राष्ट्र के दिहल राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के संबोधन भोजपुरी में

by | Aug 14, 2015 | 2 comments

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हे देशवासी;
हमनी के आजादी के 68वां सालगिरह के पहिले वाला साँझ हम रउरा सभ के आ दुनिया भर के भारतवासी लोग के हार्दिक अभिनंदन करत बानी. हम अपना सशस्त्र सेना, अर्ध-सैनिक बल आ आंतरिक सुरक्षा बल के सदस्यनो के खास अभिनंदन करत बानी. हम अपना ओह सगरी खिलाड़ियनो के बधाई देत बानी जे भारत आ विदेशो में आयोजित भइल प्रतियोगितन में शामिल भइले आ पुरस्कार जीतले. हम, 2014 के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थीओ के बधाई देत बानी, जे देश के नाम रोशन कइलन.

मित्रलोग;

15 अगस्त, 1947 के हमनी का राजनीतिक आजादी हासिल कइनी. आधुनिक भारत के उदय एगो ऐतिहासिक खुशी के मौका रहल, बाकिर ई देश के एह छोर से दोसरा छोर ले बहुते पीड़ा के खून से नहाइलो रहुवे. अंगरेजी शासन का खिलाफ भइल महान संघर्ष के पूरा दौर में जवन आदर्श आ भरोसा बनल रहुवे तबन ओह घरी दबाव में रहुवे.

महानायकन के एगो महान पीढ़ी एह विकट चुनौती के सामना कइलसि. ओह पीढ़ी के दूरदर्शिता आ पोढ़पन हमहन के एह आदर्शन के, खीस आ तकलीफ के दबाव में बिछिलाए से भा गिर जाए से बचवलसि. ऊ असाधारण लोग हमनी के संविधान के सिद्धांतन में, सभ्यता से आइल दूरदर्शिता से जनमल भारत के गर्व, स्वाभिमान आ आत्मसम्मान के मिलवले, जवन पुनर्जागरण के प्रेरणा दिहलसि आ हमनी के आजादी मिलल. हमहन के सौभाग्य बा कि हमनी के अइसन संविधान मिलल जवन महानता क तरफ भारत के यात्रा के शुरुआत करवलसि.

एह दस्तावेज क सबले मूल्यवान उपहार रहल लोकतंत्र, जवन हमनी के पुरातन मूल्यन के नयका संदर्भ में आधुनिक रूप दिहलसि आ तरह तरह के आजादी के संस्थागत कइलसि, ई आजादी के शोषितन आ वंचितन ला एगो जानदार मौका में बदल दिहलसि आ ओह लाखो लोग के बरोबरी का संगही सकारात्मक पक्षपात के उपहार दिहलसि जे सामाजिक अन्याय से पीड़ित रहले. ई एगो अइसन लैंगिक क्रांति के शुरुआत कइलसि जवन हमनी के देश के बढन्ती के उदाहरण बना दिहलसि. हमनी का ना चलत परंपरन आ कानूनन के खतम कइनी जा आ शिक्षा अउर रोजगार के जरिए औरतन ला बदलाव तय करा दिहनी. हमनी के संस्था सभ एही आदर्शवाद के बुनियादी ढांचा हई सँ.

हे देशवासी;

निमनो से निमन विरासत के बचवले राखे ला ओकर लगातार देखभाल जरूरी होले. लोकतंत्र के हमहन के संस्था दबाव में बाड़ी सँ. संसद बातचीत का बजाय टकराव के अखाड़ा बन गइल बाड़ी सँ. एह समय, संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के ओह कहना के दोहरावल सही होखी, जे उहांँ के नवंबर, 1949 में संविधान सभा में अपना समापन व्याख्यान में दिहले रहीं :

‘कवनो संविधान के चलावल पूरा से संविधाने के सुभाव पर निर्भर ना होखे. संविधान त राज्य के विधायिका, कार्यपालिका आ न्यायपालिका जइसन अंगे भर दे सकेला. ओह अंगन के चलावल जिनका पर निर्भर करेला ऊ ह जनता आ ओकर मनसा अउर राजनीति के साकार करे ला ओकर बनावल राजनीतिक गोल. ई के बता सकेला कि भारत के जनता आ ओकर बनावल गोल कवना तरह से काम करीहें ?’

अगर लोकतंत्र के संस्थाच दबाव में बाड़ी सँ त समय आ गइल बा कि जनता आ ओकर गोल एह पर गंभीर चिंतन करेसु. सुधार के उपाय भीतर से आवे के चाहीं.

हे देशवासी;

हमहन के देश के बढ़न्ती के आकलन हमनी के मूल्यन के बेंवत से होखी, बाकिर साथही ई आर्थिक प्रगति अउर देश के संसाधनन के बरोबरी वाला बाँटो से तय होखी. हमनी के अर्थव्यवस्था भविष्य ला बहुत आशा बंधावत बिया. ‘भारत गाथा’ के नया अध्याय अबहीं लिखल बाकी बा. ‘आर्थिक सुधार’ पर काम चलत बा. पिछला दस बरीस का दौरान हमनी के बढ़न्ती आ् हासिल सराहे जोग रहल, आ बहुते खुशी के बात बा कि कुछ गिरावट का बाद हमनी का साल 2014-15 में 7.3 प्रतिशत के विकास दर फेरु पा लिहले बानी. बाकिर एहसे पहिले कि एह बढ़़न्ती के फायदा सबले धनी लोग के बैंक खातन में पहुंचे, ओकरा गरीब से गरीब आदमी ले चहुँपे के चाहीं. हमनी के एगो समहरी लोकतंत्र आ अर्थव्यवस्था ह. धन-दौलत के एह इन्तजाम में सभका ला जगहा बा. बाकिर सबले पहिले ओकरा मिले के चाहीं जे अभाव आ किल्लत के कष्ट झेलत बाड़े. हमनी के नीतियन के आगे चल के ‘भूख से मुक्ति’ के चुनौती के सामना करे में बेंवतगर होखे के चाहीं.

हे देशवासी;

मनुष्य अउर प्रकृति के बीच के पारस्परिक संबंधनन के बचावे राखे पड़ी. उदारमन वाली प्रकृति अपवित्र कइला पर आपदा बरपावे आ बरबाद करे वाली शक्ति में बदल सकेले, जवना चलते जानमाल के बड़हन नुकसान होला. एह घरी, जब हम रउरा सभे के संबोधित करत बानी देश के बहुते हिस्सा बडहन कठिनाई झेलत बाढ़ के बरबादी से उबरे में लागल बाड़े. हमनी के ओह पीड़ितन ला फौरी राहत का साथही पानी के कमी आ अधिकाी दुनू के काबू करे के लमहर दिन चले लायक उपाय खोजे के पड़ी.

हे देशवासी;

जवन देश अपना अतीत के आदर्शवाद भुला देला ऊ भविष्य से बहुते कुछ खासो गँवा देला. कई पीढ़ियन के आकांक्षा आपूर्ति से कहीं अधिका बढ़ला का चलते हमनी के विद्यादायी संस्थान के गिनिती लगातार बढ़ल जात बा बकिर नीचे से ऊपर ले गुणवत्ता के का हाल बा ? हमनी का गुरु शिष्य परंपरा के बहुते तर्कसंगत गर्व से याद करीलें, त फेर हमनी का एह संबंधन का जड़ में समाइल नेह, समर्पण आ प्रतिबद्धता के काहे छोड़ दिहनी जा ? गुरु कवनो कुम्हार के मुलायम आ कुशल हाथे जइसन अपना शिष्य के भविष्य बनावेला. विद्यार्थीओ श्रद्धा आ विनम्रता से शिक्षक के ऋण सकारेला. समाज, शिक्षक के गुण आ उनका विद्वता के मान सम्मान देला. का आजु हमनी के शिक्षा प्रणाली में अइसन होखत बा? विद्यार्थियन, शिक्षकन आ अधिकारियन के रुक के आपन आत्मनिरीक्षण करे के चाहीं.

मित्रलोग;

हमनी के लोकतंत्र रचनात्मक ह काहे कि ई बहुलवादी ह, बाकिर एह विविधता के सहनशक्ति आ धीरज से पोसे के चाहीं. मतलबी लोग सदियन पुरान एह पंथनिरपेक्षता के नष्ट करे का कोशिश में आपसी भाईचारा के चोट पहुंचावेले. लगातार बेहतर होखत जात प्रौद्योगिकी के तुरते फुरत संप्रेषण के एह युग में हमहनके ई तय करे ला सतर्क रहे क चाहीं कि कुछ इनल-गिनल लोग के कुटिल चाल हमहन के जनता के बुनियादी एकता पर कबो हावी मत हो पावे. सरकार अउर जनता, दुनू ला कानून के शासन परम पावन होला बाकिर समाज के रक्षा कानूनो से बड़ एगो शक्तिओ करेले आ ऊ ह मानवता. महात्मा गांधी कहले रहीं, ‘रउरा सभके मानवता पर भरोसा ना छोड़े के चाहीं. मानवता एगो समुद्र ह आ अगर समुद्र के कुछ बूंद गन्दा हो जाव त समुद्र गंदा ना हो जाले.’

मित्रलोग;

शांति, मैत्री आ सहयोग अलग अलग देशन आ लोग के आपस में जोड़ेला. भारतीय उपमहाद्वीप के साझा भविष्य के पहिचानत, हमनी के आपसी संबंध मजगर करे के होखी, संस्थागत क्षमता बढ़ावे के होखी आ क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार ला आपसी भरोसा के बढ़ावे होखी. जहां हमनी का दुनिया भर में आपन हित आगे बढ़ावे का दिसाईं प्रगति करत बानी, ओहिजे भारत अपना नियरे के पड़ोस में सद्भावना आ समृद्धि बढ़ावहुं ला बढ़-चढ़ के काम करत बा. ई खुशी के बात बा कि बांग्लादेश का साथे लमहर दिन से लटकल आवत सिवान के विवाद आखिर में सलटा लीहल गइल बा.

हे देशवासी;

जहाँ हमनी का दोस्ती में आपन हाथ अपना मन से आगे बढ़ावेनी जा ओहिजे हमनी का जानबूझ के कइल जात उकसावे वाली हरकतन के आ बिगड़त सुरक्षा माहौल से आंख ना मूंद सकीं जा. सीमा पार से चलावल जात शातिर आतंकवादी समूहन के निशाना भारत बन गइल बा. हिंसा के भाषा आ बुराई के राह के अलावा एह आतंकवादियन के ना त कवनो मजहब बा ना ई कवनो विचारधारा मानेलें. हमनी के पड़ोसियन के ई तय क लेबे के चाहीं कि ओकरा जमीन के इस्तेमाल भारत से दुश्मनी राखे वाला ताकत ना कर पावसु. हमहन के नीति आतंकवाद के इचिको बर्दाश्त ना करे वाला बनल रही. राज्य के नीति के एगो औजार का तरह आतंकवाद के इस्तेमाल के कवनो कोशिश के हमनी का खारिज करत बानी. हमहन के सिवान का भीतर घुसपैठ आ अशांति फइलावे के कोशिशन से कड़ाई से निपटल जाई.

हम ओह शहीदन के श्रद्धांजलि देत बानी जे भारत के रक्षा में अपना जीवन के सर्वोच्च बलिदान दिहले. हम अपना सुरक्षा बलन के साहस आ वीरता के नमन करत बानी जे हमनी के देश के क्षेत्रीय अखंडता के रक्षा आ हमनी के जनता के हिफाजत ला निरंतर चौकस रहत बाड़ें. हम खास क के ओह बहादुर नागरिकनो के सराहत बानी जे अपना जान के जोखिम के परवाह कइले बिना बहादुरी देखावत एगो दुर्दांत आतंकवादी के पकड़ लिहलें.

हे देशवासी;

भारत 130 करोड़ नागरिक, 122 गो भाषा, 1600 बोलियन आ 7 गो मजहबन के एगो जटिल देश ह. एकर ताकत, सोझा लउकत विरोधाभासन ले रचनात्मक सहमति का साथे मिलावे के आपन अनोखा बेंवत में समाइल बा. पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दन में ई एगो अइसन देह ह जवन ‘मजबूत बाकिर ना लउके वाला धागन’ से एके सूत्र में बान्हल गइल बा आ ‘ओकरा ईर्द-गिर्द एगो प्राचीन गाथा के मायावी विशेषता पसरल बा, जइसे कवनो सम्मोहन ओकरा मस्तिष्क के अपना वश में क लिहले होखे. ई एगो मिथक आ एगो विचार ह, एगो सपना आ एगो सोच ह, बाकिर साथही ई एकदमे असली, साकार आ सर्वव्यापी हवे.’

हमहन के संंविधान से मिलल उपजाऊ जमीन पर, भारत एगो जीवंत लोकतंत्र बन के बढ़ळ बा. एकर जड़ गहिर ले गइल बाड़ी सँ बाकिर पतई मुरझाए लागल बाड़ी सँ. अब एकरा के नया करे के समय आइल बा.

अगर हमनी का अबहियें डेग ना उठवनी जा त का सत्तर बरीस बाद हमहन के वारिस हमनी के ओतने सम्मान आ प्रशंसा साथे याद कर पइहें जइसे हमनी का 1947 में भारतवासियन के सपना साकार करे वालन के करीलें. जबाब भलही सहज ना होखे बाकिर सवाल त पूछही के पड़ी.

धन्यवाद,

जय हिंद!
(स्वतंत्रता दिवस के 68वां सालगिरह का पहिले वाला साँझ राष्ट्र के दिहल राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हिन्दी संबोधन के अनधिकृत अनुवाद. कवनो तरह के कमी भा गलती ला क्षमायाचना का साथे दीहल गइल बा. बाकिर अगर भोजपुरी के संविधान से मान्यता दिआवे के बा त एह तरह के कोशिश लगातार होखे के चाहीं. भोजपुरी खातिर बाते कइला भर से काम नइखे चले वाला भोजपुरी खातिर भोजपुरी में कामो करे के पड़ी. रउरा सभे के स्वतंत्रता दिवस के शुभकामना का साथे :
– प्रकाशक, भोजपुरिका )

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2 Comments

  1. Rajni Kant Singh

    बहुत खूब

  2. Ashok Dvivedi

    “महामहिम राष्ट्रपतिजी के स्वतत्रता दिवस का पूर्वसंध्या पर दिहल भासन का बहाने रउवा भोजपुरी खातिर भोजपुरी में काम करे क अपील बहुत काम के बा ।एह दिसाईं ध्यान दिहल जाव त ईहे पता चली कि ई अपील ओतने लोग तक पहुंचल बा ,जेतना लोग भोजपुरिका आ भोजपुरिका के गंभीर लेख भा संपादकी पढ़त बा ।ई हमनी क दुर्भागे कहाई कि भोजपुरी में पैंतीस बरिस से लिखत-पढ़त आ “पाती” जइसन पत्रिका निकालत हो गइल बाकि भोजपुरी पढ़वइयन क अकाले लउकल ।सबसे बड़ बात कि जवना जनून से पछिला पीढ़ी एकरा के पोसे पाले बढ़ावे में लागल रहे ऊ जनून आ समर्पण अब नइखे ।अब आपन आपन डफली आ आपन आपन राग वाला गिरोह जरूर बन गइल बाड़े स s।

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अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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