– ओमप्रकाश अमृतांशु
२१ फरवरी के दिने दुनिया अपना-अपना मातृभाषा के इयाद करेला. मातृभाषा माने माईभासा. माई के भाषा, माई के गोदी में खेलत-खात सीखल भासा, जवना में पहिला बेर माई के माई कहल सिखावल जाला. मातृभाषा का बारे में महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर के कहना रहल – हमनी के दू गो महतारी के गोदी में जनम लिहले बानी जा. एगो महतारी जे एह शरीर के जनम दिहली आ एगो ऊ जे बोले के, समुझे के, सीखे के माध्यम दिहली. पिछला २१ फरवरी का दिने दिल्ली का हिंदी भवन में मैथिली-भोजपुरी अकादमी का ओर से ‘वैश्वीकरन के संदर्भ में मातृभाषा की चुनौती व समाधन’ विषय पर परिचर्चा क के मैथिली-भोजपुरी के लोग आपन-आपन माईभाषा के इयाद कइल.
कार्यक्रम के उद्घाटन मैथिली-भोजपुरी के दस गो विद्वान लोग मिलके कइल. अध्यक्षता कइलीं मैथिली-भोजपुरी साहित्यकार गंगेश गुजन. अकादमी के सचिव राजेश सचदेवा मातृभाषा के महत्व बतवलन. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उत्पल कुमार भोजपुरी के वैदिक दर्शन करवलन. भोजपुरी भलहीं सरकार आ राजनीति करेवाला लोगन के अपेक्षा के शिकार होखे, हमनी के आपन भोजपुरी भाषा पे बहुते गर्व करे चाहीं. भोजपुरी सिर्फ एगो भाषा ना होके वेद के शाखा हउए. मैथिली के साहित्यकार डा॰ मणिभूषण मिश्र जी कहलन – रउरा के केहू एक थप्पड़ मार दिही त ओहघरी अचानक रउरा मुहँ से जवना भाषा में गारी निकली, ओही भाषा के मातृभाषा कहल जाला. कहल जाला सउँसे भारतीय भाषा के जड़ संस्कृत में छिपल बा. महाकवि विद्यापतिओ मानत रहनी कि देशी भाषा सभकेहू के नीक लागेला. एही से उ अपने भाषा में गीतन के रचना कइलन.
मंच संचालक करत युवा कवि, साहित्यकार आ चिंतक संतोष कुमार सवाल उठलन कि मैथिली-भोजपुरी चाहे कवनो भाषा पे वैश्वीकरन के दबाव नया बात ह कि शुरू से बा जब वैदिक काल, मुगल काल आ बाद में अंग्रेज लोग आइल त उ लोग भारतीय भाषा के केतना विकास कइल? का हमनी के भारत में कबो कवनो भाषा नीति रहल, जवन कवनो भारतीय भासन के जिन्दा राखे के भार उठावे?
मैथिली रचनाकार मिथलेश कुमार झा बतवलन कि कवनो भाषा आपन माटी से जुड़ल रहेला. भाषा माटी से जुड़ के तबतक ना फरी-फुलाई, जबले ओह भाषा के प्राथमिक शिक्षा में ना जोड़ल जाई. परिचर्चा में चर्चा करत भाषा वैज्ञानिक डा॰ राजेन्द्र प्रसाद भोजपुरी के महत्व पे प्रकाश डालत कहलन – भोजपुरी के जेतना शब्द बाड़ी सं, पियोर भोजपुरी के हई सं. भोजपुरी के एक-एक शब्दन से अनेकन शब्द बनेला आ बनावे के गुजाइशो बा. हिन्दी के एक शब्द से अनेकन शब्द ना बने. सबसे मजेदार बात बा कि हिन्दी शब्द हिन्दी के ना हउए. हिन्दी के पहिल डिक्शनरी, व्याकरण आ इतिहास लिखेवाला आदमी अंग्रेज लोग रहे.
मैथिली-भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अजीत दूबे केन्द्र सरकार से आपन नाराजगी जतावत कहलीं कि केन्द्र सरकार के इच्छा शक्ति के कमी के शिकार बिया हमनी के भोजपुरी. हमनी के बहुते उम्मीद रहुवे जब चिदंबरम साहब भोजपुरी में ‘ हम रउरा सभे के भावना बुझत बानी’ बोल के अश्वासन दिहले रहले. अब बुझाता उ खाली ताली बजवावे वाली बात रहे. हर पार्टी के नेता लोग कहेला कि दिल्ली के विकास में बिहार, उतर प्रदेश आ झारखंड़ के लोगन के योगदान रहल बा. हम दिल्ली सरकार के पास जाइब आ दिल्ली में पंजाब-हरियाणा के तर्ज पे ‘प्रवासी वेलफेयर बोर्ड’ के निर्माण करे के प्रस्ताव राखब. भोजपुरी के डा॰ गुरूचरण सिंह के कहना रहे कि मैथिली-भोजपुरी छोटमन वाली भासा ना हईं सँ ई सम्पूर्णता में जीए वाली भाषा हई सं. वैश्विकरण के चितां करे के चाहीं. एकर चिंता अगर रउरा अंदर से मिट जाइ त अपना संस्कार के वजूदो मिट जाई. भोजपुरी कवि विनय कुमार शुक्ला अपना भाषा ला आवाज बुलंद करे करावे प जोर दिहलन.
कुल मिला के ई छोट-मोट कार्यक्रम बौद्विकता से भरल रहे. अपना माईभाषा दिवस में शामिल होखे खातिर कुछ विशिष्ठ लोग जइसे कि महेन्द्र प्रसाद सिंह, भोजपुरी पंचायत के संपादक कुलदीप, हेलो भोजपुरी के संपादक राजकुमार अनुरागी, देवेन्द्र तिवारी, मनोज भावुक, देवकान्त पांड़ेय, शिखा खरे, उदय नरायण सिंह वगैरह लोगन से सभागार खचा-खच भरल रहे. सभे आंनदित होके मातृभाषा दिवस मनावल. हम त बस अतने कहब जय मातृभाषा! जय मैथिली! जय भोजपुरी!
बहुत अच्छा बा हमार काम भोजपुरी के लेकर ब जेकरा में हम ई वेबसाइट के लेके काम कर तानी एकरा के और बेहतर बनावल जा सकता
रिपोर्ट से भोजपुरी के सुगबुगाहट के पता चलता । आदरणीय गंगेश गुंजन जी के अध्यक्षता से आयोजन के मान बढ़ल ।
रामरक्षा मिश्र विमल
माई के भाषा जइसन मिठ कवनो भाषा नइखे …….