भोजपुरी सिने उद्योग में एक और अभिनेता ने दस्तक दी है. नाम है उनका हसीन खान. “माई के बिरुवा” के इस नायक से उनकी इस सिने-यात्रा और अभिनय को लेकर विस्तृत बातचीत हुई. हसीन गारमेन्ट व्यवसाय में व्यस्त थे. लेकिन, अचानक उनके ही क्षेत्र के स्थापित लेखक-गीतकार अतीक इलाहाबादी ने उनको फिल्म उद्योग में भाग्य आजमाने की एक सलाह दे डाली. हसीन ने अतीक की नेक सलाह को गंभीरता से लिया और दाखिल हो गये फिल्मोद्योग में. प्रस्तुत है, हसीन से हुई बातचीत के अंशः
अतीक इलाहाबादी ने आपको फिल्मोद्योग में आने की सलाह क्यों दी?
-उन्होंने मुझसे कहा, मेरे अंदर एक सफल अभिनेता बनने के गुण हैं. क्यों न भाग्य आजमा लिया जाय. क्या पता हमारी मंजिल इसी क्षेत्र में राह देख रही हो.
फिर भी, शुरुआत भोजपुरी फिल्मों से ही क्यों ?
-क्योंकि भोजपुरी में जोखिम कम रहता है. बजट कम रहेगा तो नुकसान होने का डर भी कम रहेगा. फिर अतीक जी इस क्षेत्र में एक स्थापित गीतकार हैं. वह मदद कर सकते हैं.
अतीक इलाहाबादी गीतकार हैं, फिर उनसे ही फिल्म की पटकथा लिखवाने का कुछ विशेष कारण?
-उन्होंने एक कहानी सुनाई और वह मेरे दिल को छू गयी. इसलिए मैंने उनको ही सब कुछ लिखने का जिम्मा दे दिया और आज लगता है मेरा और फिल्म के निर्देशक संजय सर (श्रीवास्तव) का निर्णय काफी सही था.
लेकिन, वह दिल को छू लेने वाली कहानी क्या है ?
-यह मां बेटे के भावनात्मक रिश्ते की कहानी है. बिरुवा गांव का एक निहायत ही सीधा-सादा लड़का है. उसके लिए सब कुछ उसकी मां ही है और मां की तो मानों जान ही बसती है बिरुवा में. मूल कहानी यही है.
लेकिन, इसमें फिल्मी ट्विस्ट क्या है?
-यही कि उसकी प्रेमिका पर विलेन के बेटों की नजर है. लेकिन, बिरुवा के सामने उनकी दाल नहीं गलती.
फिर आगे क्या होता है ?
-उसे झूठे बलात्कार मामले में फंसा दिया जाता है. सीधा बिरुवा को आत्मग्लानि होती है कि सही होकर भी उसे दोषी बता दिया गया, ऐसे गांव में जीकर क्या करना.
क्लाइमेक्स क्या है?
-सीधा सादा बिरुवा जब अचानक ज़ीरो से हीरो बन कर लौटता है तब फिल्म एक नये मोड़, क्लाइमेक्स की ओर बढ़ती है.
आपके आगे बढ़ने में और किसने मदद की?
-फिल्म के निर्देशक संजय सर (श्रीवास्तव) ने मुझसे बेहतर काम करवाया. नायिका के रूप में अंजना जी (सिंह) ने भी मेरा हौसला बढ़ाया, उन्हें भी धन्यवाद.
(समरजीत)