लोकजीवन के ‘बढ़नी’ आ ‘बढ़ावन’
– डा॰ अशोक द्विवेदी ‘लोक’ के बतिये निराली बा, आदर-निरादर, उपेक्षा-तिरस्कार सब के व्यक्त करे क ‘टोन’ आ तरीका अलगा बा. हम काल्हु अपना एगो मित्र किहाँ गइल रहलीं, उहाँ…
First Bhojpuri Website & Resource for Bhojpuri Scholars
– डा॰ अशोक द्विवेदी ‘लोक’ के बतिये निराली बा, आदर-निरादर, उपेक्षा-तिरस्कार सब के व्यक्त करे क ‘टोन’ आ तरीका अलगा बा. हम काल्हु अपना एगो मित्र किहाँ गइल रहलीं, उहाँ…
– रामरक्षा मिश्र विमल शहर में घीव के दीया बराता रोज कुछ दिन से सपन के धान आ गेहूँ बोआता रोज कुछ दिन से जहाँ सूई ढुकल ना खूब हुमचल…
– डा0 अशोक द्विवेदी नेह-छोह रस-पागल बोली उड़ल गाँव के हँसी-ठिठोली. घर- घर मंगल बाँटे वाली कहाँ गइल चिरइन के बोली. सुधियन में अजिया उभरेली जतने मयगर, ओतने भोली. दइब…
– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी आजु हमरा के नियरा बईठा के बाबूजी बहुते कुछ समुझवनी ह । दुनियाँ – समाज के रहन सभ हमरा के विस्तार मे बतवनी ह ॥ बाबूजी…
– देवेन्द्र आर्य आजादी क बाद शायद ई पहिला बेर भइल बा कि मिलल पुरस्कार लवटावे वालन के लाईन लागल जात बा. अलग अलग भाषा, प्रदेश आ विचारधारा के लिखनिहार…
– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल 1. मन इ जब जब उदास होखेला तोहरे आस-पास होखेला घर धुँआइल बा आँख लहरेला जब भी बुधुआ किताब खोलेला तोहरा के…
– डा0 अशोक द्विवेदी कुछ नया कुछ पुरान घाव रही तहरा खातिर नया चुनाव रही । रेवड़ी चीन्हि के , बँटात रही आँख में जबले भेद-भाव रही । अन्न- धन…
– शिलिमुख आम आदमी का नाँव प’ सत्ता पावे वाली पारटी के मुखिया, आम आदिमी क भला करसु भा ना करसु बाकि आम आदमी का टेक्स से कमाइल पइसा से…
– डा0 अशोक द्विवेदी दउर- दउर थाकल जिनगानी कतना आग बुतावे पानी ! बरिसन से सपना सपने बा ; छछनत बचपन बूढ़ जवानी । हरियर धान सोनहुली बाली, रउरे देखलीं…