( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )
धारावाहिक कड़ी के छठवां परोस
( पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)
इहे बाति ऊ बांसगांव जा के बाबू जी के बतवलन त ऊ कहलन, मुश्किल त बहुते बा रमेश, बाकिर आजमा लेबे में कवनो हरजा नइखे.’ कहलन, ‘कहबऽ त खेत-बारी बेचियो के तोहरा के फेर से पढ़ाएब.’
‘ना, एकर जरुरत शायद ना पड़ी.’ कहिके ऊ बाबू जी के गोड़ छुवलन आ शहर चल गइलन. पुरनका साथी-संगतियन के खोजलन. एकाध गो कोचिंगो सेंटर पर गइलन. फारम-वारम के पता लगवलन. कुछ किताब आ नोट्स जुगड़लन आ प्राण-प्रण से ऊ पढाई में जुट गइलन. फेर मुंसिफ़ी अउर एच.जे.एस दुनु के फारम भर दिहलन. यू.पी., एम.पी., बिहार, राजस्थान तमाम जगहन से. बहुते पईसा खरच हो गइल. कोचिंगो में पइसा खरच भइल. बाकिर ऊ एकर फिकिर ना कइलन. बाबू जी के आशीर्वाद अउर मेहरारु के समर्पण भरल प्यार रंग देखवलसि. ऊ दू जगहा से मुंसिफ़ी आ एक जगहा से एच.जे. एस. के रिटेन में आ गइलन. बाकिर एह बाति के केहू के बतवलन ना. सोचलन कि चुनइला का बादे केहू के बतइहें ना त बिना वजह छीछालेदर होखे के अनेसा रही. रमेश के मेहरारू छोड़ ई बाति केहू ना जानल. आ दुर्भाग्य देखीं कि ऊ तीनो जगहा छँटा गइलन. ऊ तनिका हताश त भइलन बाकिर टूटलन ना. कहलन, ‘एक-दू बेर अउर ट्राई करऽतानी. कानफिडेंस गेन करे में त तनिका समय लागहीं के बा.’
‘हँ. रउरा त कहलहीं रहीं कि दू-तीन बरीस लाग जाई.’
‘हँ.’
एहि बीच रीता के बिआहो एगो इंजीनियर से तय हो गइल. धीरज आ तरुण दुनु मिल के खरचा-वरचा कइॢलन. विनीतो थाईलैंड से आइल शादी में शामिल होखे. आ बाबू जी से कहलसि, ‘अब तरुणो के बिआह करिए दीं. जेहसे ऊ बाद में ना कहे कि हमरा बिआह में ना अइॢूलू. बेर-बेर आवे-जाए में खरचो बहुत होखेला.’
‘अरे अबहीं रितवा के त हो जाए द.’ बाबू जी कहलन, ‘फेर तरुणो के सोचल जाई.’
रीता के बिआहो में लोग देखल कि रमेश आ उनुका मेहरारु के घर परिवार अनठियाहीं के रखलसि. एगो पट्टीदार खुसफुसइबो कइलसि, ‘एह घर में जेकरा लगे पइसा नइखे, ओकर कवनो इज़्ज़त नइखे.’ तबहियों रमेश के चेहरा विनीता के बिआह लेखा धुआं-धुआं ना लउकल. तनिका कानफिडेंस झलकल. रमेश के ई कानफिडेंसो लोग के रास ना आइल.
एक जने कहलन, ‘थेथर हो गइल बा आ बेशर्मो !’
रमेश के मेहरारू ई बात सुनियो के अनसुन कर दिहली. बहिनो सब रमेश आ उनुका मेहरारू के बहुत भाव ना दीहल. हालां कि रमेश कोशिश कइलसि कि जल्दी केहू का सोझा ना पड़े से ऊ अनजानल बरातियने का देख-रेख में लागल रहल. आ बारात विदा भइला का संगही गोला लवटि गइल. सपरिवार.
दोसरका बेर ऊ फेरु तमाम जगहन के फारम भरलसि. बाकिर अबकी के इम्तिहान में ऊ कतहीं रिटेनो में ना आइल. अब ओकर टूटे के बारी रहुवे. मेहरारु के पकड़ि के ऊ खूब रोवलसि. बाकिर मेहरारू उनुका के ढाढस बंधवलसि. आ रमेश फेरु तइयारी में लाग गइलन.
हालां कि आर्थिक स्थिति पूरा डांवांडोल हो चुकल रहुवे. छुटपुट कर्जो केहू ना देव. मेहरारू के सगरी गहनो बिका गइल रहुवे. बाकिर रमेश के मनोबल ठाढ़ रहुवे. बाबू जी के प्रैक्टिसो डांवांडोले रहुवे. ओने ओमई अब कवनो मंत्री से सिफ़ारिश लगवा के सरकारी वकील बन गइल रहल. बाबू जी के अउरी परेशान करे लागल रहुवे. घर के खरचा धीरज आ तरुण के मदद से चलल रहे. राहुलो तरुण का साथही रह के पढ़े लागल. बांसगांव में अब बाबू जी, अम्मा अउर मुनमुन रहि गइलें. मुनमुन अब इंटर में रहुवे. रमेश के मन में आइल कि धीरज आ तरुण से उहो कुछ दिन ला खरचा मांग लेव बाकिर ओकरा ज़मीर के गवारा ना भइल. आखिरकार मेहरारुवे नइहर गइल आ मायका अउर भाइयन से थोड़-थोड़ क के कुछ पइसा ले आइल. कुछ किताबन आ कोचिंग के खरचा के काम हो गइल.
रमेश तय क लिहलसि कि अब की जे अगर ना सेलेक्ट भइल त सपरिवार ज़हर खा के सूत जाई. अइसन खबर ऊ जब-तब अख़बारन में पढ़त रहुवे. गिरधारी राय कबो-कभार भटकत-फिरत गोला चलि आवसु. रमेश के ज़ख़्मन पर नून छिटे. एक बेर अइलन त रमेश से कहलन, ‘सुनऽतानी जे आजु-काल्हु तू कचहरिओ नइखऽ जात ? मेहरी का कमाई पर खटिया तूड़त रहेलऽ. अइसे कब ले चली ?’
रमेश चुपे रहल. कुछ बोललसि ना. बोलल ऊ तहिये जहिया एच.जे.एस. में ऊ फाइनली सेलेक्ट हो गइल. सब से पहिले ऊ मेहरारू का संगे मंदिर गइल. फेर बांसगांव गइल आ अम्मा बाबू जी के गोड़ छू के कहलसि कि, ‘आशीर्वाद दिहीं. एच.जे.एस. में चुने गइल बानी.’ मुनक्का राय लपकि के रमेश के अंकवारी बानसह लिहलन. कहलन, ‘आजु हम तोहरा संगे कइल अपराध से मुक्त हो गइनी.’ अम्मा एच.जे.एस. के माने ना बूझलसि आ तब मुनक्का राय आपन छाती चौड़ा करत बतवलन कि, ‘अरे जज के नौकरी पा गइल बा.’ त ऊ मारे ख़ुशी के रोवे लगली. कहली, ‘एहू उमिर में जज के नौकरी मिल जाले ?’
रमेश के मेहरारू हँकारी भरत मूड़ी हिलवलसि. त ऊ रमेश के मेहरारू के अंकवार भरत रोवे लगली. मुनक्का राय कहलन, ‘ई भरत मिलाप बंदो करऽ आ आस-पड़ोस में मिठाई बँटवावे के बंदोबस्त करऽ.’
कह त दिहलनि मुनक्का राय, फेर ध्यान आइल कि अतना पइसा होखबो कहां करी ? बाकिर रमेश के अम्मा कोठरी में जा के संदूक खोलली आ आपन चोरउका में राखल पईसा मुनमुन के देत कहली कि, ‘पांच किलो लड्डू ले आवऽ.’
लड्डू बंटतहीं बांसगांव में सभका ख़बर हो गइल कि मुनक्का राय के बड़को बेटा जज हो गइल. जब केहू ई सूचना गिरधारी राय के दीहल कि रमेशवो एच.जे.एस. में सेलेक्ट हो गइल त ऊ उनुकर मुंह बवा गइल. कहलन, ‘एच.जे.एस. मतलब?’
‘हायर ज्यूडिशियल सर्विस!’
‘त हाई कोर्ट में जज?’ ऊ करीब बौखला गइलन.
‘अरे ना भाई, रउरा त एल.एल.बी. पढ़ल हईं, अतनो ना जानीं ?’
‘ना भाई, बतावऽ त ?’
‘अरे सीधे एडिशनल जज होखी, मुंसिफ़-वुंसिफ़ ना.’
‘अच्छा-अच्छा।’ उनुका तनिका संतोष मिलल, ‘हाई कोर्ट में ना नू !’
‘ना.’
जइसे धीरज के पी.सी.एस. होखला पर बांसगांव झूम गइल रहल, अख़बारन में ख़बर छपल रहुवे, वइसन कुछ त रमेश के एच.जे.एस. होखला पर ना भइल बाकिर मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट जरूर मुनक्का राय का घरे अइलें, बधाई देबे. रमेश से ऊ ‘सर-सर’ कहत मिलले आ कहलें, ‘का मालूम सर, कहियो रउरा संगे काम करे के मौका मिल जाव हमरो’
‘बिलकुल-बिलकुल।’ रमेशो उनुका से मन से मिलल. भाइयन के जब पता चलल त सभे फ़ोन क के रमेश के बधाई दीहल. विनीतो थाईलैंड से फ़ोन कइलसि. भाई सब बाद में बांसोगांव आइलें. फेर एकदिन रमेश अपना मेहरारू से कहलसि, ‘चलऽ अब गोला चलल जाव.’
‘अबहियों गोले?’मेहरारू जइसे मना कर दिहलसि.
‘चले के त पड़बे करी.’ रमेश बोलल, ‘अबहीं सेलेक्शन भइल बा बाकिर हमार अगिन-परीक्षा खतम नइखे भइल.’
‘मतलब?’
‘अबहीं ट्रेनिंग के बोलावा आइल बाकी बा, पता ना जाने कहिया आई. हो सकेला कुछ महीना लागि जाव. का पता कहीं बरीसो लागि जाव. फेर ट्रेनिंग होखी, तब कतहीं पोस्टिंग !’ ऊ कहलसि, ‘तबले एहिजा का कइल जाई?’
रमेश गोला पहुंचल तबले भाया बांसगांव ओहिजा के वकीलन में ई ख़बर पसज चुकल रहुवे. छोट जगहन के इहे त सुख होला कि तनिको अच्छा ख़बर मिलते एक-एक आदमी जान जाला. ओकरा देखे के नज़रिया बदलि जाला. अब रमेश गोला में वकील साहब से जज साहब बन चलल रहुवे, अइसन जज जेकरा के केहुओ छू के देखि सकत रहे. ना त, छोट का बड़को जगहन पर आम लोग जजन के परछाईहों ना देखि पावे. ओने रमेश के मेहरारू का स्कूलो में उनुकर इज़्ज़त बढ़ गइल रहुवे. उनुकर प्रमोशनो हो गइल. ऊ अब मस्टराइन भा वकीलाइन से जजाइन बन गइल रहुवी. लोग खुद ही कहे, ‘हँ भई जजाइन तो अब एहिजा कुछ ही दिन के मेहमान बाड़ी.स’
बाकिर दिल्ली रहल कि दूरे होत जात रहल. ट्रेनिंग में बोलावा के इंतज़ार लमहर होत जात रहुवे. एने माली हालत निरंतर बिगड़ल जात रहुवे. जज बनला के उछाह पइसा के अभाव में टूटल जात रहुवे. ख़ैर, कुछ महीना बाद ट्रेनिंग के लेटर आइए गइल. ट्रेनिंग का बाद पोस्टिंगो हो गइल. रमेश परिवार अउर सामान ले जाए गोला गइलन. गाढ़ समय में दीहल मदद ला सभका के धन्यवाद दिहलें. मेहरारू के स्कूल वालन के मन राखे खातिर ऊ उनुका स्कूलो में गइलन. एगो छोट-मोट अभिनंदन समारोहो हो गइल उनुकर. अपना संबोधन में ऊ अपना सफलता खातिर एह स्कूलो के योगदान रेघरियवलन. कहलन कि, ‘हमार प्रैक्टिस त कुछ ख़ास चलत ना रहुवे. बाद का दिने त हम कचहरिओ ना जात रहीं. त एह स्कूल में इनिका नौकरिए से हमार गृहस्थी, हमार रोटी-दाल चलत रहुवे. एह स्कूले का कारण हम सीना तान के जी पइनी आ एहिजा ले आ पइनी. एह स्कूल के हम भर जिनिगी ना भूलाएब. रउरो सभे, जबे याद करब, बोलाएंब त हम हमेशा-हमेशा रउरा सभ का लगे आएब, रउरा साथे रहब.’ बोलत घरी ऊ मंच पर बइठल अपना मेहरारू के देखलनि, त उनुकर आंख डबडबाइल रहुवे. शायद मारे ख़ुशी के. स्कूल से चलत बेरा मेहरारू प्रिंसिपल के आपन इस्तीफ़ा सउँप दिहली.
उनुका उम्मीद रहल कि गोला अउर बांसगांव कचहरी के वकीलो शायद बार एसोसिएशन का तरफ से उनुका के शायद स्वागत करे ला बोलइहें बाकिर केहू नोटिस ना लीहल. बोलावल त फरदवला रहल. सामान कुछ ख़ास रहुवे ना. एगो पिकअप वैन में सामान भरि के जब ऊ चललन त कहलन, ‘चलऽ. एहिजा से आबोदाना उठ गइल. देखऽ अब जिनिगी कहां-कहां ले जात बिया.’ मेहरारू मुसुका के रहि गइल.
‘हम ना जानत रहुवीं कि आदमी के अपमानो ओकरा के तरक्क़ी का रास्ता पर ले जा सकेले. अब इहो जान गइनीं.’ रमेश बोललन, ‘बतावऽ ई हमहन के घर वाला, ई समाज, रिश्तेदार, पट्टीदार अउर ख़ास क के धीरज हमरा के अतना अपमानित ना कइले रहतन त का हम आजु जज साहब कहल जइतीं ?’ ऊ अपना मेहरारू के बांह में भरत कहलन, ‘आ तोहार प्यार, तोहार समर्पण, अउर तोहार संघर्ष जे हमार साथ ना दिहले रहीत तबहियों ना. बलुक हम त मर गइल रहतीं.’ ऊ तनिका थथमल आ बोलल, ‘एक बेर त हम तए क लिहले रहीं कि अबकी जे सेलेक्ट ना भइनी त माहुर खाके सपरिवार जीवन खतम कर लेब. ई अपराध तोहरा के हम आजु बताव बानीं.’
‘अब त अइसन मत बोलीं.’ कहत मेहरारू रमेश का मुंह पर हाथ रख दिहलसि.
(अगिला कड़ी के इंतजार लमहर ना होखे एकर कामना करीं.)