झड़ुआवल आ बहारल के चरचा (बतकुच्चन – 175)

पिछला अतवार के बाबा लस्टमानंद से भेंट हो गइल. बाबा के आदेश भइल कि हम बतकुच्चन में झाड़ू पर चरचा करीं. बाबा के त ना बतवनी बाकिर रउरा के बता…

माई बाबूजी जब मम्मी आ डैडी हो गइले (बतकुच्चन 170)

माई बाबूजी कब मम्मी डैडी हो गइल लोग केहू के पता ना लागल. बाकिर आजु टीचर के गुरू कहला पर बखेड़ा खड़ा करे के कोशिश हो रहल बा. एहसे कि…

गोलबंदी, गठबन्हन आ कि गिरोहबन्दी (बतकुच्चन 169)

लागत ब कि मउराइल लोग फेरु मउराइल हो गइल बा. जान में जान आ गइल बा. कहल जात बा कि दहाड़त शेर प काबू पा लिहले बाड़े जंगल के सियार…

शायद पालिटिक्स अब कुछ बदल गइल बा (बतकुच्चन 168)

बात कहिले खर्रा, गोली लागे चाहे छर्रा. कहे सुने ला त ई ठीक लागी बाकिर बेवहार मे आदमी सोच समुझ के बोलेला. साँच बोलल जरूरी होखेला बाकिर जहाँ ले हो…

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून (बतकुच्चन 167)

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून. पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून. पानी के महत्ता हमनी सभ के मालूम बा. जाने वाला लोग बतावेला कि तिसरका विश्वयुद्ध पानिए…

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