केने बाड़ें ऊ लोग जिनका भोजपुरी प नाज बा

by | Apr 4, 2015 | 2 comments

– कुलदीप कुमार

KuldeepKumar
कहे के त कहल जाला कि जवन भासा रोजगार के मौका ना दिआ सके ओह भासा के अस्तित्व गँवे-गँवे खतम हो जाला. बाकिर ई बाति भोजपुरी प का साथे ठीक नइखे बइठत.

सीधा से देखीं त अबहीं ले भोजपुरी के संवैधानिक दर्जा नइखे मिलल बाकिर एह का बावजूद ई भासा अपना जनम के इलाका लाँघत दुनिया के नाहियो त बीस गो देशन ले आपना पाँख पसार लिहले बिया. भासा के बढ़न्ती के भाव लिहले भारतो में कुछ पेशेवर पहल भइल बा जवन पूरा ना पड़ला का बावजूद सकून देत बा आ साथही भोजपुरी के संविधान के 8वीं अनुसूची में शामिल करे जोग दावा मजबूत करत बा. दोसरा ओर देखीं त नेपाल, मारीशस आ सूरीनाम जइसन देशन में कुछ हद ले ई रोजगारो के भासा बने लागल बिया.

एक हजार साल पुरान भोजपुरी महज भासे ना हो के बिहार, झारखंड आ पूरबी यूपी के भोजपुरी इलाकन के संस्कार आ जिनिगिओ हिय. भोजपुरी जइसन बेंवत दोसरा भासन में कमे देखे के मिलेला. ई हर हालात में अपना के मजबूत क लेले आ ओह मुकाम ले चहुँप जाले जहाँ एकरा होखे के चाहेला. अपना ऐतिहासिकता खातिर मशहूर भोजपुरी एक तरफ बलिया से बेतिया ले पसरल बिया त एकर उत्तरी दक्खिनि पसार लौरिया नंदनगढ़ से लगवले आजमगढ़, देवरिया तक ले बा. दोसरा ओर एकर कीर्ति पताका राम प्रसाद बिस्मिल, मंगल पांडेय, असफाकउल्लाह खां जइसन क्रांतिवीर लहरवलन त बाबू कुंवर सिंह एही जमीन में जीत के जज्बा भर दिहलन. आजादी के बाद भोजपुरी इलाका से बनल देश के पहिला राष्ट्रपति राजेन्द्र डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लगवले कर्मठ प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जइसन सर्वश्रेष्ठ विकल्प पुरबिया माटिए से निकलले. सचिदानंद सिन्हा आपन कौशल देखवलें त सरहद के रक्षे ले ना ओकरा के बढ़ावहू वाला बाबू जगजीवन राम के कवनो सानी नइखे.

हमहन के सांसद अपना गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा ले सकेलें काहें कि हमनी के भोजपुरिया इलाका हमेशा से सत्ता के केंद्र में रहल बा आ अपना मान सम्मान के रक्षा में हमेशा आगे रहल बा. मौर्य वंश से पहिले जरासंध और शिशुनाग जइसन शासक देख चुकल ई इलाका हमलावर सिकंदर के चंद्रगुप्त मौर्य के शौर्य से चुनौती देत बा. कबो शिक्षा के महान केंद्र, तेजस्विता से ओत-प्रोत ई इलाका कतने मनीषियन, शिक्षाविदन, राजनेतन के कर्मभूमि बन के दुनिया के अगुआई कइले बा. दुनिया के मानवता के पाठ पढ़वले बा आ आजु एकाएक ई अनपढ़ आ अपना जिम्मेदाेी से भागेवाला कइसे बन गइल? नेता, सांसद अपना माईभासा खातिर सम्मान के बात त करेले बाकिर संसद में टूअर अस काहे लउके लागेलें. ई कवनो शंकाजोग बात बा कि एह लोगन के कवनो मजबूरी कि ई लोग जानतबूझत अपना माईभासा के बिलगवले चाहत बा. एक ले बढ़के एक पावरफुल भोजपुरिया सांसद, मंत्री, लोकसभा अध्यक्षा, प्रधानमंत्री आ देश के सबले बड़का पद राष्ट्रपति ले भइले बाकिर आजादी के 68 साल बादो भोजपुरी भासा अपने सम्मान के लड़ाई लड़े ला मजबूर बना के राख दिहल बिया.

आज मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सुरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिदाद, टोबैगो जइसन देशो में भोजपुरी जनसमूह आपन परचम बहुते गर्व से फहरावत बा. मॉरीशस के खेतन में ऊँख के खेती करावे ला धोखा दे के ले जाइल गइल मजूर बसुधैव कुटुंबकम के भावना से ओत प्रोत होके ओही माटी के अपना खून पसीना से पटवल शुरु क दिहले. बंजर जमीन लहलहा उठली सँ आ आज मॉरीशस दुनिया के जियत-जागत स्वर्ग बन गइल बा. ई भोजपुरी माटी के ताकते ह कि देश का बहरा एगो अउरी भारत बस गइल. आखिर हमनी के नेता एह इतिहास से सीखस काहे ना आ बरीसन से लटका के राखल 8वीं अनुसूची में भोजपुरी के शामिल करावे के मुद्दा जोर शोर से उठावस काहे ना़ ? आखिर कब ले ई सांसद, नेता, मंत्री लोग खाली बाते बनावत रही, झूठ भरोसे दिआवत रही. यूपीए के शासनो में इहे भइल रहे आ खांटी भोजपुरिया आ सासाराम के सांसद मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्षा अउर कुशीनगर के सांसद आरपीएन सिंह के गृहराज्य मंत्री रहला का बादो लोकसभा में विधेयक पेश तक ना करावल गइल.

भोजपुरी माटी में जनमल अनेके भोजपुरिया सपूत अपना-अपना काम में खास आ बेंवतगर बनलें. ओहि में शामिल बाड़े कवि केदार नाथ सिंह जी, आलोचक नामवर सिंह, मनेजर पाण्डेय जी आ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी जी. एह चारो लोग के हमार प्रणाम. ई लोग अपना साहित्य, कविताई आ आलोचना से देश-विदेश में भोजपुरी माटी के मान बढ़ावल बाकिर ई लोग कबो अपना माईभासा भोजपुरी के करजा उतारल त दूर ओकर बात तकले ना कइल लोग.

हम ए महान विभूति लोगन स पुछत बानी कि, ‘भोजपुरी के संवैधानिक दरजा मिले, एकरा खातिर एह लोग के कवनो फरज नइखे?’ विकिपीडिया पर भोजपुरी माटी के महान सपूत नामवर सिंह के प्रोफाइल पढ़त रहनी त पढ़ि के हमरा लाज लागल कि का कवनो भोजपुरिया खातिर एतना खराब समय आ गइल बा कि ओकरा आपन पहिचान बतावत में सरम आवत बा? रउओ सभे पढ़लीं कि का लिखल बा, ‘वे हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, बाँग्ला, संस्कृत भाषा भी जानते हैं।’ नामवर सिंह के जनम 1 मई 1927 के बनारस (अब के चंदौली जिला में) के एगा गाँव जीयनपुर में भइल रहे. त का माननीय नामवरजी के आपन माईभासा भोजपुरी ना आवेला? का पैदा होखते उहाँका उर्दू भा बंगला बोले लगनीं? ई बहुते लजाएजोग बात बा कि कि अइसन आदमी जेकरा पर हमनी भोजपुरियन के नाज बा ऊ अपना माटी के खूशबू आ भासा के नामो से परहेज कर गइल, जवना में ऊ पलाइल पोसाइल, जवन बोल के ऊ आज एह मुकाम ले चहुँपल.

मैनेजर पाण्डेय जी आ कविवर केदारनाथ सिंह जी भोजपुरी में कुछ ना लिख सकेनी त भोजपुरी मान्यता के मांगो ना कर सकेनी का ? ओने साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी 24 भासा के लोगन के सम्मान देत समय एक्को बेर अपना माईभासा भोजपुरी के यादो ना करस का ? इ सभ देख के दिल के बड़ा ठेस पहुँचेला, पर का एह चारों विभूतियन के कुछु फर्को ना पड़े? अब एह से बड़हन सरम के बात का होई.

मोदी सरकार के पावरफुल मंत्री रविशंकर प्रसादो साल 2013 में पटना में कहले रहनी कि मोदी सरकार आवते भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता मिल जाई. बाकिर मान्यता त दूर के बात बा, अबहीं हाले में जब रविशंकर बाबु 22 गो भासा में किताबन के ‘डिजिटलाइजेशन’ के घोसना कइलन, तवनो घरी उनुका भोजपुरी के इयाद ना कइलन. हमरा उम्मीदे ना पूरा विश्वास बा कि अगर ई नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, मैनेजर पाण्डेय जी, विश्वनाथ त्रिपाठी अउर सभ भोजपुरिया सांसद एक बेर, एक साथ जोरदार ढंग से 8वीं अनुसूची में भोजपुरी शामिल करावे के माँग उठा देव त कवनो सरकार के ओकरा के रोकल मुश्किल हो जाई आ मान्यता देबे वाला विधेयक संसद में पास करहीं के पड़ी. बाकिर का ई हो सकेला?

जय भोजपुरी!


BhoPan-Apr15हिन्दी पत्रिका ‘भोजपुरी पंचायत’ के अप्रैल अंक मिलल त बहुते कुछ रचना काम जोग लगली सँ. खास क के भोजपुरी का सवाल पर कई गो लेख एह अंक में दिहल गइल बा. दुख के बात बा कि अइसन बात क सकेला वाला कवनो पत्रिका भोजपुरी में नइखे छपत लउकत. जे बा से साहित्य सेवा में लागल बा आ उहो अतने जरूरी बा. भोजपुरी के साहित्ये ना रही त भोजपुरी के सवला उठावे के तुक का रहि जाई. बाकिर भोजपुरी में छपे वाली अइसन पत्रिका के बहुते जरूरत बा जे साहित्य से फरका हट के सामजिक आ भासाई सरोकार के लड़ाई लड़ो. बाकिर भोजपुरी के नाम पर आपन आ अपना संस्था के नाम लहरावे में लागल लोग के एकर फिकिर कबो होखी का ? का कबो भोजपुरी के अइसन संस्था बन पाई जवना के सगरी काम भोजपुरी में होखो, जवन भोजपुरी के लड़ाई लड़ाई भोजपुरी में लड़ सको?
कहे वाला कहींहे कि सगरी नियम कानून बनावे वाला संसद आ खबर छापे वाला मीडिया जब हिन्दी भा अंगरेजी में काम करत बा त भोजपुरी के आवाज ओह लोग ले चहुँपावे खातिर हिन्दी भा अंगरेजी में बोलल बतियावले जरूरी बा. अरे जब रउरा भोजपुरी में आपन आवाज ले नइखीं उठा सकत त अनेरे परेशान बानीं भोजपुरी खातिर. रउरे जइसन हिन्दी प्रेमियन का चलते भोजपुरी हिन्दी के उपभासा बना के राख दिहल गइल आ आजु अपना हक के लड़ाई लड़े ला मजबूर बना दिहल गइल.
एह अंक में संपादकीय में सगरी मुद्दा मजबूती से उठावल गइल लउकल त हम ओकरे अनुवाद भोजपुरी में क के एहिजा दे दिहले बानी. पत्रिका संपादक कुलदीप कुमार लिखत लिखत कई बेर भोजपुरी में लिख गइल बाड़न बाकिर पूरा लेख हिन्दीए में बा. एह बारे में तनिका सावधानी रखला के जरूरत बा आ पत्रिका के आपन शैली स्थिर बनावे के. की आ कि के इस्तेमालो में गड़बड़ी होखत बा. कवनो दू गो वाक्यांश का बीच ‘कि’ के आ संबंध बतावत घरी ‘की’ के इस्तेमाल होखल करेला. अलग बाति बा कि एगो पंडित जी से ई सवाल पूछले रहीं त उहाँ के ओकरा बाद हमरा से बतियावले बंद क दिहनी. एह सब चलते हम भोजपुरी के पंडित लोग से अझूराए के ना चाहीं बाकिर कबो कबो कुछ सही लागेला त कहला से पाछहु हटे के मन ना करे.
– ओम

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2 Comments

  1. Krishna Kumar

    सवाल निमन बा, एकर जबाबो अपने लगे बा।
    कानूनी मान्यता मिलला से जादा जरूरी सामाजिक मान्यता बा। सांसद अवुरी विधायक के वोट देवे घरी जब जात, धर्म, हीत-नाता, पार्टी-पउवा चिन्हल जाला, त उ काम भी अपना एही पहचान खातिर करी।
    खैर, सरकार कुछ करे भा मत करे, हमनी के का करतानी, इहो जानल जरूरी बा।

    हमेशा सरकार के आ प्रतिनिधि के दोष दिहल आसान बा, लेकिन कबहूँ इ ना सोचल गईल की अयीसन स्थिति काहें भईल? गाँव में नाया-नाया बियाहल लईका अगर ससुरारी में भोजपुरी बोल देवे त ओकरा के अनपढ़ मान लिहल जाता। काहें ना उ “पेटवा बथ रहा हैं” बोले, लेकिन ओकरा हिन्दी बोलल जरूरी बा।

    आज शहर के के कहो, देहात के लोग के भोजपुरी पढे नईखे आवत, ए स्थिति में खाली कानूनी मान्यता से का हो जाई? हाँ, एगो चीज़ होई, कुछ प्रकाशक अवुरी कुछ लेखक के खाए चबाए के मौका मिल जाई।

    पत्रिका में लिख के भा, अखबार में छाप के सिर्फ स्वाभिमान के संतुष्टि मिली, लेकिन आत्मा बेचैन घुमत रही, आत्मा के संतुष्टि खातिर जाहाँ लोग भोजपुरी में बोलत बतियावत बाड़े उहाँ ओ लोग के लिखे सिखावल जरूरी बा, जवन कि असंभव लागता।

  2. ashwinirudra

    भोजपुरी पत्रिका ‘आखर’ भी अच्छा काम कर रहल बिया .. http://www.aakhar.com

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