भोजपुरी के पहिला सुपर गायक बलेसर, बालेश्वर राजभर जिनका के लोग बालेश्वर यादव के गलत नाम से बेसी जानेला, के एगो गीत ओह जमाना में बहुत मशहूर भइल रहे. कटहर के कोआ तू खइलऽ त ई मोटकी मुगरिआ के खाई. पिछला दिने मोटा माल के चरचा ढेर चलल रहे त दिमाग में इहे मोटकी मुगरिआ घूमे लागल रहुवे. कटहर के कोआ बड़ा लजीज लागेला. बाकिर एकरा साथे एगो बड़ मुसीबत होला कि रउरा एकरा के अकेले ना खा सकीं. आम जामुन सेव पपीता अकेले खाइल पचावल जा सकेला बाकिर कटहर ना. एकरा खातिर यार दोस्त लोग, भा पूरा परिवार के जुटावे पड़ी तबे कटहर ओराई आ मिल जुल के पच खप जाई. बाकिर तबो समस्या रहिए जाला कि एह मुगरिआ के का कइल जाव. मुगरिआ बेसवाद चीझु ह. अलगा बाति बा कि एकरो तरकारी बन जाला. बाकिर हमरा मुगरिआ से कवनो मतलब नइखे. हम त बस कोआ तक ले सीमित राखब. खा सकब त खाएब ना खा सकब त बाँट देब. कहल जाला कि कोआ खा के पान ना खाइल जाव. काहे कि पान के पीक से कोआ अउरी फूल जाई आ पेट फाटे लागी. भउजी जवना मोटका माल के चरचा कइली ऊ एह कोआ जस रहल जवना के एगो गोल खा पचा लिहलसि. आ बात ओहिजे रहि गइल रहीत अगर अटरिया पर बइठल कागा काँव काँव ना कर दिहले रहीत. अब मोटा माल खाए वालन के हालत ओह आदमी जस हो गइल बा जे कोआ खा के पान खा लिहले होखे. लेकिन मोटा माल के अनुवाद करे से काहे मना कइली भउजाई से पता ना चलल. कहना रहल कि एकर अनुवाद से ऊ भाव बदल जाई जवन मोटा माल से आवत बा. हालांकि अंगरेजी में फैट मनी पहिले से चलन में बा. हो सकेला कि ऊ ना चाहत होखस कि लोग मोटा माल से फैट मनी ले चहुँपो. दक्खिन भारत के लोग हिंदी कम अंगरेजी बेसी जानेला. हो सकेला कि कर्नाटक बेल्लारी के फैट मनी पर लोग के धेयान चलि जाव. शायद एही से मना कइले होखीहें ऊ कि मोटा माल के हर भाषा में मोटे माल रहे दिहल जाव. बाकिर मुगरिआ त सभका झेले के पड़ी. देर सबेर एकरा बजरीहें के बा. लोकतंत्र के लाठी बेआवाज चलेले आ सबले अधिका तब चलेले जब सामने वाला के एकर तनिको अंदाजा ना रहे. मुगरी आ मुंदरी एके जइसन लागेला. मुगरी छोट हथियार होला जबकि मुंदरी आभूषण. अंगुठी के मुंदरी कहल जाला. मुंदरी से चलत मुद्दई पर धेयान चलि गइल आ याद आइल कि मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. मेरे मन कछू अउर है बिधना के कछु अउर. कोयला विभाग सम्हारत पंच प्रधानो के ना लागल होखी कि एह काजल के कोठरी में घुसे वाला के देहे करीखा लगला बिना ना रहे. जे लोग धनबाद झरिया के कोयला खदान वाला इलाका का बारे में जानेला से इहो जानेला कि पूरा झरिया के नीचे जमीन में आग लागल बा आ झरिया बस दिन गिनत बावे. बाकिर झरिया जा के देखीं त पहिला नजर में इहे लागी कि सब कुछ ठीके ठाक बा. वइसही आजु के पंचो लोग के लागत बा शायद कि सबकुछ ठीके ठाक बा जबकि पूरा जमीन धधकत बा. बस एकर ताव उपर आइल बाकी बा. जातजात माफी माँगब कि चाहे अनचाहे बतकुच्चन राजनीतिक हो गइल बा. बाकिर करीं त का? समाज से फरका त बानी ना.

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One thought on “बतकुच्चन ‍ – ७७”

कुछ त कहीं......

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