आवत देखते, सोनू, सरिता, गंभीर, एके साथे चिलऽइले स – माई…………….माई………….भइया आ गइले.
“आवत बानी रुकऽ, “ हाथ में एगो छड़ी लिहले सुनयना एके सांस में लपकत मिठू के लगे पहुच गइली.
चाची के बोली सुनत मिठू भींजल बिलाऊ बनल, परसादी के दोना पीछे हाथ में पकड़ले, मुड़ी नीचे गोतले पीछे दिवार से सट के खाड़ हो गइले. अइसन बुझात रहे कि ऊ कवनो वार सहे के तैयार होखस.
“काहे रे, पइसा चोरा के कहाँ-कहाँ से मउज मस्ती कऽ के लवटल बाड़े ? छड़ी के हवा में लहरावत मिठू से सुनयना पुछली.
बाकी उत्तर में मिठू कुछ बोले के बजाय आपन मुड़ी अवरु गाड़ लिहले.
“चोर-उच्चका कहीं के…………, ना जाने का बोल दिहली. ओकरा बाद, दे दनादन छड़ी मिठू प बरसावे लगली. मंजू हाँफत कसहूं कोठा से चिलइली “ओकरा के मारऽ मत दीदी, हमारा लगे बोलावऽ त सही, देखीं का बात बा.”
बाकी सुनयना मंजू के कवनो परवाह कइले बिना, सभ पड़ोसी पटीदारन के सुनावत बोलऽली “ मारब. काहे ना मारब ? मारब ना त पूजा करब एके ? तहरे शह आउर दुलार के नतीजा ह कि आजू एकर अतना हिम्मत बढ़ गइल बा.” – कहत कहत हांफे लगली सुनयना.
थोड़ देर सुस्तइला के बाद सुनयना मिठू के कान पकड़ि के खींचत कहली “चल उच्चका.” फेरु अतना जोर से धक्का दिहली कि मिठू के हाथ से परसादी के दोना दूर फेंका गइल. परसादी जमीन प छितरा गइल.
आपन आँख तरेरत छींटा कशी कइली कि “बाप रे बाप कतना जलीया बा ? चोरी क के आइल बा. कतना सोझबक निहन कइले बा. तनिक देखऽ त.”
मंजू , सुनयना के रोकली – “ओकरा के हरदम चोर मत कहऽ, दीदी, ओकरो त सुनऽ ऊ का कहत बा ?
मिठू एकदम पत्थर बनल खाड़ रहल. लोर एको बूंद ओकरा आँखि से ना गिरल रहे. देर रात तकले मारी खइला के बाद मिठू अपना माई से अतने कहले कि उ चोरी नइखन कइले. सबेरे जवन पइसा सरकस देखे के लेले रही ओही पइसा से तोहरा के ठीक करे खातिर काली माऊ के परसाद चढ़ा के ले आइल बानी.
अब मंजू के सबेरे के हाल सिनेमा के रील निहन उनुका आँखि के सोझा नाचे लागल. आ अपना दुलारा बेटा के पकड़ि के रोए लगली.
सबेरे सबेरे सरिता “माई….माई….खाना द इस्कूल जाये के बा.”
“काहें रे ? अबहीं बजले कतना बा. इस्कूल त दस बजे से नू बा.?”
“दस बजे से त बा, बाकि, आजु हमनी के इस्कूल में सरकस आवत बा, जल्दी जाइब जा त आगे जगह मिली. ना त जगह भर ना जाई ?” मिठू अपना माआ के दवाई लेबे गइल रहल. दवाई लेके आइल त उनुकर सभ भाई बहिन सरकस देखे खातिर ५०-५० रुपया लेके इस्कूल चल गइल रहले. मिठू दवाई लेके अइले त उनका भेंट अपना चाची से भइल.
मिठू “ चाची…….चाची, जल्दी खाना द. अवरु ५० रुपया, आजु सरकस देखे के बा. सुनयना जान बुझ के अनसुना क के नहाए चल गइली. मिठू जल्दी से खाना खा लिहले अवरु चाची नहा के निकलली त मिठू के पइसा दे दिहली. मिठू जल्दी से इस्कूले भागल.
मिठू घर से निकलिके इस्कूल ना गइले. ऊ सीधा बस पड़ाव ओरी चल दिहले. बस पड़ाव पहुच के झटपट टिकट लेके अपना सीट प जाके बइठ गइले. दुसरके पड़ाव त जायेके रहे. बस चल पड़ल. बीतल रात के देखल सपना मिठू के दिमाग में फिरे लागल. ऊ सपना देखले रहल कि उनुका माई के उजर कपड़ा में लपेटल बा आ फेरु बांस के खटिया प सुता दिहल गइल बा. तबहीं मिठू के आखिं में लोर आ गइल. ना…….ना……. अइसन कबो ना होखे देब. आ ओही रात के मिठू भारा भाखि देले रहल. सबेरे होत ऊ काली माई के जा के परसाद चढ़इहे. आ ओहिजा से परसाद लेआ के अपना माई के खिअइहें. उहे आपन भारा उतारे काली माई के लगे चल देले रहन. मिठू अपना घर में काम करेवाली के मुँह से काली माई के कथा सुनले रहल कि जेकर कवनो मानता होखेला ऊ काली माई लगे जा के मांगेला त ऊ पूरो हो जाला.
ऊ सोचत रहल कि सरकस त उनका बढ़िया ना लागेला, जब तकले सरकस ख़तम होई तब तकले काली माई किंहा से परसादी चढ़ा के आ जाइब, कानो कान केकरो खबरो ना होई. चाचिओ के ना होई. बाकी एकरा खातिर मारो खाए के पड़ी त खा लीहल जाई. बाकी माई त बढ़िया हो जाई.
ई सभ मिठू जब अपना माई से बतवले त उनुका माई के करेजा फाटे लागल. आपन बेटा के माई दुलार देखिके ऊ मिठू के पकड़ के ना जाने कब तक रोअत रह गइली.
देखीं आदमी जब सगरो से असहाय हो जाला, सब राह बन्न हो जाला तब एके सहारा भगवान के रह जाला. आपन सरधा आ भक्ति सभ तरह से भगवान के चढ़ा देला.
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डॉ0 उमेशजी ओझा
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