पत्रकारिता : काल्हु से आजु ले

by | Oct 9, 2010 | 0 comments

– आर्य सम्पूर्णानन्द

हम लगभग बीस बरिस से पत्रकारिता के अनुभव देखत बानी. तब से अब ले पत्रकारिता में जमीन आसमान के अन्तर आ गइल बा. तब त खादी के कुरता अउरी बगल में गाँधी झोला, इहे असली पत्रकारिता के पहचान रहे. आजु जींस अउरी टॉप पहिर के वीडियो कैमरा का साथे पत्रकारिता के नया चेहरा सामने आवत बा. हमार बनारस से ले के रेणुकूट आ मऊ तकले के अनुभव बतावत बा कि पत्रकारिता में ईमानदारी के कवनो गुंजाइश नइखे रहि गइल. आजु अगर प्रकर पत्रकारिता के बात करीं त राउर कतनो निमन लेख भा न्यूज पर तबले ध्यान ना दिहल जाई जबले रउरा पीठ पर कवनो उपर वाला के हाथ ना रही. लेखन का साथहू तमाम तरह के बलात्कार हो रहल बा.

हमार एगो लेख दिल्ली के पत्रिका “सीनियर इण्डिया” में तीन साल पहिले छपल रहल. लेख पं॰श्यामनारायण पाण्डेय जी के “रण बीच चौकड़ी भर भर के चेतक बन गया निराला था” पर रहे जवना के शीर्षक रहे “समय की शिला पर मधुर चित्र कितने”. माननीय मुलायम सिंह का मुख्यमंत्रित्व काल में चेतक वाली कविता पाठ्यक्रम से निकलवा दिहल गइल. उनुका हिसाब से कविता साम्प्रदायिक रहे. अब त रामे मालिक बाड़न, चउथा स्तम्भ के दंभ राखे वाली पत्रकारिता आ साहित्य कउने पाताल में जाई, बतावल ना जा सके. हमरा से नीक-नीक लोग आजु पत्रकारिता में लगातार ठोकर खा रहल बाड़े. हम त पाँच साल से दिल्ली के एगो न्यूज चैनल एस वन न्यूज के पत्रकार बानी. तमाम लोग कहेला कि काहे ना दुसरी जगह चल जात बानी. लेकिन हमार अनुभव ई कहत बा कि घोड़ा बेच के गदहा खरीदे के चाहत हमार नइखे. कम से कम अतना त कहले जा सकेला कि हमरा जइसन आदमी के एस वन चैनल झेलत बा, इहे बड़ बाति बा.

अगर हमरा मानसिकता के अउरी जाने के होखे त भड़ास पर विचार सेक्शन में मीडिया मंथन में “सुब्रत रायजी आपकी कथनी और करनी में काफी अन्तर है” अउर “उसके तन और मन के साथ खेला” में देख सकीले. मानसिकता के बलात्कार लगातार झेल रहल बानी इहे हमार पहिचान बा. अउरी त बस इहे कहीं कि “जिमि दसनन्ह मंह जीभ बेचारी” वाला जीवन बितावत बानी. पइसा से बहुते दूर बानी. बस ई शब्दवे हमार पूंजी बा. अउरी आजु के एह छल-कल-बल युग में एकर कउनो कीमत नइखे. हमार कीमत लागी कि ना लागी आ कि एही तरह घिसट-घिसट के मर जाइब, कुछ ना कहल जा सके. पिपीलिका माने कि चिउँटी के जिनिगी. पिप्पली लाइफ वाला पत्रकार एकर प्रत्यक्ष उदाहरण बा. इहाँ तक कि ओह पर फिल्म बना के फिल्मो वाला लोग बहुते पइसा से गुच्च हो गइले. अउर हो सकेला कि ओहन लोग के तमाम पुरस्कारो से नाज दिहल जाव. बाकिर एकरा से ओह पत्रकार के कउनो असर ना होखे वाला बा.

जय हो माँ सरस्वती, कल्याण करीं एह पत्रकारिता के.

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