– अशोक शर्मा ‘अतुल’
के भगवान के देखले बा? सवाल बड़ा सरल बा, जवाब ओतने जटिल. केहू कही – मंदिर में देखले बानी, केहू कही – चर्च में, केहू कही – आपना गुरु में, आपना पीर में, चर्च में. बाकिर सांचहूं केहू देखले बा भगवान के?
ई बात सभे जानऽता कि धरती, आकाश, पाताल, नद-नदी, सुख के बाद दुख, दुख के बाद सुख, जीवन-मरण होता त जरूरे कवनो शक्ति ओकरा पीछे बा. जदि आदमी के बस में रहीत त केहू मरबे ना करीत, केहू बेमार ना पड़ीत. एह संसार के सब किरिया-करम के विधान केहू के हाथ में बा. ओही शक्ति के लोग भगवान कहेला.
तनि अउर सीध भाषा में कहल जाव त भगवान के मतलब भइल कि जेकर आराधना, पूजा-पाठ, जेकरा से सनेह-पीरित से राउर दिल-दिमाग खुश होखो, राउर सरधा पूरा होखो, उहे भगवान ह. माई-बाप के असीरबाद, भाई-बहिन के दुलार, इयार-महिम के साथ…. गरमी में बरखा, ठंडा में सूरूज देव के ताप, रात के बाद दिन, दिन के बाद रात…प्रकृति के नियमित चक्र.
मुस्की मारत बालक के देख थाकल हारल जांगर में ऊर्जा भर जाव, मन आनंद से खिल उठो, जेकरा दर्शन से जीवन सुख से भर जाव, भोर के किरिण देख आशा के संचार हो जाव, आफत-बिपत में माई-बाप के साथ, गुरु के किरिपा. ई सब का ह? ईहे त भगवान ह?
का हिंदू, का मुसलमान, का ईसाई भा दुनिया के कवनो धरम भा जात, सब केहू भगवान के मानेला. केहू राम कहेला, केहू रहीम, केहू मसीह. केहू के मानीं, पूजा करीं, मतलब त जीवन सुखी-सार्थक बनावे से बा. छठि माई, संतोषी माई, नेटुआवीर बाबा, गढ़ी माई, डीह बाबा, फलनवां मजार….आस्था के जाने केतना नाम. केकरा में भगवान देखाई दे देस, एकर कवनो खास मायने नइखे, सबसे बड़हन बात भगवान में आस्था के बा.
कबीर बाबा कहलहीं बानीं – हममें तुममें खड़ग खंभ में, घट-घट व्यापे राम. माने हर जीव, हर पदार्थ में भगवान बानीं.
कुछ दिन से भगवान के परिभाषा पर बहस छिड़ल बा. देश के एगो बड़हन जानल-मानल संत स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंदजी के कहनाम बा कि हिंदुअन के शिरडी स्थित साईं बाबा के पूजा-पाठ ना करे के चाहीं, काहे से कि उहां के भगवान ना हईं. देश-विदेश के लाखों भक्त बाड़न जिनका साईं बाबा भगवान बुझालें. साईं भक्त कबो ना कहलें कि दोसरो लोग साईं बाबा के भगवान मान के पूजा करो. हर आदमी के अपना सरधा, आस्था से केहूओ के पूजा करे के अधिकार बा.
स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंदजी के साईं बाबा पर दिहल बयान के का मतलब, उहेंके जानीं. साईं होखस भा केहू अउर? एहसे ना हिंदू धरम के कवनो खतरा बा ना कवनो पंथ-समुदाय के. ओइसहूँ हिंदू एगो धरम भा मत ना ह. ई त जीवन जीए के तरीका ह.
हिंदू धर्म में मान्यता बा कि सत्य एके होला. विद्वत समाज अलग-अलग से एकर बखान करेला. “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।’ एकर माने भइल कि परमात्मा यानी भगवान एके हउअन, नाम अलग-अलग हो सकेला. जब नाम अलग होई त रूपो अलग होखल जरूरी बा. एही तत्त्व के कारण हिंदू धरम में करोड़ों देवी-देवता पूजाला लोग. खाली रूप आ नाम अलग बा, बाकिर आराधना ओही एकही भगवान भा ईश्वर के होला, जेकरा से ई जीव-जगत बा. अपना रुचि का हिसाब से सभकरा आपन ईष्ट (भगवान) चुने के हक बा.
अशोक शर्मा ‘अतुल’
उप-समाचार संपादक, दैनिक पूर्वादय
मोबाइल 98642-72890
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