बतकुच्चन ‍ – ८२

by | Oct 19, 2012 | 0 comments


“छोड़ु छोड़ु मखिया रे आजु के रतिया / हिया भरि देखुँ दमाद अलबेलवा रे.” बाकिर सासू करसु त का? “सासु के अँखिया लगल मधुमखिया रे/ देखहू ना पवली दमाद अलबेलवा रे.” आ दमाद के खासियत अइसन कि ना देखवले बने, ना लुकवले. सुनीं, “चलनी के चालल दुलहा / सूप के फटकारल रे / बर्हनी के मारल दुलहा / करछुल के दागल रे.” आ दुलहा त दुलहे होला. आई त हाथीए चढ़ि के नू. “चकुनी रे हथिया के दरदर अमरिया रे, ताहि चढ़ि आवे दमाद अलबेलवा रे.”

भोजपुरी लोकगीतन में भोजपुरी संस्कृति आ समाज के झलक लउकेला जवन शायद हर भाषा के लोकगीत खातिर कहल जा सकेला. लोक के गीत आ कवियन के कवितई दूनु अलग तरह के होला. लोक के गीत में बनाव सिंगार कम जिनिगी के ठेठ असलियत बेसी लउकेला जबकि कवि के कवितई में अलंकार, शब्दन के कलाकारी. भोजपुरी लोकगीतन के अथाह संपदा गँवे गँवे बिलाइल चलल जात बा. कुछ नुकसान त फिलिम वाले कइलें, कुछ टीवी चैनल करत बाड़ें. भोजपुरी से ना त फिलिम वालन के मतलब बा ना चैनल वालन के. सुनीं त सोचे के पड़ी कि ई कवना जगहा के भोजपुरी ह? ना त उच्चारण में सफाई मिली ना भाषा में. सब कुछ घाल मेल कर दिहल जाला. भोजपुरी भासा कम धंधा बेसी हो चलल बा.

खैर बाति बहक गइल. बाति त दमदा के होत रहुवे. दमाद अइसन चीझे होला कि ओकरा खातिर सब कुछ माफ. ओकरा खातिर ऊ सिर नवावे के पड़ जाला जवन कबो दोसरा खातिर ना नवल. आपन मान सम्मान से बेसी धेयान दमाद के मान सम्मान के राखे के पड़ जाला. जिनिगी भर के कमाई दमाद का चलते एके झटका में राख गोबर हो जाला. जवना गीत से शुरू कइनी ओह में कहल गइल बा कि चलनी के चालल आ सूप के फटकारल. मतलब कि दमाद खोजत घरी ओकरा के बढ़िया से बीन छाँट के चुनल जाला. बाकिर जब आपन धियवा अपना मरजी से आपन दुलहा चुन लेव त बाप महतारी खातिर कवनो राह ना मिले. भले बाद में कहत रहे कि “आपन धियवा निमन रहीत त बिरान पारीत गारी?” आपन बेटी ठीक रहल रहीत त दोसरा के का बेंवत रहे जे हमरा के गरिया दीत. सभे देखत बा कि दमादन का चलते सास ससुर के कइसन फजीहत होत बा. आ सब कुछ जानत समुझत जियते माखि घोंटे के पड़त बा. जवना नैतिक बल का सहारे सास ससुर आपन जिनिगी चलवलसि ऊ सब हेरा जाता एगो दमदा के चलते. आ दमाद अइसन कि केला के छिलका पर बिछिलाइल ढिमिलाइल चलत बा. शायद एही से लोग दमाद के गोदी में उठा के माँड़ो में ले आवत रहुवे. हो सकेला कि तब ई बाल विवाह का चलते होत रहल होखे आ बाद में ओकरे के परंपरा मान लिहल गइल कि दमाद चल के ना गोदी में उठा के माँड़ो में ले आवल जाव. कम से कम ओकर गोड़ त ना बिछलाई. काहे कि बिछला गइला का बाद फेस के बुक के पन्ना खराब होखहीं के बा. बद अच्छा बदनाम बुरा. बद के जब ले भद नइखे पिटाइल तब ले सब कुछ माफ साफ बा बाकिर एक बेर जब भद पिटा गइल त ओह बदनामी से उबरे के राह ना मिली.

एह बीच दोसर गाना शुरू हो गइल बा. हम त मँगनी आजन बाजन सिंङ्हा काहे लवले रे? थूकब तोरा दाढ़ी में बन्दूक काहे लवले रे? चले दीं अब, ढेर काम अझुराइल बा.

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(4)

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(7)
19 नवम्बर 2023
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(5)

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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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