रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून (बतकुच्चन 167)
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून. पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून. पानी के महत्ता हमनी सभ के मालूम बा. जाने वाला लोग बतावेला कि तिसरका विश्वयुद्ध पानिए…
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रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून. पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून. पानी के महत्ता हमनी सभ के मालूम बा. जाने वाला लोग बतावेला कि तिसरका विश्वयुद्ध पानिए…
परुआ बैल के हेहव के आसा एह पर तनी रुक के चरचा होखी कि परुआ कि पड़ुआ. अबहीं मान के चलल जाव कि परुआ बैल ओह बैल के कहल जाला…
काल्हु करे सो आजु कर, आजु करे सो अब / पल में परलय होएगा बहुरि करोगे कब. पता ना कवना कवि के लिखल ह ई बाकिर जमाना से सुनत आइल…
ओह दिन सावन के पहिला सोमारी रहल. किरन फूटे से पहिलहीं श्रद्धालुअन के झुंड के झुंड शिवजी के अर्घ्य दे के लवटत रहल. सबे खुश रहे कि भीड़ उमड़े से…
मिले मियाँ के माँड़ ना, बिरयानी के फरमाइश! आजु रेल बजट सुनत घरी कुछ कुछ अइसने लागल. अब सही भा गलत एकर फैसला त रउरे सभे कर पाएब बाकिर हमरा…
बापे पूत परापत घोड़ा, बहुत नहीं त थोड़ा-थोड़ा. इहाँ ले कि जेकरा बारे मे कहल गइल कि ‘डूबल बंश कबीर के जमले पूत कमाल’ उ कमालो एह कहाउत प ठीक…