जम्हुआ के छुअला के डर ना ह, परिकला के हऽ

by | Jun 10, 2010 | 0 comments

भोजपुरी इलाका में एगो कहावत पहिले मशहूर रहे कि जम्हुआ के छुवला के डर नइखे, परिकला के बा. तब चिकित्सा सुविधा का अभाव में बहुते शिशू जनम का दू चार दिन का भितरे टिटनेस के शिकार हो जात रहलें. हँसुआ से नार कटात रहुवे आ अन्हार कूप सोइरी में जच्चा बच्चा के शुरुआती दिन गुजारे के पड़त रहुवे. जम्हुआ के डर रहे बाकिर जानकारी के अभाव कि जम्हुआ छुवत बा त काहे?

कुछ वइसने हालत भोजपुरी के वेबसाइटन के बा. कुछेक दू कौड़ी वाला वेबसाइटन, जवना में अंजोरियो शामिल बा आ ई उपाधि बक्सर के एगो बड़हन विद्वान के दिहल हवे, के छोड़ दीं त बाकि सब बड़ा धूम धाम से शुरु होली सँ. बुझाला कि आवते भोजपुरी में छा जइहें. तीन कन्नौजिया तेरह चूल्हा वाला हालात से गुजरत भोजपुरी समाज में केहू अपना के कम ना बुझे. सभे तीस मार खाँ होले. बिना सम्यक तइयारी भा समर्पण के शुरु होखेवाला वेबसाइटन के जम्हुआ से छुवइला से बचावलो ना जा सके. भोजपुरी वेबसाइट बनावल आ शुरु कइल बहुते आसान बा बाकिर भोजपुरी का प्रति पूर्ण समर्पण बिना ओकरा के ढेर दिन ले चलावल ना जा सके. काहे कि एह काम में आमदनी तनिको नइखे. कुछेक साइट अपवाद हो सकेले बाकिर अपवाद कवनो नियम के अनिवार्य शर्त जइसन होला.

अलगा अलगा वेबसाइट खोलला चलवला के मकसद अक्सर अपना के सर्वश्रेष्ठ आ लोकप्रिय देखावे जतावे के कोशिश रहेला. हम केहू दोसरा पर निर्भर ना रहल चाहीं. हमार अटकर बथुआ सब छपे के चाहीं आ साहित्यकार के सम्मानो मिले के चाही. लोग ई जाने के कोशिश ना करे नेट पर आवे वाला भोजपुरिया का चाहेले. उनका बस गाना चाही. गाना के लिंक चाहीं. दूसरा नम्बर पर फिल्मी दुनिया से जुड़ल कुछ चटपटा खबर मिल जाव आ आँख सेंके लायक फोटो. हमार अनुभव त इहे बा कि साहित्य का पन्ना का तरफ बहुते कम लोग जाला. एकरा बावजूद अगर साहित्य प्रकाशित होला त ओकर कारण बा कि हमनी का चाहेनी स कि साहित्यो के इज्जतदार जगहा मिल सके. एहिजा दोसर मुसीबत ई आ जाला कि अधिकतर भोजपुरी साहित्यकार के पते नइखे कि नेट पर आपन सामग्री कइसे छपवाईं. पूरा दुनिया में सहजता से आपन रचना पठवला से बेहतर लागेला लोग के कि अपना पाकिट से पइसा खरचा कर के पुस्तक छपवा लिहल जाव आ अपना जान पहिचान वाला लोगन आ कुछ मशहुर लोग के ओकर प्रति भेज दिहल जाव.

जे बढ़िया लिखेला से नेट पर आवे ना, परिणाम ई होला कि जे नेट प‍र आवेला ऊहे आपन रचना छपवावत रहेला. जे अपना के प्रतिष्ठित साहित्यकार माने ला ऊ फेर आपन रचना कवनो वेबसाइट के ना भेजे. या त अपना साइट पर डाली ना त ओकर व्यावसायिक उपयोग खातिर बचा के राखेला. फेर ओकरो रचना से एगो बड़हन पाठक वर्ग उपेक्षित रह जाला. अँजोरिया पहिला बेर कवनो पूरा किताब अपना साइट पर प्रकाशित कर के चहले रहुवे कि एगो दौर शुरु हो सके आ भोजपुरी के साहित्यकार आपन रचना पूरा दुनिया का सोझा राख पावे.

एह दिसाईं सगरी दोष साहित्यकारने पर डालल ठीक ना रही. कुछ.गलती हमनियो के बा जे साहित्यकारन तक चहुँप नइखन पावत. ओह लोगन से सीधा सांवाद नइखन बना पावत आ इन्तजार में बइठल रह जात बाड़न कि आम टपकी आ सीधे हमरा मुँह में गिरी. का साहित्यकारन से संपर्क बनावे में रउरा हमनी के मदद कर सकीलें? अपना जानपहिचान के साहित्यकारन के बता सकीलें कि अपना रचना के दुनिया तक चहुँपावे के आसान रास्ता बा कवनो वेबसाइट पर अपना रचना के प्रकशित करवा दिहल. बस अपना किताब के पेजमेकर फाइल हमनी का लगे भेज दीं. रउरा कुछ मिले भलही मत बाकिर लागबो ना करी. अबही अतने संतोष काफी बा.

हमरा एह लेख के केहू अपना पर व्यक्तिगत टिप्पणी मत समुझी. हमार मकसद केहू के दिल दुखावल ना बलुक एगो समस्या का तरफ लोगन के ध्यान दिआवल बा.

संपादक,
अँजोरिया

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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