– प्रिंस रितुराज दुबे
ईहां कवनो एल्बम के गाना नइखे लिखल जात, ई एगो साच कथन मनोज तिवारी जी के एल्बम से लिहल गइल बा.
भोजपुरी, जवन पूरा दुनिया में अपना मौजूदगी के ताल ठोकत बा, ओही भोजपुरी के जनमे स्थान में हार हो गइल बा. जहाँ बिदेश में मॉरिशस के राष्ट्रीय भासा बना दिहल गइल बा भोजपुरी के, उहे आज अपना जनमे स्थान में उपेक्षित बिया. 8वीं अनुसूची में शामिल करे खाती कई साल से कोशिश कइल जाता, बाकिर राजनिति के दाँवपेच में अझुरा गइल बा ई मुद्दा. अब हमनी के ओह प्रदेश के बतकही कइल जाव जहाँ के मूल भासा ह भोजपुरी.
झारखण्ड, यूपी, बिहार माने भोजपुरी भासा-भासी प्रदेश. ईहां भोजपुरी आ भोजपुरी से संबंधित भासा उपयोग होला, भोजपुरी सबके एक साथे मिला के चलेला. हमनी के अक्सर न्यूज़ में सुनीले जे सबसे पिछड़ा अउर अशिक्षित इलाका में भोजपुरी प्रदेश के नाँव आवेला, राजस्थान, एमपी, छतीसगढ़, उतराखंड जइसन प्रदेशो एही सूची में बा.
सबसे बड़ बात ई बा कि एह के लोग आपन माईभासा के महत्व न देला. ईहां के लोग हिंदी के मातृभासा के दर्जा देला बाकिर हिंदी कवनो क्षेत्र के भासा ना ह, पूरा देस के भासा ह. एकरा पर पूरा देस के बराबर के हक बा.
भोजपुरी भास-भासी प्रदेशन में लोग भोजपुरी के बुरबक के भासा बुझेला आ कहे ला कि 8वीं अनुसूची में एकरा के नइखे शामिल कइल गइल .एही पर लोग गँवार वाला काम कर जाला. हम पूछतानी रऊआ लोग से कि आपन माई के माई कहे खातिर सरकार से पूछे के पड़ी. भासा हमनी के माई ह, आ हमनी के एकरा के छाती तान के लिखे पढ़े आ बोले बतिआवे के चाही. पढ़ल लिखल होखो चाहे अनपढ़, जादा तर लोग भोजपुरी बोले पढ़े में कतराला.
झारखण्ड, यूपी, बिहार एतना बड आबादी वाला परदेस बा एकरा बावजूदो ईहां के राजनीतिज्ञ आ नेता लोग भोजपुरी के आगे बढ़ावे के बारे में ना सोचेला. आपने देस के दोसर प्रदेशन से सीखे के चाहीं कि बंगाली, पंजाबी, गुजराती, मराठी चाहे द्रविड़ भासा के लोग आपन भासा के पाहिले महत्व देला आ बाद में हिंदी भा इंग्लिस के. तबे त एहिजा के लोग शिक्षित आ बिकास के राह पर बा. भोजपुरी, हिंदी, बंगाली जइसन आधुनिक भासो से पुरान भासा ह. एगो वेबसाइट के मध्यम से जानकारी मिलल की भोजपुरी के छोट बहिन मगही से ही बंगाली के अस्तित्व बनल बा. एही से त भोजपुरी, मगही, मैथिली आ बंगाली के शब्द मिलत जुलत लागेला. महिला समाज के आउरो जागे के पड़ी काहे से कि महिले लोग से आपन समाज पूरा होला. माई आपन बच्चा के गोदी से जवन सिखाई उहे बच्चा सीखी. अगर माई जागरूक होई तबे बच्चा जागरूक होई अऊर तबे समाजो जागरूक होई. मिला जुला के इहे बात सामने आवता कि हमनी के आपन भासा अऊर अस्तित्व के बचावे के पड़ी, तबे खुद के पहचान बनी.
पुरान में भिखारी ठाकुर आ महेंद्र मिसिर जइसन लोग भोजपुरी के बारे में सोचले त आज के दिन में मनोज तिवारी आ भरत शर्मा जइसन लोग भोजपुरी के नया मजबूती वाला खम्मा देबे में लागल बा. शायद ई कहल बाउर ना होई कि हमनी के भोजपुरी के लिपी जवन १९०० इस्वी शुरु होखे से पाहिले ओरा गइल रहे, ओकरा के फेर से उजागर करे के पड़ी. आज काल के नया नया लईका लईकी भोजपुरी बोले बतिआवे में लज़ाला लोग आ अपना माईभासा लिखे बोले में संकोच करेला.
माईभासा के जात धरम का आधार पर बा बाँटल जा सके. माईभासा समाज के आपन पहचान होले. ई सभके साथे ले के चलेले.
भोजपुरी भासा परिवार एक साथे कई गो राज्य के अपना भीतर समइले बा. 180 बरीस पहिले जब भोजपुरी भासी परदेस के लोग गरीबी का मजबूरी में गिरमिटिहा बन के बिदेस गइल बाकिर अपना बेंवत आ कर्मठता से आपन पहचान बना लिहल आ भोजपुरी के पसार दुनिया के बीसन देस में फइला दिहल. ओही लोग के मेहनत लगन आ माई भासा से प्रेम का चलते आजु कई गो देस में भोजपुरी उपभासा बिया आ एह के लोग सान से उपयोग करेला. बाकिर जहाँ से भोजपुरी जनमल ओही इलाका के लोग एकरा के पिछुआ दिहले बा.
दुबे जी के एह बात के धेयान मे राखे के चाहीं कि झूठ का नीव पर बड़हन दीवाल ना बनावल जा सके. भोजपुरी आजु कवनो देश में ना त राष्ट्रभासा बिया ना ही एकरा के सरकारी कामकाज के भासा के दरजा मिलल बा. चुनौती बा कि भोजपुरी के झंडा उठवले लोग एह बात के गलत साबित करे.
रहल भोजपुरी के बीसन देस में पसार के त हम विदेश त नइखीं गइल कबो बाकिर भोजपुरी का बारे में जानकारी बिटोरे का क्रम में मारीशस, फ्रेंच गुयाना, टोबैगो, सूरीनाम, नीदरलैँड वगैरह जगहन के समाचार पत्रन के बीच बीच में देखत रहीले. भोजपुरी के सबले अधिका आ बढ़िया प्रभाव मारीशस में बा बाकिर ओहिजो भोजपुरी आम बोलचाल के भासा नइखे, सरकारी भासा के बात त दूर रहल. हँ भोजपुरी के सरकारी प्रश्रय जरुर मिलल बा ओहिजा आ भोजपुरी के बचावे बढ़ावे खातिर भोजपुरी से जुड़ल संस्थान के सरकारी सहयोग देबे के प्रावधान बना दिहल गइल बा.
भासा के लड़ाई लड़े से पहिले अपना के ओह जोग बनवला के दरकार बा. गाँड़ी मे दम ना बगइचा में डेरा वाला कहाउत पर चलला से काम नइखे चले वाला. आज भोजपुरी के एगो अखबार नइखे, कवनो पत्रिका के पसार हजार कापी से अधिका के नइखे, एकहू टीवी चैनल सुबहित नइखे चल पावत, भोजपुरी के कवनो वेबसाइट के प्रभाव नइखे भोजपुरिया लोगन पर, भोजपुरी के साहित्य भा सरोकार से केहू के मतलब नइखे. गूगल क के देख लीं कि भोजपुरी में का खोजल जाला – भोजपुरी हाॅट सांग, सेक्सी सांग, गाना, हीरो हिरोइन के तस्वीर देखला का बाद लोग का लगे समये ना बाचे कि साहित्य पढ़ो भा सरोकार के चरचा करो. एह पीड़ा के हमरा से अधिका के झेलले बा. जब अँजोरिया शुरु कइले रहीं तब दुनिया में कवनो साइट ना रहुवे भोजपुरी के. तब से ले आके आजु ले नेट पर अपना भोजपुरी साइटन के जियवले बानी त अपना बल पर. आपन पइसा लगा के, आपन जाङर खटा के. बाकिर ना त कबो आपन गोल बनावल चहनी ना ओकर कोशिश कइनी. परिणाम ई भइल कि तरह तरह के लोग आपन आपन गोल बना के आपन आपन परचम लहरावे में लागल बा. ठीक बा. करो लोग बाकिर गोलबंदी क के ना, पूरा समाज के साथे ले के चले के कोशिश करे लोग. भोजपुरी में दलित साहित्य, बाभन साहित्य, ठाकुर साहित्य, पिछड़ा साहित्य के जगहा ना होखे के चाहीं. भोजपुरी साहित्य सभकर ह, सभका के साथे ले के चले के कोशिश होखे के चाहीं. बाकिर ना, आजु गोरू माल ले अधिका खूंगा गड़ा गइल बा भोजपुरी के बथान में. पाठक से बेसी वेबसाइट हो गइल बाडी सँ.
एहसे भोजपुरी के झंडा उठा के काम करे वाला लोग पहिले भोजपुरी के कमी दूर करो, समाज में एगो बड़हन आन्दोलन खड़ा करो तब जा के भोजपुरी के जियवले राखल जा सकी. ना त लोग के मतलब सध जाई. केहू कवनो अकादमी के अध्यक्ष बन जाई, केहू कवनो दोसरा पद पर लाग जाई. ोह लोग के कमाए खाए के जरिया बन जाई बाकिर भोजपुरी के का होखी. लोग बस एही फेर में लागल रही कि पिंकिया केने बिया? केने बिया पिंकिया?
माफ करब, रउरा लेख से बड़हन टिप्पणी हो गइल. बाकिर का करीं, मन के पीड़ा बहे लागल त बहत चल गइल.
लिखत रहीं. भेजत रहीं. भोजपुरी के जियवले राखे में हर आदमी के योगदान महती बा. केहू के काम के छोट भा थोड़ ना कहल जा सके.
राउर,
ओम