बजलऽ ए शंख बाकिर बाबाजी के पदा के !

by | Aug 27, 2011 | 0 comments

आखिर ऊ होइये गइल जवना के होखे के उमेद ना रहल. चउहत्तर साल के एगो बूढ़ अपना जिद्द से सरकार के झुका दिहलसि. सरकार अन्ना से निपटे में हर ऊ गलती कइलसि जवन कवनो मदान्ध सत्ता के मद में कर सकेला. पहिले त सोचलसि कि एह बूढ़ से का होई. बड़ बड़ भूत कदम तर रोवसु आ मुआ माँगे पुआ. एगो नेता डींगो हकले रहलन कि अन्नो का साथ उहे होई जवन बाबा रामदेव का साथे भइल रहुवे.

बाकिर सरकार के हर दाँव उलुटा पड़त चलि गइल. अन्ना के तू तड़ाम कर के नाम लिहल गइल, भ्रष्टाचार में मूड़ी से गोड़ तकले डूबल बतावल गइल. ओकर हर छोट बड़ माँग के अनसुनी कइल गइल बाकिर ई जिद्दी बूढ़ आपन हर बाति मनवाववत चलि गइल. आ जब शनिचर का दिने संसद में बहस होत रहल त एगो सांसद सवाल तक उठवलनि कि आखिर ऊ कवन ताकत हऽ जवना का बल पर एगो चउहत्तर वरीस के बूढ़ बारह दिन से भुखाइल रहला का बादो शेर का तरह दहाड़त बा. अपना अन्दाज में अन्ना ओह सांसदो के आपन जबाब दे दीहले. कहलन कि दस दस गो बच्च पैदा करे वाला का जानी कि ब्रह्मचर्य में कतना ताकत होला.

सरकार सोचले रहल कि बिना पार्टी पउवा वाला ई आदमी चंद लोग का सहारे कइसे आपन आंदोलन चला पाई. एही सोच में ऊ अन्ना के अनशन करे से पहिलही गिरफ्तार कर लिहलसि आ उनुका सहयोगियन के, जिनका के मीडिया टीम अन्ना के नाम दे दिहलसि, गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिहलसि. ओकरा बाद जवन भइल तवना से इहे लागल कि अन्ना आ उनुकर टीम एह दाँव के काट पहिलही से सोच के रखले रहुवे. दिने भर में जवन समर्थन उफनाइल ओकरा के देखत सरकार के हाथ गोड़ फुला गइल आ ओहि दिने अन्ना के रिहाई के आदेशो जारी कर दिहलसि.

बाकिर कहल जाला नू कि “खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तहरीर के पहले, खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ?” सरकार के मालूम ना रहल कि अन्ना के रिहाई से पहिले उनुका से पूछलो चाहत रहुवे. अन्ना जेल से निकले से इन्कार कर दिहले. दिल्ली पुलिस जब पन्द्रह दिन खातिर रामलीला मैदान में अनशन करे के अनुमति दे दिहलसि आ प्रशासन रात दिन एक करके रामलीला मैदान के रैली लायक बना दिहलसि तब अन्ना जेल से निकललन आ पूरा जुलूस का साथे रामलीला मैदान चहुँपलन.

एह बारह दिन में सरकार के त बारह करम भइबे कइल कुछ अउरियो लोग के हवा निकल गइल. संसद एक सुर से अन्ना से अनशन तूड़े के अपील कइलसि बाकिर अन्ना तबले अनशन तूड़े के तइयार ना भइलन जबले संसद में उनुका मुद्दा पर प्रस्ताव पास ना हो जाव. कुछ लोग एकरा के संसद के अवमानना कहल, कुछ लोग अड़ियल रवैया, कुछ लोग कुछ अउर. कहल गइल कि एक बेर अइसन हो गइल त हर बेर केहू ना केहू आपन माँग लेके चलि आई. कहे वाला ई नइखे सोचत कि हर आदमी अन्ना ना होला, हर आदमी का लगे अतना धीरज भा जनता के दिल से संवाद करे के ताकत ना होला, आ सबले बड़ बाति कि हर आदमी का साथे मीडियो अइसे ना आवेले.

खैर, जवन भइल तवन नीमन भइल. तय हो गइल कि जनता संसद से उपर होले आ संसद जनता के हर बात माने खातिर होले आपन बाति मनवावे खातिर ना. भ्रष्टतंत्र पर अधूरे सही बाकिर लोकतंत्र के ई जीत देश के आगा बढ़ावे में बहुते कारगर साबित होखी,
इहे उम्मीद कइल जाव.

वंदे मातरम् !

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(4)

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(5)

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