हालही में भोजपुरीओ में प्रकाशित होखे वाली पत्रिका द संडे इंडियन के तरफ से मुद्दा उठावल गइल बा कि भोजपुरी के अल्पसंख्यक भाषा के दरजा दिहल जाव. एह बारे में पत्रिका के प्रबंध संपादक ओंकारेश्वर पाण्डे के कहना बा कि ई माँग भोजपुरी समाज के नया दिशा देबे वाला एगो क्रांतिकारी विचार हवे आ एकर समर्थन करे वालन में सभेश्री सीताकांत महापात्र, मुरारी तिवारी, रघुवंश प्रसाद सिंह, उमाशंकर सिहं, जगदंबिका पाल, प्रो॰मंगलमूर्ति, प्रो॰आर॰के॰दुबे, वजाहत हबीबुल्लाह, शिवजी सिंह, अजीत दुबे वगैरह के नाम शामिल बा.

पत्रिका के २४ जून २०१२ वाला अंक में बतावल गइल बा कि रंगनाथ मिश्रा आयोग अल्पसंख्यक भाषा कहाए खातिर तीन गो मापदण्ड तय कइले बाड़न. संख्या में कम, गैर प्रमुखता, आ आपन अलग पहचान. एहमें ई नइखे बतावल कि संख्या के आधार का होखे, कवनो राज्य में ओह भाषा के बोले वालन के संख्या कि पूरा देश में ओह भाषा के बोले वालन के संख्या.

द संडे इंडियन के प्रबंध संपादक ओंकारेश्वर पाण्डे का लेख में बतावल गइल बा कि भोजपुरी ई तीनो शर्त पूरा करत बिया. हर राज्य में ऊ अल्पसंख्यक बिया आ कतहीं प्रमुखता का स्थिति में नइखे. ओकर अलग पहचान त बड़ले बा. लगले हाथ भोजपुरी के मूल कैथी लिपि के सवाल उठावत पांडेजी के कहना बा कि कैथी लिपि, जवन आजु के गुजराती भाषा के लिपि बिया, के फेर से भोजपुरी के लिपि बनावल जाव. उदाहरण देत बतावल गइल बा कि मणिपुर के मैतेयी समुदाय के लोग सैकड़न साल से भुलाइल आपन लिपि खोज निकालल आ ओकरा के फेर से जिया दिहल.

पहिला बेर जब हम भोजपुरी के अल्पसंख्यक भाषा बनावे का माँग का बारे में सुननी त बुझाइल ना कि का कहल जात बा. अल्पसंख्यक शब्द अतना बदनाम हो चुकल बा कि सुनते विवाद के ध्वनि कान में गूंजे लागेला. मजा के बात बा कि बीस करोड़ लोगन के भाषा भोजपुरी होखे के दावा करे वाला लोगो एह बात से सहमत बा जबकि बीस करोड़ के संख्या ख्याली पुलाव से अधिका नइखे. तबहियो हम ई माने के तइयार नइखीं कि भोजपुरी के अल्पसंख्यक भाषा कहल जाव. माइनारिटी का जगहा माइनर भाषा, छोटहन भाषा, अविकसित भाषा वगैरह शब्द के इस्तेमाल हो सकेला बाकिर भोजपुरिया अहम के एह बात से ठेस लागी कि ओकरा भाषा के छोटहन भाषा, माइनर भाषा, अविकसित भाषा वगैरह कहल जाव.

भोजपुरी के लड़ाई लगे वाला लोग खुद भोजपुरी के इस्तेमाल में संकोच करेला. आजु ले नइखीं देखले कि कवनो भोजपुरी संगठन, संस्था भा आयोजन के प्रेस विज्ञप्ति भोजपुरी में निकलल होखे. निकली त हिन्दी में काहे कि एगो बड़हन श्रोता समुदाय ले चहुँपे के बात कहल जाई. भोजपुरी के ना त कवनो अखबार बा ना कवनो अइसन पत्रिका जवन कमो बेस हर जगहा मिलत होखे एहसे लोग भोजपुरी में विज्ञप्ति भा सूचना जारी ना करे. हे महानुभाव लोग, हम अपने से सहमत बानी बाकिर का ई नीमन ना लागित कि राउर सगरी सूचना भोजपुरी में जारी होखीत आ ओकरा संगही हिन्दी आ अंगरेजी में अनूदितो! बाकिर ना ओहमें त मेहनत लागी, भोजपुरी लिखी के, टाइप के करी, छोड़ऽ ई सब झंझट हिंदीए में लिख द. सभका बुझा जाई.

भोजपुरी के लड़ाई लड़े वाला सांसद लोग संसद में भोजपुरी ना बोल के हिंदी में बोलेला जबकि संसद में भोजपुरी बोले पर कवनो रोक नइखे. रोक होइयो ना सके काहे कि मौजूदा स्थिति ई बा कि सरकार भोजपुरी के हिंदी के बोली माने ले आ ओकरा हिसाब से भोजपुरी आ हिंदी अलग नइखे. एह तर्क का आधार पर सांसद बखूबी संसद में भोजपुरी में आपन बात कह सकेलें आ अगर केहू विरोध करे त संवैधानिक प्रावधानन के सवाल उठावल जा सकेला.

अगर राउर सब काम हिंदीए में होखत बा त भोजपुरी के इस्तेमाल कवना खातिर? भोजपुरी के आंदोलन चलावे के बा त पहिले भोजपुरी के इस्तेमाल बढ़ावे के, भोजपुरी में पत्र पत्रिका अखबारन के प्रकाशन का दिसाईं काम कइला क जरूरत बा. एकरा खातिर मंगला के जरूरत नइखे दिहला के जरूरत बा. बा केहू देबे वाला कि भोजपुरी में सबही माँगही वाला बा?

– ओमप्रकाश सिंह,
संपादक, अँजोरिया

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2 thoughts on “भोजपुरी के अल्पसंख्यक भाषा काहे कहल जाव?”
  1. ई बड़ा दुख के बात बा कि ओमप्रकाश जी रउरा जइसन जानकार के अल्‍पसंख्‍यक भासा के मांग जायज ना लागल ह . हम रउरा जानकारी खातिर ई बता दीही कि खाली आठवां अनुसूची के भावनात्‍मक लालीपाप चुसले से कुछओ ना भेंटी. अल्‍पसंख्‍यक भासा के मांग तार्किक, समसाम‍इक अउर एकदम जाएज बा. अल्‍पसंख्‍यक भासा के दरजा मिले से भोजपुरी भासा रोजी रोजगार के साधन बनी.

  2. अशोक जी
    मंगला से भीख मिलेला अधिकार ना …
    अल्पसंख्यक के भाषा ना ह … काहे की एकरा से छोटहन भाषा ..
    ८ वी अनुश्युची में सामिल बा …
    आन्दोलन के भुलियावे के इ षड़यंत्र ह इ

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