अब चाहीं जनप्रतिनिधि वापसी के अधिकार

by | Apr 9, 2011 | 1 comment

– अशोक मिश्र

भ्रष्टाचार का मसला पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर 97 घंटे तक अनशन करे वाला अन्ना हजारे के सदिच्छा पर शायदे केहू के अविश्वास होखे. उनुका पर कवनो आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप शायदे लागल होई आ लागलो होई त केहू मनले ना होई काहे कि अन्ना हजारे हमेशा कुछ करके देखवला में विश्वास कइले बाड़े, बयानबाजी करे में ना. उनुका जहँवो लागल कि गलत होत बा त ओखर मुखर विरोध कइलन. एकरा खातिर आपन-पराया के भेद ना कइलन. शायद एही वजह से जब ऊ जन लोकपाल विधेयक के मांग लेके जंतर-मंतर पर अनशन करे बइठलन त पूरा देश उनका साथे हो लिहल. बाकिर अब जब ऊ केंद्र सरकार के आश्वासन पर आपन अनशन तूड़ दिहले त सवाल उठल स्वाभाविक बा कि जवना मकसद से ऊ अनशन कइलन आ जवना के पूरा देश से भरपूर समर्थन मिलल ऊ पूरा होई कि ना ? एकर का गारण्टी बा कि सरकार ठीक वइसने लोकपाल विधेयक संसद में पेश कररी जइसन अन्ना हजारे आ देश के आम जनता चाहत बा. आ संसद एह विधेयक के पासो कर दी एकरो भरोसा दिलावे का स्थिति में शायद केहू नइखे. थोड़ देर ला मान लीं कि ड्राफ्ट कमेटी के सदस्य अन्ना हजारे के प्रस्तावित जन लोकपाल विधेयक के मूल अवधारणा से छेड़छाड़ ना करीहें तबहियो एह भ्रष्ट लोकतांत्रिक व्यवस्था में एकरा के पास करावल सबले मुश्किल काम होई. .कहीं एहू विधेयक के हश्र महिला आरक्षण विधेयक जइसन त ना हो जाई. जवना तरह से दबाव में आके सरकार सगरी माँग मान लिहलसि ओहसे त इहे लागत बा कि ऊ फिलहाल एह मसला के कुछ दिन ला टार के अपना खातिर राहत का जुगाड़ में रहुवे. आ जवना तरह से अन्ना हजारे समर्थक आनन-फानन में सरकार के बात मान लिहलें ओहू से शक पैदा होता कि कहीं वाहवाही लूटे ला त जनता के उन्माद अउर जोश के इस्तेमाल त ना कइल गइल.

हालांकि अन्ना हजारे सरकार के झुके आ लोकसभा में विधेयक पेश करे के आश्वासन के आम जनता के जीत बतावत कहले बाड़न कि अब उनुकर जिम्मेदारी बढ़ गइल बा. बिल के मसौदा तैयार करावल आ ओकरा के मंत्रिमंडल में पास करावल अबही बाकी बा, लोकसभा में पासो करावल एगो बड़हन काम बा. जब ले सत्ता के विकेंद्रीकरण नइखे होत, भठियरपन (भ्रष्टाचार) खतम ना होखी.

एह पूरा प्रकरण में सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात पर कुछुवे लोग ध्यान दिहले होई कि अन्ना हजारे के समर्थन में देहरादून में प्रदर्शन करे वाला विख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा आ उनुका साथियन के एगो पोस्टर पर लिखल रहुवे कि पूंजीवादी व्यवस्था में भठियरपन खतम करावल नामुमकिन बा. मतलब कि जब ले मुनाफा पर आधारित बिकाऊ माल के पूंजीवादी अर्थव्यवस्था रही तबले भ्रष्टाचार खतम ना होई. जवन व्यवस्था मुनाफा कमाए के इजाजत देत होखे ओह व्यवस्था से रिश्वतखोरी, लूट, शोषण-दोहन खत्म होखे के कल्पना कइल बुद्धिमानी ना होई. शायद सुंदरलाल बहुगुणा आ उनुका साथियन के कहना बा कि पूंजीवादी संसदीय जनतंत्र भ्रष्टाचार के गंगोत्री ह. आ एह गंगोत्री के रहते कवनो दल भा राजनेता के पाक-साफ रहे के गुंजाइश बहुते कम बा. ओह लोग के मानना बा कि कवनो सामान के उत्पादन प्रक्रिया में मुनाफा तबे होला जब उत्पादन करे में लागल मजदूरन के वाजिब मजदूरी से कम दिहल जाव भा दिहल मजदूरी से बेसी के काम लिहल जाव.

अब जब भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता पैदा होइये गइल बा त इहो उचित रही कि जनप्रतिनिधियन के वापस बुलावे वाला विधेयक पारित करावे के दबावो सरकार पर बनावल जाव.वइसे त एह व्यवस्था में जबले कवनो मंत्री, सांसद भा नौकरशाह पर आरोप ना लागे, ओकर कइल भठियरपन के खुलासा ना होखे तबले त ऊ ईमानदारे मानल जाला. बाकिर कवनो तरह से ओकरा घपला आ घोटाला के पर्दाफाशो हो जाव त ऊ बहुते बेहयाई से एकरा के विरोधियन के साजिश बतावत अपना कुकर्म के नकारे के कोशिश करेला. आ तबो बात ना बनल त सरकार बा पार्टी ओह आदमी के सरकार भा पार्टी से निकाल के मामिला के लीपापोती कर देले.

सबले बड़हन सवाल त ई बा कि ड्राफ्ट कमेटी के सदस्य कवनो भ्रष्टाचार में शामिल नइखन रहल एकर गारंटी के ली ? चलीं थोड़ देर ला मानियो लिहल जाव कि जनलोकपाल विधेयक पारितो हो जाई, तब ? एह व्यवस्था के देखे वाला लोग दूध से धोआइल होखी एकर गारंटी के ली ? जब ले शोषण पर आधारित व्यवस्था के खात्मा नइखे हो जात तबले बस अतने कइल जा सकेला कि जन लोकपाल विधेयक का साथही जनता अपना जनप्रतिनिधियन के वापिस बोलावे के अधिकारो माँगे. जबले जनप्रतिनिधियन पर एह वापसी के तलवार ना लटकी तबले उनुका में जनता के डर ना समाई.इहे बात नौकरशाहीओ पर लागू होखे के चाहीं. एक बेर चुना गइल नौकरशाह के तबे हटावल जा सकेला जब ई पूरा तरह साबित हो जाव कि ऊ भ्रष्ट बा भा कवनो गैरकानूनी काम कइले बा. लेकिन अइसनका होखला के शायदे कवनो उदाहरण मिली जब कवनो नौकरशाह भ्रष्टाचार का आरोप में नौकरी से हाथ धोवले होखे.


लेखक अपना बारे में जवन बतावत बाड़े :

जब साहित्य समुझे लायक भइनी त व्यंग्य पढल नीमन लागे लागल. व्यंग्य पढ़त-पढ़त कब हमहू लिखे लगनी पते ना चलल. पिछला 21-22 बरीस से व्यंग्य लिख रहल बानी. कई गो छोट-बड़ पत्र-पत्रिकन में खूबे लिखनी. दैनिक स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण आ अमर उजाला जइसन प्रतिष्ठित अखबारनो में खूब लिखनी. कई गो पत्र-पत्रिकन में नौकरी कइला का बाद आठ साल दैनिक अमर उजाला के जालंधर संस्करण में काम कइनी आ लगभग चार महीना रांची में रहनी. लगभग एक साल दैनिक जागरण में काम कइला का बाद अब दैनिक कल्पतरु एक्सप्रेस (आगरा) में बानी. हमार एगो व्यंग्य संग्रह ‘हाय राम!…लोकतंत्र मर गया’ दिल्ली के भावना प्रकाशन से फरवरी 2009 में प्रकाशित भइल बा. आगरा में उम्मीदन के नया सूरज उगी एही उमेद का साथे संघर्ष में लागल बानी.

संपर्क सूत्र –
अशोक मिश्र,
द्वारा, श्रीमती शशि श्रीवास्तव,

५०७, ब्लक सी, सेक्टर ६
आगरा विकास प्राधिकरण कालोनी,
सिकन्दरा, आगरा

Ph. 09235612878
कतरब्योंत

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1 Comment

  1. kunal goswami

    sir kish bhasa me he samajh me nahi ay par bhrastachar pe likha he to achcha hi hora.yehi likhate rahiye sir meri subhkamnaye apke sath he

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