आ जब मामिला बड़का हाकिम का लगे रहो तब आपन मुँह खोलल आ शेर का माँद में मूड़ी घुसावल एके बाति होला. एहसे हम त कुछ बोलब ना. वइसहूं अनका के फटला में आपन गोड़ ना फँसावे के चाहीं. मुद्दई आ मुद्दालह एक ओरि हो गइल बाड़े. पूरा मामिला का दौरान दुनु कवनो दोसरा बाति पर एक ना भइल रहले अब जब भूंजा पकावे खातिर घोनसार में पतई झोंके के मौका आ गइल बा त दुनु बेचैन बाड़े कि हमनी दू का झगड़ा में सुलह समझौता के सलाह देबे वाला ई तेसर के ?

बाकिर मामिला अतना आसान नइखे. सल्तनत के पूरा चाहत बा कि मामिला ठंढा दिहल जाव. अगर पाँच दिन मामिला लटकि गइल त पूरा मामिला के सुनवाई फेर शुरु से करे के पड़ी आ तब फेर साठ साल लगावल जा सकेला सुनवाई में. बीच बीचे में जज लोग रिटायर होत जाई आ मामिला ताखा पर से उतार के झाड़ पोंछ के फेर से चमकावल जात रही.

ऊ त बुड़बकाहि हो गइल ओह लोग से जे झगड़ा के निशाने मेटा दिहले. अब सभे जानत बा कि मामिला जतना मन करे लमरा लऽ हालात बदले वाला नइखे. तबो सभकर साँस टँगाइल बा कि बड़का हाकिम का फैसला सुनइहें. आ एह समय अटकर पच्चीसा लगवला के कवनो जरुरतो नइखे. कुछेक घंटा में पता चलि जाई कि भगवान का चाहत बाड़न. अगर आजु मामिला लटकल त लटकि गइल बूझीं.

एह मौका पर हम बस अतने चाहब कि फैसला सुनावे के फैसला सुना दिहल जाव आ फैसला सुनाईयो दिहल जाव. ओकरा बाद जे हारी से त बड़का हाकिम का लगे फेर चहुँपबे करी. एगो संतोष एहू बाति के बा कि अबकी मीडिया से ले के मुद्दई मुद्दालह ले सभे शान्त बा. सभे अपना के समुझदार आ न्यायप्रिय देखावल चाहत बा. बस फैसला आवे के देर बा आ ओकरा बाद ढेबुसा बेंग का तरे सभे टरटराये में लाग जइहें एहू में कवनो संदेह नइखे.

बाकिर तब ले, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबके सनमति दे भगवान ! होईहें वही जो राम रचि राखा, को करि तरक बढ़ावहूं शाखा.

राउर,
संपादक


चलते चलत

एगो बाति हम नोटिस कइले बानी कि हमार लिखल अतना बेकार आ नीरस रहेला जे कवनो पाठक जल्दी ओकरा पर टिप्पणी ना देसु. सोचे ला लोग कि साँच कहला पर कहीं संपादक जी नाराज मत हो जासु ! जबकि बाति उल्टा बा. हमरा लिखला पर सबसे बेसी बहस होखे के चाहीं, काहे कि ओकरे से अँजोरिया के संपादकीय नीति झलकेला. आ अगर सभे चुप्पी लगा गइल त फेर इहे लागेला कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा ? हम बहुत दिन से एहू कोशिश में बानी कि केहू मिल जाव जे अँजोरिया के शैली आ तेवर बनवले राखे में आपन समय लगा सके. बीरबल लाओ ऐसा नर, पीर बावर्ची भिश्ती खर. हम जवना आदमी भा महिला के खोज में बानी ओकरा भोजपुरी का साथे साथ हिन्दी आ अंगरेजी पर बढ़िया पकड़ होखे के चाहीं, आर्थिक रुप से सक्षम होखे के चाही कि बिना कुछ मिलले समय दे सको, इन्टरनेट आ वेबनिर्माण के थोड़ बहुत जानकारी होखो, आ रोज कम से कम एक घंटा दे सको भोजपुरी खातिर. बा केहू ?

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3 thoughts on “मामिला बड़का हाकिम का लगे बा”
  1. संपादक जी,
    नमस्कार | रउँवा बहुत साफ लिखींले आ कहींले | केहूँके प्रतिक्रिया नइखे आवत त ओकर कारण बा | राउर बात अपने आप में ठोस होले,सारगर्भित होले,खास करके निष्कर्ष वाक्य होले | ए पर का केहूँ कमेंट देउ ? कबो-कबो आदमी मंत्रमुग्ध स्थिति में आ जाला,तब अलग से कमेंट कवनो महत्व ना राखे,मौने स्पेशल कमेंट हो जाला | रउँवा लिखींले त लागेला कि बात करतानी,मन करेला कि सुनते रहीं | अब बताईं ? एपर कवन कमेंट चली ? कमेंट देबेके कवनो जगह छोड़बि तब नू ?

    चलीं, हम लिखतानी कि हम रउरा बात से शत-प्रतिशत सहमत बानी | बाकिर,हम जानतानी कि रउरा एहसे कवनो संतोष ना मिली | ओइसे, बहस खातिर नेवता देके बड़ा नीमन कइनी |

    रामरक्षा मिश्र विमल

  2. संपादक जी,नमस्कार
    अयोध्या के मामला प रउआ बचत-बचावत बहुत कुछ कह देले बानी. लेकिन हमरा नइखे बुझात की आजो कवनो फैसला आई. हमरा लागत बा कि ई फैसला दू-तीन महीना खातिर टाल दीहल जाई. काहे कि कॉमनवेल्थ गेम के देखत सरकार चाहे कोर्ट ना चाहीं कि कवनो बवाल खड़ा होखो अउर विदेशी मीडिया ओकर रिपोर्टिंग करो.

  3. संपादक जी ,
    अईसन बात नइखे ,राउर लिखल ना बेकार होला ना नीरस होखेला .जेकरा जवन विषय रुचीकर लागेला उ ओही विषय में दिमाग लगावेला .
    अब ममिला बड़का हाकिम के बा त ,बड़का हाकिम के भी कवनो धर्म-संप्रदाय होखबे करी .एहसे हमरा नइखे लागत कि फैसला कोई एगो के हक में सुनावल जाई.
    काहेसे कि उनकरो मन ना होई कि कहीं दंगा कहीं कर्फ्यू लाग जाओ.एक त कॉमनवेल्थ खेल से दिल्ली के आम जन -जीवन आइसहीं बेहाल बा .देखल जाव का फैसला होत बा .
    राउर
    ओ.पी.अमृतांशु

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