बतकुच्चन ‍ – ९०

by | Dec 26, 2012 | 0 comments


गुजरात चुनाव का गरजा गरजी का बीच हम सोचनी कि हमरा का गरज बा एह में माथ घुसावे के. खास कर तब जब दुनु तरफ से, भा कहीं त तीन तरफ से मूसर गिरत होखे ओखरी में. बाकिर गुजरात चुनाव के एगो बड़हन खासियत बा कि पहिला बेर देश के कवनो राज्य में अइसन चुनाव होखत बा जवना में तीन गो मजबूत गोल के कप्तान संघी बाड़े. भाजपा में नरेन्द्र मोदी, कांग्रेसे में शंकर सिंह वाघेला आ परिवर्तन पार्टी में केशुभाई पटेल. एह तरह से देखीं त गुजरात पहिलका राज्य हो गइल बा जहवाँ आरएसएस हर तरफ मौजूद बा. आ हम शुरूए में कह दिहनी कि हमरा का गरज बा एह में पड़ला से. हमरा त बस बतकुच्चन करे के मसाला चाहीं जवन एह गरजा गरजी से भेंटा गइल.

गरज ई कि गरज माने त भइल मतलब आ एहीसे बनल शब्द गरजू. गरजू ऊ जेकरा कवनो गरज होखे. बाकिर गरजल गरजू के बेंवत के बात ना होला. गरजेला त ऊ जे जंगल के शेर जस होखे. आसमान में बादल गरजेला बिजली कड़के का साथे. अलग बात बा कि कड़क के रोशनी पहिले लउक जाला आ ओकर गरजन बाद में. एहिजा तनी उलटा बा. गरजल त सुनात बा, बाकि ओकरा कड़क के रोशनी अगिला हफ्ता नजर आई. जइसन हमरा देखे में आवत बा गरजत एके जाना बाड़े. बाकी लोग आपन आपन गरज देखावत अरज कइले जात बा जनता से कि तनी हमरो सुन लीं, तनी हमरो के देख लीं. अरज माने निहोरा आ अरजी माने निहोरा करत दरखास्त, आवेदन. अरज आ आरजू में ढेर ना त कुछ ना कुछ नाता त होखबे करेला. आरजू माने तमन्ना आ ओही तमन्ना से अरज बने ला. हालांकि कपड़ा वाला बजाज किहाँ अरज के मतलब कपड़ा के चौड़ाई होला. कहीं त कपड़ा के अरज कतना बा एहीसे ओकर इस्तेमाल तय होला. आ आदमी के गरज के अरज कतना बा एहसे ओकर इस्तेमाल.

जनता के गरज के अरज पसार के ओकरा के आपन मोहरा बना लिहल जाला अपना नाम पर मोहर लगावे खातिर. आजु गुजरात में होत बा साल दू साल में सगरी देश में होखे वाला बा. अरज करे वाला गरजे वाला से सवाल करत बाड़े कि ई तू जवना नाम पर फउँकत बाड़ऽ ऊ तोहार अरजल ह का? अनका धन पर कनवा राजा बनल बाड़? पइसा केन्द्र दिहलसि आ नाम तू कमाए चाहत बाड़? त गरजे वाला पूछत बा कि अरजल त ई तहरो ना ह. सगरी अरजल त देश के जनता के ह आ ओह पर हमरो ओतनो हक बा जतना तोहार.

अरजल माने कमाई कइल, कमाई से बनावल धन, ई अरजल अर्जन के बिगड़ल रूप ह आ ऊ अरज अर्जी से निकलल रूप. गर्जन से निकलल गरज त तेज आवाज बन गइल आ गर्ज से निकलल गरज गरजू बना दिहलसि. जइसे खुदगर्ज् माने जेकरा बस अपने से गरज होखे. पाँच कवर भीतर तब देवता पितर. देश के नेतवनो के इहे हाल देखे के मिलत बा. ईमानदार उहे रहि गइल बा जेकरा बेईमानी करे के मौका ना मिलल. मने मन सभकर इहे आरजू बा कि अनकर धन पाईं त नौ मन तौलाईं. अब एह खातिर केहू गरजत बा केहू अरजत बा. बाकि हम चलत बानी. बतकुच्चन त चलत रही. बाद बाकी देखल जाई. चलत चलत फेरू दोहरवले जात बानी कि बाकि आ बाकी के फरक नोट कर लीं. एगो बाकिर के छोट रूप ह दोसरका बकाया वाला बाकी.

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