– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
(फिल्म कथाकार नारायण दुबे से एगो अंतरंग बातचीत)
होली मिलन का अवसर पर जगदल (कोलकाता) में आयोजित एगो कवि सम्मेलन में फिल्म आ रंगमंच से जुड़ल एगो वयोवृद्ध बाकिर आज भी कुछ करेके लालसा से भरल पूरल हस्ती से परिचय भइल. अगिला दिन हम उहाँ से मिले गइलीं आ फिल्म आ रंगमंच का अलावे जीवन आ जगत के कई महत्त्वपूर्ण बिंदुअन पर भी बात भइल. आँखिन पर बड़हन चश्मा, एक काठी के देंहि, ऊपर मिहें बिखरल सफेद बार, हर बात में तर्क के जबर्दश्त पुट, अनुभव के धनी वाणी जइसे कवनो सूत्र होखे, गंभीर चर्चा में भी तरोताजा मुस्कराहट, शालीन व्यवहार के धनी जवना व्यक्तित्व के चरचा करे जा रहल बानी ओकर नाँव हऽ श्री नारायण दुबे.
१९४४ में जनमल श्री दुबे के शुरुए से रंगमंच में रुचि रहे. इहाँ के दर्जनों नाटक लिखलीं आ ओकर मंचन करवलीं बाकिर विशेष ख्याति मिलल फिल्म “छठि मैया की महिमा” से. ई फिल्म रिलीज भइल १९७९ में जवना में ओह घरी के स्थापित कलाकार लोगन के जबर्दश्त भूमिका रहे. ओमें बी.एम.व्यास, मनीष कुमार, साहू मोदक, राजेन्द्र नायक, बीरबल, गायत्री आ असित सेन आदि अभिनेता लोगन के अभिनय के बहुत सराहना कइल गइल. गीत लिखले रहीं प्रदीप जी आ पार्श्वगायन लता मंगेशकर, आशा भोंसले, उषा मंगेशकर, महेंद्र कपूर आ विंध्यवासिनी देवी के रहे. ओमें संगीत देले रहीं डॉ. भूपेन हजारिका जी. एह फिल्म के निर्माता रहीं महुआ डे आ निर्देशक तपेश्वर प्रसाद जी. ई फिल्म आर्थिक रूप से सफल रहलि बाकिर जवन खुशी लेखक के मिले के चाहीं ऊ ना मिल पावल काहेंकि फिल्म के पटकथा के ओह समय के हिट फिल्म “संतोषी माता” के रूप दे दिहल गइल रहे.
एकरा बाद टेलीफिल्म “बागदा” काफी चर्चा में रहल. एकर पटकथा दुबेजी लिखलीं बाकिर इहाँके नाम खाली संवाद लेखक का रूप में प्रदर्शित भइल. दिल्ली दूरदर्शन खातिर एह फिल्म के भी निर्देशक तपेश्वरे प्रसाद जी रहीं. एह में बंगला फिल्मन के स्थापित अभिनेता अनिल चटर्जी के मुख्य भूमिका रहे. दुबेजी कोलकाता दूरदर्शन खातिर भी कई गो नाटक लिखलीं. एहमें हिंदी में “दहशत” के काफी लोकप्रियता मिलल. एह नाटक में इहाँका लेखन,अभिनय आ निर्देशन तीनों भूमिका में रहीं. भोजपुरी के अँजोर,डाइन आ उड़नचिरैया तीनों नाटक काफी चरचित भइले सन;ईहो कोलकते दूरदर्शन से प्रसारित भइल रहले सन.
नाटक के शुरुआती दिनन के चरचा करत दुबेजी भावुक हो गइलीं. इहाँके सबसे लोकप्रिय नाटक रहे “आग” जवन बहुत कम उमर मे लिखले रहीं, एहीसे दुबेजी ओकरा के परिपक्व (मेच्योर) ना मानींले. फेरु त इहाँके “अमर वरदान” (पौराणिक नाटक),”रक्त स्नान”, “दुर्लभ मक्खी” आदि नाटक एक-एक करके इहाँके लोकप्रियता में इजाफा करत गइले सन. अपना नाटक “दुर्लभ मक्खी” के चर्चा करत दुबेजी हँसे लगलीं. एह नाटक के जहिया मंचन होखेके रहे ओ दिन एकर अभिनेता श्याम के अपना के अभिनेता बतवला का बादो कला मंदिर (कोलकाता) के सेक्यूरिटी गार्ड गेटे पर रोकि देले रहे. जब दुबेजी आ निर्माता दूनो जना जाके बतवलीं सभ तब जाके ऊ भीतर ढुके दिहलसि काहेंसे कि श्याम जी के चेहरा-मोहरा अभिनेता के ना लागत रहे. बाद में ईहे श्याम कोलकाता के एक नंबर के हास्य अभिनेता भइले. एतना कइला का बाद भी दुबेजी अपना लक्ष्य से बहुत पीछे रहीं आ आज भी इंतजार बा कि कवनो उपयुक्त निर्माता उहाँके जरूर मिली जे इहाँके पटकथन पर फिल्म बनाई. दुबेजी का पास चार गो स्क्रिप्ट बा, दू गो हिंदी आ दू गो भोजपुरी में आ रचनात्मक कार्य ओइसहीं जारी बा.
बाते बात में दुबेजी अपना आगे ना बढ़ेके कारन बतवलीं जवन बिल्कुल सही लागल. इहाँका पश्चिम बंगाल का वाटर वर्क्स डिपार्टमेंट में स्थायी रूप से कार्यरत रहीं, एहसे स्वतंत्र रूप में काम करेके मोका ना मिलल. नौकरी छोड़ेके खतरा जो उठा लेले रहितीं त शायद स्थिति कुछ अउर रहित. अपना स्थिति के बयान एगो कथात्मक रूप में करत उहाँका कहलीं कि हम एगो घोड़ा हईं आ हमरा पीठ पर समय एगो लाठी में संभावना के पोटली लटकवले बा. घास बराबर हमरा सामने रहल बिया बाकिर कबहूँ मिलल ना. हमरा आ घास का बीच में समय हमेशा से दूरी बनवले रहल बा. समय हमरा के धोखा देत रहल बा. कबो-कबो हवा के झोंका आवत रहल बा आ कुछ घास के उड़के आ गइला से हमार रुचि आ अभिलाषा बरकरार रहल बा.
बिहार के सीवान जिला के कोथुआ सारंगपुर में जनमल नारायण दुबेजी कोलकाता के जगदल में रहिके आजु पहिले से भी अधिक मनोयोगपूर्वक स्वाध्याय में रत बानी. कविता, कहानी, नाटक आदि विधन में दुबेजी के सैकड़ो रचना पत्र-पत्रिकन में छप चुकल बाड़ी सन आ आकाशवाणी से प्रसारित भी भइल बाड़ी सन| कला संसार, चुटकी, हर्षिता, बंगाल मेल आदि साप्ताहिक पत्रिकन के इहाँका बरिसन तक संपादन कइले बानी. उमेदि करेके चाहीं कि उहाँके साधना के जल्दिए कवनो नीमन मोकाम हासिल होई.
samay ke bare me bahut gambhir bat khl gail ba. aisna hasti ke na puchla ka karane aaj-kal ke filim baksa me bann hotari san. dube ji ke contact no bhi rahit ta thik rahit.