शास्त्रन में तीज के हरितालिका नाम से जानल जाला. “हरितालिका” शब्दो एह ब्रत खातिर खूब प्रचलित बा. भादो का अँजोर में तृतीया तिथि1 के एकर अनुष्ठान कइल जाला. पति खातिर ‘तीज’ आ बेटा खातिर ‘जिउतिया’ से बड़ ब्रत ना मानेलिन मेहरारू लोग. ई मान्यता बा कि अखंड सौभाग्य खातिर सभ स्त्री लोग एह ब्रत के करेली. अइसन मानल जाला कि एह ब्रत के सबसे पहिले पार्बतीजी भगवान शिव के अपना पति का रूप में प्राप्त करे खातिर कइले रही. तबे से एह ब्रत के प्रचलन शुरू हो गइल. कहीं-कहीं एह ब्रत के कुँआर लइकिओ करेली सन जेहसे उहनी के मन लाएक पति मिल सके, बाकिर अइसन बहुत कमे सुने के मिलेला.
एह ब्रत के नामकरण के कारण “हरितालिका ब्रतकथा”2 में एह प्रकार बतलावल गइल बा – “अलिभिर्हरिता यस्मात्तस्मात्साहरितालिका”3. माने भगवान शिवजी पार्वती जी से कहतानी कि तोहरा के दुखी देखि के तोहार सखी सभ तोहराके जंगल में हर ले गइल रही सन, एही से एह ब्रत के नाम हरितालिका परल. तीज के ब्रत निर्जला आ निराहार रहिके कइल जाला. रात में शिव-पार्बती जी के पूजन कइल जाला. कई गो स्त्री मिलिके एक साथ पूजन करेली आ रात्रि-जागरण करेली. दोसरा दिन अन्न-जल से पारन कइल जाला. एह दिन गोझिया, अनरसा का साथ-साथ तरह-तरह के पकवान आ मिठाइओ चढ़ावल जाला. तीज से एक दिन पहिले के सँझवत के नहा-खा होला, जब नहा-धोके नीमन से शुद्ध भइला का बादे बिना प्याज-लहसुन के बिल्कुल शाकाहारी सात्विक खाना खाइल जाला.
तीज के कथा
पौराणिक मान्यता का अनुसार देवी पार्बतीजी भगवान शिवजी के अपना वर का रूप में प्राप्त करे खातिर तीज के ब्रत कइले रहली. महाराज हिमालय अपना बेटी पार्वती के बियाह सप्तर्षि लोग का आग्रह पर भगवान बिष्णुजी से तय क देले रहन. ई जानकारी मिलला प पार्वतीजी बहुत दुखी भइली काहें कि ऊ शिवजी के अभिन्न अंग हई, आदिशक्ति हई, नित्य शिवसंगिनी हई, संहारक देव शिव के संहारिका शक्ति आउर ऐश्वर्यशालिनी हई आ सबसे बड़ बात कि शिवजी से प्रेम करत रही. उनका सखियन से उनकर दुख बर्दाश्त ना भइल त ऊ पार्वतीजी के जंगल में भगा ले गइली सन, जहाँ ऊ खूब तपस्या कइली. ओ जंगल में नदी किनारे बालू के एगो शिवलिंग बनाके जंगली फूल, बिल्वपत्र आदि से पूजा कइली. रात-दिन भूखे-प्यासे रहिके जंगल में शिवलिंग के सामने शिवजी के ध्यान करत बहुत दिन गुजार दिहली ऊ. उनका अटूट भक्ति से खुश होके एक दिन शिवजी उहाँके इच्छा पूरा होखे के बरदान दिहलीं. जब पार्बतीजी भगवान शिवजी के अर्धांगिनी भइलीं त उहाँसे प्रार्थना कइलीं कि कवनो अइसन ब्रत बताईं जवना से मनुष्य के सभ मनोकामना पूरा होखे. तब भगवान शिवजी उहाँके तीज के पावन ब्रत बतवलीं, जवना से पार्बतीजी भगवान शिवजी के प्राप्त कइले रहीं.
संदर्भ :
- तीज व्रत खातिर शास्त्रोक्त तिथि निर्णय-
भाद्रशुक्लतृतीयायां हरितालिकाव्रतम्. तत्र परा ग्राह्या. मुहूर्तमात्रसत्वेऽपि दिने
गौरीव्रतंपरे.
“चतुर्थीसहिता या तु सा तृतीया फलप्रदा.
अवैध्यकरा स्त्रीणां पुत्रपौत्रप्रवर्धिनी.”
“ भाद्रे मासि सिते पक्षे तृतीया-हस्तसंयुते.”
- शिव पुराण में वर्णित उमा-महेश्वर प्रसंग का अंतर्गत उमा(पार्वती) के अनेक बरिस ले कठिन तपस्या के बरनन मिलेला.
- यस्मात् कारणात् ( नारद-हिमालय संवादे प्रातिकूल्यत्वात् शिवस्य स्थाने विष्णुना सह विवाह)
तस्मात्(अनुकूलतां प्राप्त्यर्थम् पार्वती-शिवविवाहपरिणामरूपनिर्णयात् नित्यसम्बन्धत्वात् .)
व्रती का संदर्भ में-
यस्मात् – उभया सह महेश्वर: सानुकूलं भवेत् .
तस्मात् – स्त्रिय: सर्वप्रयत्नेन सदा व्रतं कुर्यु: .