लुधियाना में यूनियन बैंक के दस गो शाखा बाड़ी सँ आ सगरी में मजदूरन खातिर एकही दिन सेवा दिहल जा रहल बा. दोसरा कवनो दिने अइले पर मजदूरन के दुत्कार के भगा दिहल जा रहल बा. उनकर रुपिया जमा नइखे कइल जात. ऊ बैंक के कवनो सेवा सप्ताह का बाकी दिन में ना ले सकस. लुधियाना में मजदूर कहला के मतलब बिहार भा यूपी के मजदूर समुझल कवनो बेजाँय ना कहाई. महाराष्ट्र में मनसे जवन कइलस तवना के ई कहि के माफ कइल जा सकेला कि ऊ राजनीतिक दल हऽ बाकिर एगो सरकारी बैंक के एह भेदभाव वाली नीति के जतना भर्त्सना कइल जाव कम होखी.

एह दुर्भावनापूर्ण भेदभाव वाली नीति के खुलासा दैनिक जागरण मंगल का दिने कइलसि जवना का बाद चारो ओर से छिछि थूथू हो रहल बा. भोजपुरी समाज दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दूबे एह घटना के भर्त्सना करत कहले बाड़न कि अइसनका बैंक के वहिष्कार करे के चाहीं आ ओहिजा से आपन खाता हटा लेबे के चाहीं. जालंधर में पूर्वांचल महासभा के सदस्य भारतीय रिजर्व बैंक के एगो माँग पत्र ओहिजा के एसडीएम के दिहले बाड़े कि ओह अधिकारियन का खिलाफ कड़ा कार्रवाई कइल जाव जवन एह तरह के घृणित फैसला लिहले बाड़न.

भेदभाव वाली एह नीति के बाति तब सामने आइल जब एगो व्यवसायी अपना मजदूर के रुपया जमा करावे खातिर बैंक भेजलन. बैंक उनकर पइसा जमा करे से इन्कार कर दिहलसि. जब ऊ व्यवसायी बैंक शाखा में गइलन त बैंक अधिकारियन के कहना रहे कि मजदूरन खातिर बस एक दिन तय बा जहिया ऊ बैंक में आ सकेलें. काहे कि एकनी के मइल कपड़ा से बैंक के बाकी ग्राहकन के परेशानी होला. बैंक मैनेजर तरसेम जैन कहलसि कि अगर रउरा पइसा जमा करावे के बा त खुद जमा करा लीं ओह मजदूर से रुपिया ना लिहल जाई. एह निंदात्मक काम के यूनियन बैंक के जोनल मैनेजर जे एस सोढ़ियो सही ठहरवलन आ कहलन कि बैक के सगरी गाहक के ध्यान में राखत ई जरुरी बा.

अब जवाब देबे के बारी रिजर्व बैंक आ वित्त मंत्री के बा जे बतावे कि देश में मजदूर आ धनी खातिर दू गो नियम कइसे बनावल जा सकेला ? अगर ना त एह अधिकारियन के बर्खास्त कर के सामाजिक सेवा करे के सजा देबे के चाहीं कि ऊ लोग मजदूरन का बस्ती में जा के सेवा देव. अगर वित्त मंत्रालय एह बाति पर कार्रवाई नइखे करत त मानल जा सकेला कि प्रणवो मुखर्जी एह नियम के समर्थन करत बाड़े.

अँजोरिया का तरफ से एह घृणित फैसला के निंदा कइल जा रहल बा. जरुरत बा कि पूरा देश एह गरीब मजदूरन का साथ हो रहल अन्याय का खिलाफ एक जुट होखे. भाषा भा इलाकाई आधार पर देश में कवनो भेदभअव ना होखे के चाहीं.

संपादक, अँजोरिया

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