आरक्षण, गुजरात, आ रहमान मलिक

by | Dec 17, 2012 | 0 comments

आजु देश का सोझा तीन गो सवाल बा. आरक्षण, गुजरात आ रहमान मलिक. सबले पहिले तिसरका सवाल. पता ना सरकार का सोच के रहमान के पन्द्रह दिसंबर के बोलवले रहुवे जब गुजरात चुनाव प्रचार अपना जोर पर रहुवे. रहमान के आवग आ गुजरात के चुनाव दुनु बहुत पहिले से तय रहुवे एहसे सोचल जा सकेला कि सरकार के मंशा कुछ अउर रहे बाकि एन मौका पर नरेन्द्र मोदी सर क्रीक के मुद्दा उठा के सगरी खेल बिगाड़ दिहलन. जवन कुछ बाचल खुचल रहे तवना के रहमान मलिक अपना कुटिलता से अउरी लसार दिहले. भारत सरकार जरूरे माथा पिटत होखी कि कवना नछ्छतर में मलिक के नेवता दिहले. आ एही चलते साझा बयान देबे से मुकर गइल जबकि पहिले तय रहे कि मलिक के दौरा का बाद दुनु देश के साझा बयान आई.

अब आईं गुजरात के सवाल पर. आजु गुजरात चुनाव के दुसरका आ आखिरी दौर के मतदान होखे वाला बा. बहुते कम होला जब कवनो एक राज्य के चुनाव पर सगरी देशे ना विदेशो के आँख गड़ल होखे, मीडिया में भरपूर चरचा होखत होखे. बाकि गुजरात चुनाव पर सभकर नजर बा आजु. आजु फैसला होखे वाला बा देश के दशा आ दिशा के. “पत्रकार तूलिका” के शब्द मे कहल जाव त जब दिशा बदलेले त दशो बदले लागेले. गुजरात के चुनाव तय करी कि अगिला लोकसभा चुनाव के पहिले राजनीतिक दिशा का होई. गुजरात में त नरेन्द्र मोदी के, ध्यान दीं सभे इहे कहत बा भाजपा के ना नरेन्द्र मोदी के, जीत तय बा. देखे के बस अतने बा कि एह जीत के मात्रा का होखत बा, अंतर कतना पड़त बा पिछला बेर का मुकाबले. अगर मोदी के जीत शानदार रहल त भाजपा का सोझा कवनो दोसर राह ना बाच जाई नरेन्द्र मोदी के आपन नेता बनावल छोड़ के.

अटल बिहारी बाजपेयी आ लालकृष्ण आडवाणी का बाद पहिला बेर भाजपा के कवनो जन नेता मिले वाला बा जेकर गूंज आजु सगरी देश में बा. नरेन्द्र मोदी का हाथ में नेतृत्व दिहला का बाद भाजपा के अदरूनी लड़ाई खतम हो जाए के पूरा आशा बा. बाकि अगर हाल का दिन में भाजपा के चाल चरित्र आ चेहरा पर धेयान दिहल जाव त कहल जा सकेले कि सेल्फ गोल मारे वाली एह पार्टी के कवनो भरोसा नइखे. अपना रीति नीति के भुला के विरोध करे खातिर विरोध करे वाली पार्टी बन के रह गइल बिया भाजपा. ना त ऊ वामपंथियन का संगे सुर में सुन ना मिलाइत. अइसन कवनो नीति जवना के वामपंथी समर्थन करत होखसु भाजपा के नीति होइए ना सके आ अगर होई त ओकरा समर्थकन के निराशे करी जइसे कि पिछला बेर सरकार बनवला का बादो बहुमत का अभाव में राममंदिर बनावे के मौका गँवा दिहलसि. एहसे हो सकेला कि भाजपा के नेता तय कर लेसु कि मोदी का हाथ में भाजपा के ना दिहल जा सके. भात खाए खातिर जात गवाँ सकेले भाजपा. अलग बाति बा कि तब अधिका अनेसा एही के रही कि जतियो जाई आ भतवो ना मिली.

अब आईं आरक्षण के मुद्दा पर. आजु राज्यसभा में एह मुद्दा पर फैसला होखे के बात कहल जात बा. यूपीए बसपा के सुर में सुर मिलावत भाजपो के कहना बा कि ऊ प्रोन्नति में आरक्षण के समर्थन करी. दोसरा तरफ अबले काग्रेस के उबारत आइल समाजवादी पार्टी के धमकी बा कि अगर एह बारे में फैसला भइल त ऊ यूपीए के समर्थन के सवाल पर दुबारा सोची. असल में मुलायम लमहर दाँव खेल दिहले बाड़न एह मुद्दा पर सीबीआई के दबाव के बात उठा के. अब या त आमदनी से बेसी के धन बिटोरे का मामिला में मुलायम के उबारे के सौदा करे के पड़ी सरकार के या आपन सरकार गँवावे के अनेसा झेले पड़ी. मुलायम के दुनु हाथ में लड्डू बा. सीबीआई वाला चाल लह गइल त वाह वाह आ कवनो ना कवनो बहाने फेर कह सकेले कि भाजपा के सत्ता में आवे से रोके खातिर सरकार के समर्थन कइल जरूरी बा. अगर बात ना लहल त सरकार से समर्थन वापिस लेके आपन राजनीतिक हैसियत बढ़ा लिहन मुलायम. काहे कि आरक्षण के विरोध का नाम पर ऊ यूपी के सवर्ण समुदायो के वोट पर दावा ठोक सकीहें तब.

अब अंत में फेर आई कि का सोच के हम आरक्षण, गुजरात आ रहमान मलिक के बात एके संगे उठवनी. त हमार इहे सोच बा कि एह तीनो मुद्दा पर सरकार के फजीहत होखल तय बा. सरकार के छवि लगातार खराब होखल जात बा आ एह रफ्तार के ई तीनो मुद्दा अउर तेज कर दी. आजु देके लायक रही कि सपा आ बसपा के खेल में कांग्रेस कहाँ रहत बिया.

– ओमप्रकाश सिंह

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