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विश्वगुरु भारत आ मैकाले के शिक्षा नीति

by | Aug 30, 2015 | 0 comments

– डॅा० जयकान्त सिंह ‘जय’

JaiKantSighJai

मैकाले शिक्षा पद्धति से अरजल शिक्षा में अफीमो से ज्यादे नशा बा. जवना के अरजते मनई के मन-मिजाज अइसन बउराला-पगलाला कि ओकरा भारतीय सभ्यता-संस्कृति, भाषा-शिक्षा, नैतिकता-आध्यात्मिकता वगैरह सबकुछ बकवास, फाल्तु, गँवारू, पिछड़ल वगैरह लागे लागेला. सदियन-सदियन तक आपन आर्यावर्त (भारतवर्ष) विश्वगुरु रहे. ज्ञान के पहिला सूरज भारते में उगल रहे आ कालांतर में भारतवंशी आर्य (सभ्य,सम्पन्न,शिक्षित) लोग के वंशज सउँसे विश्व में फइल के ओह ज्ञान अँजोर के फइलावल लोग. अतना सुनते मैकालई शिक्षाविद्, विद्वान-विचारक, अर्थशास्त्री लोग का मधमाँछी लाग जाला. ओह लोग के अनुसार दुनिया में आज जवन कुछ ज्ञान-विज्ञान से जुड़ल उपलब्धि बा, ऊ सब अँग्रेज़ आ अँग्रेज़ी के देन बा. अब ओह लोग से गलथेथी क के समय हर्जा त ना कइल जा सके, बाकिर, ओह लोग के नीसा फाड़े खातिर बात जरूर राखल जा सकत बा.

जहिया विश्व के आउर देश के आदिम जन के समूह में रहल-सहल त दूर खाहहूँ-पेन्हे आ ढंग से रहे-सहे के सहूर ना रहे, ओकरा सदियन पहिले से आर्यावर्त (आर्य, मतलब – सभ्य, सम्पन्न आ सुशिक्षित जन के आवर्त, मतलब – देश, निवास स्थान) के ऋषि वेदन का मंत्रन/ऋचन के दरसन करत रहले. जवना देश भा देश का जन समुदाय के पहिलके पोथी ऋग्वेद अइसन ज्ञानग्रंथ होखे, पहिल ग्रंथ के नाम वेद, मतलब – गतिमान ज्ञान होखे, ओह देश के दुनिया आपन गुरु मानत आइल बिआ त एकरा में अचम्भा कइसन ? बहुत बाद में पच्छिम का कूपमंडूक देशन के जब आर्यावर्त भारत के आ भारत का ज्ञान-विज्ञान के जानकारी भइल तब जाके ऊ सब देश ईमानदारी से भारतीय जन का ज्ञान-परम्परा के आदर देत श्रेष्ठता स्वीकार कइल. शुरु में दुनिया का आ खास क के पच्छिम के देशन का बाइबिले दुनिया के सबसे पुराण पोथी बुझात-जनात रहे. बाकिर विश्व के संपर्क में रेनेसा के बाद फेरु से अइला पर स्थिति साफे बदल गइल. पहिला-पहिला बेर पच्छिम का विश्व के सबसे पुरान आ प्रामाणिक मानवीय आ लौकिक-अलौकिक जगत के गतिमान गुरु गम्भीर ज्ञान-विज्ञान कोष “ऋग्वेद ” के जानकारी भइल. सभे भारतीय आर्य संस्कृति आ ज्ञान परम्परा के गौरव गान करे लागल.

ऋग्वेद वगैरह भारतीय ग्रंथन के अध्ययन-अनुसंधान से अनुमान लगावल जा सकेला कि हजारन हजार बरिस पहिले ज्ञान -विज्ञान के क्षेत्र में ई भारत कवना ऊँचाई पर पहुँचल रहे. फाहियान, ह्वेनसांग, अलबरुनी, सुकरात वगैरह के भारत आ भारतीय सभ्यता-संस्कृति, शिक्षा, दर्शन वगैरह सहित धन वैभव सम्बन्धी सम्पन्नता बयानन के छोड़ियो देहल जाव त बाद के विदेशी विद्वानन, वैज्ञानिकन, दार्शनिकन के भारत के सम्बन्ध में दिहल वक्तव्यन से भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रमाण पावल जा सकेला.

अल्बर्ट आइन्सटीन के भारतीय ज्ञान के सम्बन्ध में विश्व उक्ति बा – “हम भारतीय के बहुते ॠणी बानी, जे हमरा के गिनती करेके सिखवलस, जवना के बिना केहू महान से महान वैज्ञानिक खोज सम्भव नइखे.’

डेविड स्मिथ सन् १९११ ई० में अपना प्रसिद्ध पुस्तक “द हिन्दू अरेबिक न्यूमरल्स” में स्पष्ट लिखले बाड़न – शून्य, अंक प्रणाली आ पाई सब कुछ भारतीय लोग के देन बा. ओह पुस्तक में ऊ इहो लिख देले बाड़न – फ्रांस के विश्व विख्यात गणितज्ञ जार्ज इफराह कहले बाड़न कि अंक सब में स्थानीय मान प्रणाली स्पष्ट रुप से आर्यभट्ट के खोज रहे. एकरा में शून्य के ज्ञान साफ-साफ देखाई देता.”

ईसा पूर्व छउवीं सदी के पुरान संस्कृत के पोथी “बौधायन शुल्ब सूत्र” में बतावल बा कि एगो वृत्त के परिधि आ व्यास का अनुपात के पाई कहल जाला जवन कि ३,१४,५९,२६,५७,९३२ होखेला. एही बात के स्वीकार करत अरब के प्रसिद्ध गणितज्ञ मोहम्मद इब्न मुसा के कहे के पड़ल कि पाई के मान निकाले के योगदान हिन्दू लोग के बा.

अर्थर ए मैकडोनल अपना पुस्तक ‘ए हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर’ के पन्ना -३६३ में लिखले बाड़न कि आधुनिक युग में यूरोपीय लोग बनावटी नाक बनावे आ ओकर आपरेशन करे के विधि भारतीय सब से सिखले बा. उहँवे भारतीय लोग का शल्यचिकित्सा आ उपकरण सब के गौरव गान करत डॅा० मेनिंग “एंसिएन्ट एंड मेडिएवल इंडिया, वोल्यूम-2 पेज-364” में साफ साफ लिखले बाड़ी – भारतीय लोग के चीरफाड़ के औजार (यंत्र) अतना तेज अउर बारीक होत रहे कि केश (बाल) के लम्बाई में चीर सकत रहले. विश्व के लोग आजो एह तथ्य के मानेला कि मिसाइल दुनिया में सबसे पहिले भारत में बनल रहे. आजुओ, टीपू सुल्तान के टूटल मिसाइल लंदन के संग्रहालय में राखल बा, जवना के नकल कके बाद में फ्रांस मिसाइल बनवलस.

आइजेक न्यूटन जब पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण के खोज कइलन ओकरा से करीब 5000 बरिस पहिले महर्षि कणाद वैशेषिक दर्शन में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत प्रतिपादित कर देले रहस – संयोग अभावे गुरुत्वात् पतनम् (वै.द. 5-1-7) मतलब संयोग के अभाव में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण कवनो चीज नीचे गिर जाला. संस्कार -अभावे गुरुत्वात् पतनम् (वै. द. 5-1-8) मतलब उर्जा के अभाव में कवनो चीज पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे गिर जालें. दुनिया के प्रसिद्ध भाषाविद् लिओनार्ड ब्लूमफील्ड भारतीय भाषा संस्कृत आ व्याकरण के दुनिया में सबसे उत्तम कहले बाड़न.

“कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” मतलब, सउँसे विश्व के आर्य यानि सभ्य, सम्पन्न, सुशिक्षित आ सबल बनावे के कामना करे आ अपना जीवन के उद्देश्य बनावे वाला ऋषि परम्परा के भारतीय जन के विश्व गुरुत्व के प्रमाण खातिर अनेक उद्धरण देहल जा सकत बा. बाकिर, इहो कठोर सच्चाई बा कि प्राकृतिक, भौगोलिक सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक वगैरह तमाम तरह के सम्पन्नता कई कारनन से व्यक्ति,समाज आ राष्ट्र के आलसी, निपरवाह आ अकर्मण्य बना देला. कबो-कबो ओकर मानवीय गुनो ओकर कमजोरी साबित हो जाला. अइसने कई स्थिति-परिस्थिति बस आठवीं सदी के पूर्वार्ध से लेके लमसम बीसवीं सदी के मध्य तक एह महान देश का कवनो ना कवनो रूप में कबहीं आ कतहीं आंशिक रूप से त कबहीं आ कतहीं पूरे तौर पर अपना स्वाधीनता खातिर संघर्ष करे के पड़ल. समय-समय पर विदेशी आक्रमणकारी सब एह हर तरह से सम्पन्न देश के सिद्धांत, ज्ञान-विज्ञान, धर्म-दर्शन, भाषा-समाज-संस्कृति, शिक्षा-सभ्यता, कृषि, पशुपालन, बनस्पति, प्राकृतिक संसाधन, इतिहास वगैरह सबके नष्टभ्रष्ट करे के दिसाईं हर तरह के उतजोग कइलें स.

अंग्रेजन के पहिले के आक्रमणकारियन के प्रयास स्थूल रहे, जवना से विश्व गुरु भारत का आंतरिक समृद्ध (सभ्यता-संस्कृति-भाषा-शिक्षा-धर्म-दर्शन) के क्षति ना के बराबर भइल रहे. बाकिर अंग्रेज बहुते सुनियोजित तरीका से भारतीय इतिहास, शिक्षा, अर्थ तंत्र, शासन तंत्र वगैरह के बहुते नष्टभ्रष्ट क दिहले स. एकरा में लार्ड मैकाले, जेम्स मिल, चार्ल्स ग्रांट, मैक्स मूलर वगैरह के नाम सबसे ऊपर बा. सन् 1834-1839 में लार्ड मैकाले भारतीय जन के देह से भारतीय आ दिल-दिमाग से अंग्रेज बनावे वाली शिक्षा नीति लागू कइलस आ भारतीय इतिहास के तहस-नहस क के भारतीय सभ्यता-संस्कृति के प्रति भारतीय जन में हीन भावना पैदा करेके प्रयास कइलस. दुख के बात बा कि ओह मैकाले के कुत्सित शिक्षा नीति आजुओ लागू बा.

मैकाले शिक्षा नीति मतलब अंग्रेजी शिक्षा के नीसा में चूर आधुनिक भारतीय शिक्षाविद, इतिहासकार, अर्थशास्त्री लोग, जे ‘विश्व गुरु भारत’ संबोधन सुनके नाक-भौं सिकोरेलें, ओह सब लोग का 02 फरवरी,1835 के ब्रिटिश संसद में दिहल खुद लार्ड मैकाले के व्याख्यान के पढ़े के चाहीं, जवना में ऊ तत्कालीन भारतीय जनता के शिक्षा, संस्कृति, सुख-समृद्धि आ ऊँच मानवीय-मूल्य के प्रशंसा करत उनका के अंगरेजी आ अंगरेजपरस्त बनावे खातिर कई गो सुझाव देले रहस.

(बाकी भाग आगे)

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