बतकुच्चन – ६२

by | Jun 6, 2012 | 0 comments


हमरा हियाँ अइब त का का ले अइब? तोहरा किहाँ जाएब त का का खिअइब? एह भोजपुरी कहावत में समाज के सुभाव झलकत बा जहाँ आदमी सिर्फ अपना मतलब से मतलब राखे लागल बा. हर हाल में फायदा ओकरे होखे के चाहीं आ अइसे कि सामने वाला के पतो ना लागे भा पता लागबो करे त ऊ लाजे ओह बात के चरचा मत करे. लाजे भवे बोलसु ना सवादे भसुर छोड़स ना. आ एही सुभाव से पैदा होला ओरहन, शिकायत. आजु सभका सभका से कुछ ना कुछ के ओरहन बा. जनता के नेता से, नेता के जनता से. संसद के सोशल मीडिया से त सोशल मीडिया के संसद से. बाप महतारी के बाल बच्चन से त बाल बच्चन के बाप महतारी से. सभका ई त याद बा कि ओकर अधिकार, ओकर हक का ह? बाकिर ई सभे भुला चुकल बा कि ओकर जिम्मेदारी का बा? उहो कवनो बात ला जबाबदेह बा कि ना? ओरहन के संबंध रहनो से होला. अधिकतर ओरहन केहू के कवनो ना कवनो रहन से पैदा होला. रहन मतलब ओकर क्रिया कलाप, ओकर आदत, ओकर सुभाव. रहन सहन माने कि जिए के तरीका. अब हो सकेला कि केहू के रहन दोसरा से सहन ना होखत होखे त ओकरा ओह आदमी से ओरहन पैदा होखबे करी. सहन बर्दाश्त करे के कहल जाला त घर दुआर का सोझा पड़ल खाली जमीनो के जवन उठे बैठे के काम आवत होखे. शादी समारोह में इस्तेमाल होखत होखे. मजे क बात ई कि सहन सोझा के जमीन होला पिछवाड़ा के जमीन सहन ना कहाव. घर के बीच के जमीन आंगन कहाले. घर दुआर के बात निकलल त याद आइल कि घर में मेहरारू रहेली सं त दुअरा पर मरद. दुअरा द्वार भा दरवाजा ना होके मकान के सामने वाला हिस्सा के कहल जाला आ गाँव जवार का परंपरा में दुआर पर मरदे बइठका जमावे ले अंगना में मेहरारू. का घर में लुकाइल बाड़ त कह दिहल जाला बाकिर ई कबो ना सुनाव कि काहे दुअरा लुकाइल बाड़? काहे कि दुआर खुला होला, घर परदा में. अब आजु का जमाना में ना त घर रह गइल बाड़ी सँ ना दुआर. चलन में ड्राइंग रूम आ गइल बा, बइठका पता ना केने बइठ गइल. दिशा मैदान के शाब्दिक अर्थ जवन निकलत होखे, देहात में त एकर मतलब एके निकलेला शौच करे खातिर खुला मैदान का दिशा में निकलल. अब अलग बाति बा कि गाँवो जवार में अब शौचालय बने लागल बाड़ी सँ ना त पहिले एकरा के बहुते खराब मानल जात रहे कि दुअरा पर केहु शौचालय बनवा लेव. बाकिर एह खराब मनला में ओरहन ना रहत रहे, हिकारत रहत रहे. केहु के हेय देखल भा समुझल. ओरहन से मिलत जुलत एगो शब्द होला ओरचन. अब जे खटिया देखले होखी ऊ त जानत बा कि ओरचन का होला. बाकिर जे खटिया नइखे देखले ओकरा का मालूम कि खटिया ना डोले ओरचनवा काहे डोलेला? अगिला लाइन सुनावे लागीं त कुछ लोग के हमरो से ओरहन हो जाई कि बतकुच्चन के मतलब गैर जिम्मेदार आजादी ना होखे. बतकुच्चनो पूरा जबाबदेही का साथ जिम्मेदारी का साथे होखे के चाहीं. आ हमहुँ एह बाति से सहमत बानी. बाकिर बात निकली त फेर दूर तलक जइबे करी. आ एह दूर के सफर में बहुते कुछ अइसन पड़ाव आई जवन नीक ना लागी. दूर के ढोल सुहावन लागे के कहावत त सुने में अइबे करेला. नजदीक जाईं तब पता लागी कि असलियत में का बा. बतकुच्चनो का सफर में हमेशा नीके ना भेंटाई कबो कबो बाउरो से आमना सामना होखबे करी. काहे कि समाज में निमन बाउर सब कुछ मौजूद बा. रउरा का मिलत बा ई एह पर निर्भर बा कि रउरा का देखे खोजे निकलल बानी. लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल. लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल.

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अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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