– पाण्डेय हरिराम

देश के मौजूदा मेहरारू मुख्यमंत्रियन में सबले नयकी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पिछला शुक का दिने शपथ लिहली. एकरा साथही देश के आबादी के बड़का हिस्सा पर औरतन के शासन हो गइल. भारत का इतिहास में तेरहवीं सदी में रजिया सुल्तान के शासन का बाद के ई पहिला हालात बा. इंदिरा गाँधी जरुरे लमहर दिन ले भारत के प्रधानमंत्री रहली बाकिर कवनो प्रधानमंत्री के देश के रोजमर्रा के जिनिगी पर ओह तरह के सीधा दखल ना हो पावे जइसन कवनो मुख्यमंत्री के होला. एहसे एह दौर के पाँच गो औरतन, ममता, जयललिता, मायावती, शीला दीक्षित अउर सोनिया गांधी, के रजिया सुल्तान के वारिस कहल जा सकेला. महिला मेहरारूवन के ताकत बढ़ावे के पैरोकारन के ई सब बेशक खुश कर सकेला.

बाकिर जब हमनी का उम्मीद करीले कि बड़का पद पर बेसी औरत आवऽ सँ त एकरा पाछा हमनी के एगो कास तरह के सोच काम करत होला. हमनी का सोचीले जा कि मरदन के राज त बहुत देख लिहल गइल का पता औरतन के राज पहिले से बेहतर होखो. जब ऊ परिवार चलावेली जा त महतारी, बहिन, बेटी भा बीबी होली आ हर रूप में ऊ प्यार बरसावेली. त जब ऊ लोग पी॓एम भा सीएम बनी त अपना राज्य के निगरानी ऊ लोग ओही प्यार आ चिन्ता का साथ करी. पुरुष शासकन के तुलना कबो देवता से ना कइल जाला बाकिर औरत शासकन के देरी ना लागे देवी के छवि ओढ़ लेबे में, हमनी का ओह लोग से उदार शासन के उम्मीद करे लागीला जवना के जिक्र किताबन में होत आइल बा. सत्ता मिलला का बाद मेहरारुवन के कामयाबी के मतलब का होला ? का सियासत भा पावर का दुनिया में मेहरारुवन के अइला से मरद मेहरारू का बीच बरोबरी का अलावहु कुछ बदलेला ? का हमनी का ओह लोग से कुछ अइसने आ बेहतर काम के उम्मीद कर सकीले जवन मरद लीडरन के ना कर पाईं ?

घर परिवार में मरद आ मेहरारुवन के रोल आ बर्ताव में फरक होला काहे कि एकर इंतजाम समाज अतना दिन से करत आइल बा कि संस्कारे बदलि गइल बा. बाकिर ऑफिस में एह बात के कवनो मायने ना होला. लिहाजा सियासतो औरताना भा मरदाना ना होले. सीएम-पीएम चाहे मरद होखें भा ‌औरत, ओह लोग के एके जइसन जिम्मेदारी उठावे के पड़ेला. एहीसे हमनी का देखीला कि ममता बनर्जी, जयललिता, शीला दीक्षित, मायावती आ सोनिया गांधी में कवनो समानता नइखे. सभकर स्टाइल अलग अलग बा आ छविओ. ममता बहुते तेज-तर्रार, लेकिन सादगी पसंद हई, जबकि जयललिता के शाही लाइफ स्टाइल के किस्सा मशहूर ह. उनुका पर करप्शनो के ढेरे इल्जाम बा आ एगो सीएम का रुप में उनुकर कामकाज औसते मानल जाला. शीला स्टाइलिश आ हाई क्लास हई, लेकिन उनुका पड़ोसी मायावती का लगे समय नइखे अइसन शौक में अझुराए के. ऊ अपना बेबाक अंदाज में दलित क्रांति के मसीहा बने पर आमादा बाड़ी. आ आजुकाल्हु त ऊ सोनिया से तीख तकरार में मशगूल बाड़ी जे उनुका के कवनो ना कवनो तरह यूपी के गद्दी से उखाड़ फेंके के ख्वाब देखत बाड़ी.

का ई मेहरारू लोग अपना इलाका में अइसन कुछ कइले बा जवन एगो औरत होखे का चलते उहे लोग कर सकत रहे ? एकर जवाब बा – ना. ममता कइसन सीएम होखिहन ई त आगा चल के पता लागी लेकिन जयललिता भा मायावती के रेकॉर्ड कवनो यादगार नइखे रहल. शीला का जमाना में दिल्ली बहुते तरक्की कइले बा आ ऊ बार-बार इलेक्शन जीतत आवत बाड़ी. लेकिन तबहियो देश के सबसे नामी लीडर्स में उनुका के अबही ना गिनल जाला. जवन हैसियत राजशेखर रेड्डी (मरे से पहिले) आंध्र में, नरेन्द्र मोदी गुजरात में अउर नीतीश कुमार बिहार में बना लिहले, ऊ एह औरतन से बहुते आगा बा आ ई सगरी लोग मरद ह. जइसे नीमन भा बाउर होखल जेंडर से तय ना होखे वइसही नीमन भा बाउर शासक होखे खातिर मरद मेहरारू के फरक जरुरी ना होला. पावर गेम में अगर जेंडर के कवनो मायने बा त कुछ चाल चले का तरीका में होखत होई. पर्सनल स्टाइल के, लोग से बर्ताव में फरक हो सकेला, लेकिन जवनो नतीजा होखे ओह पर जेंडर का ठप्पा ना लाग पाई. लागतो होई त ऊ लउकी ना काहे कि बढ़िया भा खराब फैसला के असर ओहसे नइखे बदले वाला. मसलन मोदी के बढ़िया फैसला गुजरात के औतने भला करी जतना ममता के बढ़िया फैसला बंगाल के.

त रजिया सुल्तान का अरसा बाद मेहरारूवन के मिलल एह कामयाबी के असली मतलब का बा ? सिर्फ अतने कि हमनी का सदियन से चलल आ रहल भेदभाव आ गैरबरोबरी बहरी निकलत बानी जा. जवना मुल्क में मरद आ मेहरारुवन के बीच बरोबरी के सवाल बनल होखे, ओहिजा एतना सगरी औरत सबले ऊंचका ओहदे तक जा पहुंचली – ई बदलत अउर सुधरत भारत के मिसाल बा. साल 1236 में जब इल्तुतमिश अपना नाकारा बेटे के छोड़ के अपना बेटी रजिया के सुल्तान मुकर्रर कइले रहल त ऊ जेंडर का फरक पर काबिलियत के तरजीह दिहले रहल, ऊ अइसनका जमाना में बराबरी खातिर खड़ा होखे के मिसाल रहे जवन दुनिया में कहीं अउर ना देखल गंइल. अतना सदियन का बाद आजुवो जब कवनो औरत अपना सिर पर ताज राखेले त हमनी का बरोबरी के ओह सपना का तरफ एक कदम अउर बढ़ जाइले. बरोबरी का तरफ उठल हर कदम समाज के बेहतर बनावेला. मेहरारूवन के सत्ता में आइल करप्शन भा खराब शासन के अंत ना ह. ई ओह समाज के अंत जरुर ह जवन आखिरकार करप्शन आ खराब शासन जनमावेला.



पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखल करेनी.

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