– डॅा० जयकान्त सिंह ‘जय’
बिहार में विधानसभा के चुनावी बिगुल फूँका गइल बा. भीड़भाड़ का चलते मतदान केंद्र पर अपना मताधिकार के प्रयोग से भरसक बाँचे के प्रयास करे वाला तथाकथित बुद्धिभोगी जमात आज-काल्ह चुनाव के लेके खूब गपिया रहल बाड़ें. अपना के हर राजनीतिक दल नेता से निरपेक्ष बतावे के ढोंग करत जात, स्वार्थ वगैरह के हिसाब से बात फेंक रहल बाड़ें. अवसर मिलते रोटी सेंक रहल बाड़ें.
आज हमरो इहाँ अइसने जमावड़ा रलऽ. हम माहौल के हल्का करे का खेयाल से कहनी ह कि सुनी सभे, भोजपुरी के कवि लोग एह नेता, दल आ सरकार के बारे में कब-कब का कहले बा – महागठबंधन के ताल ठोक नेता लालू जी के जंगलराज के बखिआ उधेड़त भोजपुरी के मजल-सधल कवि भाई गोरख मस्ताना कतना तरीका से आपन बात कहले बाड़े. खुद अपने नइखन कहले, बल्कि लालुए जी के मुँह से गाँधी जी के संबोधित करावत कहले बाड़न कि हमार जंगलराज कइसन बा –
गाँधी बाबा से हम साँचे साँच बतवले बानी, लाठीराज चलवले बानी ना. .
हमरा राज के देखीं शैली, होता जात जात के रैली
केहू पइसा पर जुटे, फूटे कतहीं घइली पर घइली.
रउरा चश्मा किरिये, जातिबाद फइलवले बानी, आपुस में लड़ववले बानी ना.
जतने पढ़िहें लिखिहें लोग, ओतने होई कुफुत रोग
झंझट दूर करेला बाबा कइनीं अद्भुत एक परयोग .
कि रउरा लाठी किराये, चरवाहा इस्कूल खोलववले बानी, कवरेज बंद करववले बानी ना. .
देखनीं धनिक गरीब के खाई, बुद्धि लिहलस तब अँगराई
सोचनी बिना लूट आ पाट, राउर रामराज ना आई.
एहीसे अपहरण उद्योग खोलववले बानी, समता घंट डोलवले बानी ना.”
आगे गोरखजी जंगलराज के बैसाखी बनल काँग्रेस पर चटकन चलावत गाँधी जी सरग सिधारे पर संतोष जाहिर करत उनके के संबोधित करत कहलें –
अच्छा बा गाँधी बाबा, रउआ ना जीअत बानी,
इज्जत से आपन धोती सरगे में सीअत बानी. .
राउर बनावल पाटी, सागर से भइल नाली
सुनते ही नाम ओकर अब लोग देवे गाली.
जबसे ऊ(सोनियाजी ) बेइमान के दरवानी. .
गिरगिट के लजावे से पावे सुमो अरम्दा,
भोरे में रहे बसपा, रतिआ में राजदा.
बा राजघाट झेल रहल दल बदल तुफानी. .
आवे के जे होई बिहार छोड़ के आइब
अइनी अगर त दिन दुपहर में लुटाइब.
पूछब ना तिरंगा से कह दी कुल्ही कहानी. .
अटल बिहारी वाजपेयी जी के सरकार में शिक्षा मंत्री के एगो कार्यक्रम में लालू जी के तब शिक्षाविद् आ समाज सुधारक शिक्षा मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव जी सरस्वती वंदना के बिरोध करत अपना मुस्लिम तुष्टीकरण मतलब सेकुलर छबि के परिचय देले रहस. तब गोरखजी भाजपा सरकार का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरज़ोर वकालत करत लालू जी आ उनका सेकुरल शिक्षा मंत्री पर व्यंग्य के झटहा चलावत लिखले-गवलें –
सुरसती बंदना के कइसे केहू गाई,
जेही चउकेचउक रामजी के गरिआई,
होइहे उहे नेताजी अपना बिहार के,
जा झारके, अइहऽ अइहऽ ताड़ी दारू मारके
जा झारके . .
ओह घरी नीतीशजी बड़का भइआ के झटका देके केंद्र के भाजपा सरकार में मंत्री हो गइल रहस आ लालूजी कहत फिरस कि –
नीतीश के हमनूँ जानऽतानी. ओकरा आँत में दाँत बा.
ई अँतकटवा बा. जब हमार ना भइल तब अटल अडवानी के होई ?
देखेलऽ लोग, ई कबो ठठा के हँसेला ?
ई हमेशा कुटिल मुस्की छोड़ेला.
ई मोका मिलते केहूके ना छोड़ेला.
हम कुछउ अलबल बक दिले.
पेट में कुछ ना राखीं.
लोगो कहेला कि ललुआ मुँहे फूहड़ ह.
केहूके कुछ बिगाड़े ना.
बाकिर ई चुप्पा कास्टिस्ट ह.
बिहार के पहिलका एन डी ए वाला नीतीशजी के सुशासन वाला सरकार पर तंज कसत लालूजी का का ना कहलें. कवि महेश ठाकुर चकोर एने नीतीशजी के गलत नीति पर खूब लिखले आ गवलें हँ. बानगी खातिर एक दू डाँड़ी –
“आरे मार बढ़नी कादो इहे ह सुशासन.
बिलेक हो जात बाटे राशन किराशन. .
आरे मार….
पहिले से घूस चउगुना बढिआइल,
मुखिया के आटी पाटी सभे बा मोटाइल,
सगरो लगवले बा घूसखोर आसन. .
कि मार बढ़नी कादो इहे सुशासन . .”
एने चुनाव आवते महागठबंधन, एन डी ए, बाम गठबंधन, तीसरा मोर्चा आ ओह बेसी (अधिका) का अवसरवादी नेतन से जनता के सावधान करत गा रहल बाड़ें –
“कोइल के बोली बोलत बाटे कउआ, जरूर कोई बात बा.
बिचार करीं रउआ. जरूर कोई बात बा…”
(चलत रह सकेला आगहूं.)