बजलऽ ए शंख बाकिर बाबा जी के पदा के (बतकुच्चन – १११)

by | May 25, 2013 | 0 comments


तीन गो कहाउत आ तीन गो चोर के कहानी. सोचत बानी कि पहिले कहनिए कह सुनाईं छोट क के. एगो गाँव में चोरी भइल, तीन गो चोर पकड़इले. राजा के जमाना रहे राजा का दरबार में पेशी भइल. राजा तीनो के बारे में जानकारी लिहलें. फेर पहिलका से कहलें, जाई महाराज, रउरो रहनी एह चोरी में! दोसरका के गाँव के चौक पर सात कोड़ा मारे के आदेश दिहलन आ तिसरका से कहलन कि, हमरा बुझात नइखे कि तोरा के कवन सजाय दीं. आ फेर अपना सिपाहियन से कहलें कि एकर माथ मूड़ के, मुँह पर करीखा पोत के, गदहा पर बइठा के जूता मारत भर गाँव घुमावल जाव. दरबारी हरान परेशान कि अतना न्यायी राजा से अइसन अन्याय कइसे होखत बा. एगो दरबारी हिम्मत क के कहलसि कि, ई त अन्याय होखत बा हुजूर. एकही अपराध में तीन तरह के सजाय! राजा सकार लिहलन कि हँ अन्याय त हो गइल. लागत बा कि पहिलका के कुछ अधिका सजाय दे दिहनी. दरबारी हरान रह गइलें बाकिर फेर केहु कुछ कहल ना. अगिला दिने पता चलल कि पहिलका जहर खा के जान दे दिहलसि. दोसरका कोड़ा खा के गाँव छोड़ दिहलसि. आ तिसरका? तिसरका के जब भर गाँव घुमावल जात रहल त अपना घर का सोझा से गुजरत घरी अपना मेहरारू के आवाज लगवलसि कि, खाना परोस के रखीहे, बस दूइए गो घर बाकी रह गइल बा.

अब हम एह बात के संदर्भ ना बताएब कि काहे एह कहानी के कहनी. रउरा सभे समुझदार हईं असल बात बूझिए जाएब. से अब चलीं ओह कहाउतन पर. बजलऽ ए शंख बाकिर बाबा जी के पदा के. पियजवो खइनी, जूतवो खइनी आ रुपियवो देबे पड़ल. आ तिसरका कहाउत ह कि जे ढेर चालाक बनेला से तीन जगह मखेला. ई तीनो कहाउत अलग अलग हालात में इस्तेमाल होखेला बाकिर तीनों मे बहुते कुछ एक जइसन बा. अगर शंख आसानी से बाज गइल रहीत, पहिलहीं लेहन चुका दिहले रहतीं, आ ढेर चालबाजी ना कइले रहतीं त तीन जगह मखे के ना पड़ीत. अगर कवनो काम होखे से पहिले करे वाला के अतना हरा थका देव कि ओकर हवा निकल जाव त कहल जाला कि पदा दिहलसि ई काम. लइकाईं मे खेले वाला खेलन में हारे वाला गईंया पादत रहे, ओकरा आपन हार सकारत मिले वाला सजा भुगते पड़त रहे. पियजवा वाला कहाउतो का पाछा एगो छोट कहानी बा. मालिक अपना कर्जदार से बारह रुपिया के करजा वसूले खातिर ओकरा के तीन गो रास्ता बतवलें. या त बारह गो पियाज खा ले, या बारह जूता के मार सहि ले, ना त बारह गो रुपियवा दे दे. कर्जदार सोचलसि कि पियजवे खा लिहल जाव. चउथा पँचवा खात बाप बाप कर गइल त कहलसि कि मालिक जूतवे मार लीं. जूता पड़े लागत त पाँच सात जूता खात देह जवाब दे दिहलसि आ अंटी में से खोल के रुपियवा चुका दिहलसि. अइसहीं जरूरत से बेसी चालाक बने वाला के गोड़ में गंदा लाग जाव त ऊ अंगुरी से छू के देखी.आ फेर ओतनो से संतोष ना होखी त ओकरा के नाक से सूँघ के देखी. हम समुझत बानीं कि आजु के बतकुच्चन में शब्द के त ना बाकिर कुछ कहाउतन से रउरा सभे के परिचय जरूर करा दिहनीं आ बतकुच्चन के मूल मकसद इहे ह.

संसद चले भा ना, मंत्री इस्तीफा देस भा ना, एह से हमरा का मतलब? बाकिर गाँव के खेतिहर लोग बढ़िया से जानेला कि, का बरखा जब कृषि सुखानी? जब सब फजीहत होइए गइल त, नारी मुई घर संपति नासी, माथ मुड़ाय भए सन्यासी, बनला के का जरूरत?

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अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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