पिछला कई दिन से अलग अलग गोल आपन आपन गोलबन्दी करावे में लागल बाड़ी सँ. कहीं कवनो गोल के गुल्ला छटक जात बा त कहीं बरिसन से राजनीति का गुल्लक में डालल मेहनत पानी में जात लउकत बा. त हमहुं सोचनी कि काहे ना अबकि गोल, गोली, गोला, गुल्लक, आ गोलकी पर बतकुच्चन कर लिहल जाव. हालांकि गोल आ गोला पर बहुत दिन पहिलहुं एक बेर चरचा कइले रहीं. गोल के मतलब अगर बतावे चलीं त गोल अइसन रेखा होले जवना के कवनो ओर छोर ना होखे. एह मामिला में आजु के राजनीतिओ के कवनो ओर छोर नइखे बुझात. केने से चलीं कि एकर माथ गोड़ पकड़ा सको से बुझाते नइखे. संघ के दखलंदाजी के शिकायत करे वाला नेता संघे का दखलंदाजी का बाद मान जात बाड़ें आ फेर से वापिस लवट आवत बाड़ें. त मामिला भइल नु गोल वाला. अंगरेजी में गोल लक्ष्य के कहल जाला. फुटबाल हॉकी वगैरह में गोलपोस्ट होला जवना में गेंद चल जाव त कहल जाला कि गोल हो गइल. एह गोल के भोजपुरी जस के तस ले लिहले बिया बाकिर गोल के बचावे वाला गोलकीपर भोजपुरी में गोलकी बन गइल. अब एह गोलकी के मसाला वाला गोलकी से ना समुझे के चाहीं. मसाला वाला गोलकी गोल मिर्च के कहल जाला. अब ओह मसाला आ गोलकीपर दुनु ला भोजपुरी में गोलकी के इस्तेमाल कइल जाला. गोली बंदूको से निकलेला आ खेल का मैदान में लइकन के टई का रुप में. एह छोट छोट शीशा से बनल गोली से लइका खेलेलें जबकि बंदूक से निकलल गोली से अपराधी पुलिस आ सेना. एगो गोली जबानो से निकलेले जवन सामने वाला के मार गिरावेले. आ जइसे बंदूक से निकलल गोली वापिस ना लवटे वइसहीं से मुँह से निकलल बोली के गोलिओ वापस ना लवटे. ऊ आपन शिकार कइए के रहेले. कहे वाला इहो कहेलें कि बात के घाव लउके ना बाकिर बहुते गहिर चोट करेले. एहसे बोली के गोली बहुते सोच समुझ के चलावे के चाहीं. अब आईं गुल्लक पर. माटी के बनल गुल्लक में एगो छेद बनावल रहेला जवना में लइका लइकीन के बचत के शिक्षा दिहल जाला. ओह गुल्लक में रोज कुछ ना कुछ पइसा डाल के लइका लइकी आपन सिक्का जमा करेलें आ जब गुल्लक भर जाला त ओकरा के फोड़ के सगरी सिक्का बटोर रुपिया में बदल लिहल जाला भा ओकरा से कवनो चीझ बतुस खरीद लिहल जाला. राजनीति में काम करे वाला लोग एगो अदेख गुल्लक में आपन काम के सिक्का डालत रहेलें एह उमेद में कि कबो ई गुल्लक भरी आ तब ऊ आपन मनचाहा पद पा लीहें. बाकिर कुछ बदमाश लइका लइकी अइसनो होलें जे दोसरा के गुल्लक फोड़ सगरी जमा अपने बिटोर ले जालें. एह हालत में ओह लइका भा लइकी के दुखी होखहीं के जेकर जनम भर के कमाई दोसर लूट ले गइल. तब ओकरा के मनावे खातिर बाप महतारी के आगे आवे के पड़ेला आ ओकरा के कुछ भरोसा देबे के पड़ेला. अब एगो नया गुल्लक तूड़े के तइयारी चलत बा. अंतर अतने बा कि एह गुल्लक में साझीदारी में बचत बिटोरल गइल रहुवे आ अब ओकरा के एक फरीक अकेलही हपचे के फेर में बाड़न. कुछ लोग उनुका के लहका दिहले बा कि अलगा ना होखब त फेर तोहरा हाथे कुछ ना लागी. हो सकेला कि जबले रउरा एह बतकुच्चन के पढ़ब तबले ऊ गुल्लक फोड़ दिहल गइल होखी. देखीं कुछ सिक्का हमरो रउरा भेंटात बा कि ना. एह मौका पर एगो कविता याद आवत बा, संगही पढ़नी संगही खेलनी, संगही कइनी छलछंदर, हम चोन्हर साठो ना पवलीं तू लिहलऽ पचहत्तर. का हो भईया तोहरा चाहीं आ हमरा ना चाहीं?

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कुछ त कहीं......

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