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बतकुच्चन ‍ – ९२

by | Jan 1, 2013 | 0 comments


समाज में भड़इता आ मीडिया में भाँड़ बहुते मिल जइहे. अब भड़इता त ऊ जे भाड़ा देव बाकि भाँड़? आ फेर भाँड़ आ भँड़ुआ में का फरक? भँड़सार त सुनलही होखब सभे जहाँ अनाज भूंजाला. मीडिया में भँड़सारो होला जहाँ तरह तरह के खबरन के भुंजल जाला बाकि आजु हमार बतकुच्चन भाँड़ आ भँड़ुए पर टिकल रही. हो सकेला कि भाँड़ से भँड़ुका के भरम हो जाव बाकिर भँड़ुका माटी के बनल बरतन होला जबकि भाँड़ माटीओ के सोना बता देले. हालांकि जब भाँड़ आ भँड़ुआ में चुने के सवाल होखी त कवनो दिने भाँड़ के चुन लिहल जाई. काहे कि भाँड़ चारण करेला. सुने वाला के अतना बड़ाई कर देला कि ओकरो भरम हो जाला कि साँचहू ओकरा में कुछ खासियत बा आ तब ऊ ओह भाँड़ के भँड़ुका इनाम से भर देला. अब एह भाँड़गिरी के प्रचलन मीडिया खास कर के टीवी चैनलन पर जम के होखे लागल बा. आ एह जमाना में अखबार आ पत्रिकन का मुकाबले टीवी चैनल भारी पड़े लागल बाड़े. जवन खबर रउरा आजु पढ़त बानी ओकरा के ऊ काल्हुए अपना चैनल पर उगिल दिहले होखीहें. अलगा बात कि ओतना चमक दमक का बावजूद अखबार के जवन मान बा तवन टीवी चैनल के नइखे. लोग अखबार में छपल पर जल्दी आ बेसी विश्वास कर लेला जबकि टीवी के खबर के चटपटिया स्वाद से आनन्द लेबे के बात समुझल जाला. अब एह भाँड़गिरी का चरचा का बीच भँड़ुआ छूटल जात बाड़े स. जानते होखब कि भँड़ुआ केकरा के कहल जाला. भँड़ुआ दलाल होखला का बावजूद दलालो से बदतर होला. दलाल त अगुआ, बीचवनिया जइसन होला हालांकि तनी बदनाम हो गइल बा. जबकि भँड़ुआ के इज्जत ना त कहियो रहल ना होखी. अब रउरा पूछ सकीले कि दलाल आ भँड़ुआ में दलाल नीमन कइसे हो गइल आ भँड़ुआ खराब काहे? त जानीं कि दलाल रउरा स्वस्थ जरूरत के पूरा करावेला जबकि भँड़ुआ रउरा खराब जरूरतन के. दलाल जमीन भा सामान बिकवावे ला ओकर बड़ाई कर के रउरा के उकसाई खरीद लेबे खातिर. जबकि भँड़ुआ रंडी पतुरियन के सौदा करावे खातिर जानल जालें. अब कहब कि मीडिया में रंडी पतुरिया के चरचा कइसे आ गइल त जान लीं कि बहुते नेता ओहू ले गइल गुजरल होले आ ओह नेतवन के चमचई बड़ाई करे वाला भाँड़ के भँड़ुआ ना कहल जाव त का कहल जाव? जानत बानी कि एह बतकुच्चन से कुछ मीडिया वालन के छनछनी लाग सकेला बाकिर हम त ई सोच के निश्चिंत बानी कि जंगल में मोर नाचल त देखी के? भोजपुरी में नीमन बेजाँय लिखिए दिहनी त पढ़ी के? आ जवना लोगन के हम भाँड़ आ भँड़ुआ से तुलना करत बानी ओह लोग के भोजपुरी त दूर हिन्दीओ ना आवे. हो सकेला कि आवत होखे बाकिर जाने ना दी लोग. एह जाड़ा पाला का दिन में भाँड़ के चरचा से जवन गरमी मिलत बा तवना से भँड़सार के गरमी जस सुकून मिलत बा. आजु का जमाना में हीटर आ ब्लोअर का सोझा हो सकेला कि रउरा यादो ना होखे बोरसी के. बोरसी में आग जला के रखात रहुवे जवन ढेर देर ले गरम राखत रहुवे कोठरी दलान के. दुअरा बइठल मरद लोग त कउरा ताप लेला बाकिर घर के लड़िकी मेहरारूवन खातिर बोरसिए के सहारा रहि जाला गाँव देहात में. आजु जब लिखत बानी त एहिजा के तापमान पाँच डिग्री के लगभग बा. खिचड़ी ले त अइसने चले के बा. चलीं अपना अपना काम पर चलल जाव आ जिनका नइखे जाए के से जाव देह सेंक लेव टीवी पर भँड़ुआगिरी देखत.

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