राजनीतिक माहौल बिगाड़े पर आमादा माओवादियन के हमदर्द

by | Nov 30, 2011 | 0 comments

– पाण्डेय हरिराम

बाईबिल के एगो कहना ह कि “हू लिव्स बाई सोर्ड, डाइज बाई सोर्ड”. माने कि तलवार का भरोसे जिये वाला तलवारे से मारल जाला. बदनाम माओवादी नेता एम कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी का मामिला में ई बात बहुते सही उतरल. मेदिनीपुर का जंगल में पुलिस आ अर्द्धसैनिक बल के संयुक्त कार्रवाई में किशनजी के मराइल जतन बड़ घटना रहल ओहसे बड़ रहल ओह घटना के बाद के प्रभाव. किशनजी के मरइला से पश्चिम बंगाल के बुद्धिजीवी आ राजनीतिक दल कई गुट में बंटा गइल बाड़े. आवे वाला दिन में एहिजा के “सिविल सोसायटी” में एह मसला के लेके बड़हन आंदोलन शुरू होके के अनेसा बा. माओवादियन के हमदर्द आ विप्लवी कवि वारवरा राव त पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव से भेंट करके किशनजी के मौत के जांच करावे के मांग कर दिहलें. माकपा के बड़का नेतवो लोग किशनजी के पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक करे के माँग कइले बा. माओवादियों से सहयोग करे वाला बुद्धिजीवियन के संगठन एसोसियेशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डिमोक्रेटिक राइट्स सुप्रीम कोर्र्ट के जज से जांच करावे के माँग करत बा. इनकर कहना बा कि किशनजी के पकड़ के मारल गइल. खबर बा कि किशनजी के महतारी एपीडीआर का मार्फत एह मौत का खिलाफ कोर्ट जाये के धमकी दिहले बाड़ी. माओवादियन आ राज्य सरकार का बीचे बीचबचाव करे वालन के कहना बा कि एह मौत से शांति वार्ता पर उलटा असर पड़ी. एह में से एक जने के कहना बा कि अब शायदे माओवादी बतियावे खातिर तइयार होखीहें. ई सगरी हमदर्दी माओवादी नेते के लेके बा. अब सवाल उठऽता कि जब माओवादी नेता सैकड़ों लोगन के मरलन, कई के मार के पेड़ से लटका दिहल, सुरंग लगा के पुलिस वाहन उड़ा दिहलन तब कतहीं कवनो मानवाधिकार के हल्ला काहे ना भइल. केहु ओह हत्यन पर कुछ ना बोलल. अब इनकर हमदर्द जांच के मांग करत बाड़े बाकिर जाँच करी के ? आ अगर जांच करबो करी त का ई लोग ओकरा नतीजा के मानी ?

अबसे कुछ महीना पहिले सरकार जंगलमहल के दस हजार बेरोजगारन के रोजी रोजगार देबे के योजना बनवलसि. दरखास्त मँगइलसि त ओह इलाका के सगरी आदिवासियन का घर पर रातेरात पोस्टर सटा गइल कि जे दरखास्त दी ओकर जान ले लिहल जाई. तब एकरा खिलाफ केहु कवनो आवाजना उठावल. आखिर काहे ? एहिजा सियासी हलका में चरचा बा कि किशनजी के एहले मार दिहल गइल कि ऊ ममता का खिलाव बगावत कर दिहले रहुवे. ममता बनर्जी के पार्टी तृणमूल कांग्रेस के एगो पुरान बड़का नेता कबीर सुमन अपना जीवनी “निशानेर नाम तापसी मल्लिक” में ममता बनर्जी आ किशनजी के मुलाकात के पूरा ब्यौरा दिहले बाड़न. ई भेंट तृणमूल कांग्रेस के मुख्यालय में भइल रहे इ ओह समय राजा सारखेल अउर प्रसून चट्टोपाध्यायो मौजूद तहलें. राजा आ प्रसून अबहीं जेल में बाड़े आ कबीर सुमनो अब तृणमूल कांग्रेस में नइखन. बाकिर किशनेजी के समर्पित एह किताब में जवने कुछ लिखल बा तवना के खंडन नइखे कइल गइल.

एह आरोप में चाहे जतना दम होके बाकिर का निरीह लोगन के हत्या अपराधी के मरा गइल का साचहुँ मानवाधिकार के हनन हवे ? बातचतुरी संगठन एपीडीआर ओह लोगन खातिर ई सब करत बा जे कबो लोकतंत्र पर भरोसे ना कइल. जवना घरी केहु गणतांत्रिक प्रक्रिया नकारत बंदूक उठा लिहल ओकर गणतांत्रिक अधिकार त ओही घरी खतम हो जाला. कवनो निर्बल के हत्या करे वाला के जिये के हक खुद बखुद खतम हो जाला. किशनजी के मौत खातिर माओवादियन के हमदर्द बुद्धिजीवी भा एपीडीआर कार्यकर्ता आखिर काहे अतना परेशान बाड़न ? एऋ सवाल के उत्तर खोजल जरूरी बा. आदिवासी आ पिछड़ल इलाकन में माओवादियन के सांगठनिक पसार के गहराई से देखम त पाएम कि अधिकतर इलाका में ई तबे गइले जब ओहिजा कवनो प्रकल्प खातिर जमीन लिहल गइल, बांध बनावल गइल, कारखाना लगावल गइल, बा कवनो दोसरा काम खातिर आदिवासियन के बेदखल कइल गइल. आदिवासियन के बेदखली से पहिले माओवादी एह इलाकन में ना लउकस. आदिवासी इलाकों में बेदखली के खिलाफ माओवादियन के माँग का ह ? सगरी मांग ओह इलाका के विकास से जुड़ल होला, एहू में ऊ आदिवासियन के उनुका जमीन पर अधिकार दिलावे बा मालिकाना हक बरकरार रखवावे पर बेसी जोर देलें. माओवादी राजनीति के उभार का चलते नेहरू से लेके मनमोहन सिंह के शासनकाल का दौरान बनल विकास के सीमा बहुते तेजी से आम जनता का सोझा उजागर भइल बा. माओवादी बुर्जुआ विकास के तमाम बातन के महानगरीय-मध्यवर्गीय सीमा उजागर कइले बाड़न.

माओवादी अंधाधुंध विकास के नवउदारवादी नीतियन के देश भर में जनांदोलन खड़ा करके विरोध कइले बाड़न. कई जगहा ऊ सरकार का पाछा हटे खातिर मजबूर कइले बाड़न, एहमें गरीबी के ऊ अपना हिंसा खातिर जायज हथियार बतवले बाड़े. माओवाद का खिलाफ कुछ लोग ई तर्क देत बा कि हमनी का ओकनी का खिलाफ राजनीतिक जंग लडे के चाहीं. ओहलोग के जनता में अलग-थलग करे के चाहीं. उनुका खिलाफ जनता के गोलबंद करे के चाहीं. सवाल ई बा कि माओवादी हिंसा का बीच जनता में राजनीतिक प्रचार कइल जा सकेला ? का माओवाद के विकल्प जनता के समुझावल जा सकेला ? राजनीतिक प्रचार खातिर शांति के माहौल पहिला शर्त होला आ माओवादी अपना एक्शन से शांति के माहौले के निशाना बनावेलें. ऊ जवना माहौल के सृष्टि करेलें ओहमें राज्य मशीनरी के सख्त दखल का बिना कवनो दोसर विकल्प संभवे नइखे.राज्य की मशीनरीए माओवादी भा आतंकी हिंसा के दमन कर सकेले. दोसर बाति ई कि एक बेर जब शांति के माहौल बिगड़ जाला त ओकरा के फेर से बनावे मं बहुते समय लागेला. माओवादी आ उनुकर समर्थक बुद्धिजीवी शांति के माहौल खतम करे वाला माओवादी हरकत से ध्यान हटावे खातिर पुलिस दमन, फर्जी मुठभेड़ वगैरह के बहाना का तरह इस्तेमाल करेलें.

माओवादी राजनीति भा आतंकी राजनीति के सबले बड़का योगदान होला सामान्य राजनीतिक माहौल के खात्मा. ऊ जहँवे जाले ओहिजे के माहौल बिगाड़ देलें. आ अइसन कर के ऊ डर आ नाकारा के माहौल बनावेले. आ एही सहारे उनुकर दावा होला कि जनता उनुका साथे बिया. साँच त ई बा कि आदिवासी बहुल इलाकन से राजनीतिक पार्टियन के लोग चुनाव में जीतत आवत रहेला. एहसे किशनजी के मौत लेके उठावल जात सवाल एगो खास मकसद से बा. एहसे ना त एह पर सरकार के ध्यान देबे के चाहीं ना जनता के एह झाँसा में आवे के चाहीं.

अब सवाल उठत बा कि का किशनजी के मरइला से जवन शुन्य बनल बा ओकरा चलते एहिजा माओवादी आंदोलन शांत हो जाई भा जंगलमहल शांत हो जाई. शायद अइसन ना हो पाई काहे कि ई सगरी हल्लागुल्ला एही खातिर बा कि सरकार आपन दखल बन्द करे आ माओवादियन के एह नुकसान से उबरे आ किशनजी के विकल्प खोजे के मौका मिल जाव.
(29 नवम्बर 2011)


पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखल करेनी.

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