मथैला अगर रउरा के मथले होखे तबो साँच के साँच कहे के जोखिम उठावहीं केे पड़ी.
काल्हु दिल्ली के मुख्यमत्री अरविन्द केजरीवाल के ईडी उनुका सरकारी आवास से गिरफ्तार कर लिहलसि. कई तरह केे रिकार्ड बना चुकल अरविन्द केजरीवाल का नामे एगो अउर रिकार्ड जुड़ गइल, कुर्सी पर रहतेे गिरफ्तार होखे वाला मुख्यमंत्री के.
अबहीं लेे कई गो मुख्यमंत्री गिरफ्तारी सेे पहिले आपन पद छोड़ दिहलेें बाकिर अरविन्द केजरीवाल बेहयाई के एगो गलीज नमूना बन के सामने आइल बा. बेहयाई के हद त ई बा कि ओकर लगुआ-भगुआ कहत बाड़ें कि सरकार जेलेे से चलइहें केजरीवाल !
सवाल उठत बा कि का अइसन हो सकेला ? मानत बानी कि नियम-कायदा केे किताबन मेें अइसन हालात के कल्पनो नइखेे कइल गइल. काहेे कि कानून बनावेे वाला लोग कवनो शातिर अपराधी का दिमाग सेे ना सोच पावेे. किताब में त इहो नइखे लिखल कि सरकार रंडीखाना भा चंंडूखाना सेे चलावल जा सकेला कि ना. त का सभे एह बात पर आँख मूंद ली ?
राष्ट्रपति के समस्या बा कि ऊ दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगावे केे जोखिम उठावेे कि ना. एह बारे में कवनो फैसला करेे से पहिलेे उनुका अदालतन केे रुख का बारे मेें हजार बार सोचे केे पड़ी. बाकिर अदालतन का सामने अइसनका कवन उलझन बा कि उनुको मुँह से बकार नइखे निकलत. बात-बेबात स्वत: संज्ञान लेबे वाली अदालतन के ठकुआ काहे मार दिहले बा. सुप्रीम कोर्ट पता ना आजु आम आदमी पार्टी केे गोहार सुनी कि ना, बाकिर सुने से पहिले ऊ ई त पूछिए सकेलेे कि केजरीवाल के इस्तीफा का बारे मेें आ आ पा गोल के विचार का बा ? अगर अनैतिकता के हद पार कर चुकल लोग कहेे कि सरकार जेलो सेे चलावल जा सकेला त अइसन अनैतिक गोल का साथेे न्याय के करी ? काहें कि एक दिन अइसनो आ सकेला कि कवनो नशेड़ी कहे कि हम दारूखाना सेे सरकार चलाएब त का अदालत अइसन होखे दिहेें ?