पिछला दिने टीवी पर होखत बहस में पप्पू आ फेंकू के चरचा चलत रहुवे. टीवी के चरचा देखला के एगो मकसद इहो रहेला कि बतकुच्चन खातिर कुछ मसाल भेंटा जाव. लगातार हर हफ्ता कुछ रचल अतना आसान ना होखे. कक्षा में पढ़ावे जाए से पहिले शिक्षक कतना देर पढ़ेलें ई शिक्षके लोग बता पाई. जइसे बढ़िया डाक्टर, बढ़िया वकील बिना किताब देखले ना बनल जा सके वइसहीं बढ़िया शिक्षक बने खातिर लगातार पढ़त रहे के पड़ेला आ ओही तरह हर हफ्ता बतकुच्चन करे खातिर पता ना कतना बकतूत आ गलथेथरई सुने झेले के पड़ेला.

हँ त बात होत रहुवे पप्पू आ फेंकू के. उमेद बा कि रउरो सभे जानते होखब कि पप्पू के ह आ फेंकू के. जइसे नेहरू पता ना कतना लोग होखी बाकिर नेहरू सुनते आदमी का जेहन में चाचा नेहरू के चेहरा चमके लागेला. एगो पैनलिस्ट कहले कि पप्पू के पार्टी त वाक ओवर दे दिहले बिया फेंकू के पार्टी के काहे कि पप्पू माँद से बाहर निकलते नइखन. एह पर दोसरका पैनलिस्ट कहलन कि ना. माँद में रहे वाला त माँद से निकल के सगरी देश घूमत बा बाकिर बिल में लुकाइल आदमी बहरा नइखे निकलत. आजु के अधिकतर चैनल पोसुआ मीडिया के श्रेणी में आवेले बाकिर ओहू लोग के मजबूरी हो गइल बा फेंकू के हर भाषण लाइव देखावल. टीवी पर दोसर कवनो कार्यक्रम बिना ब्रेक के ना होखे बाकिर फेंकू के भाषण का बेरा विज्ञापनो देखावे के हिम्मत ना जुटा पावसु ई चैनल. खैर हमरा एह सब कुछ से कुछ लेना देना नइखे. हम त बस मीडिया का बारे में सोचत बानी.

मीडिया माने माध्यम. माध्यम माने खबर भा विचार आ दर्शक भा श्रोता का मध्य में आवे वाला. एगो मीडिया पैथोलोजिकल लैबो में इस्तेमाल होखेला बैक्टेरिया कल्चर करे खातिर. मीडिया ऊ जवन कवनो काम के मीडियम बन जाव. बाकिर माध्यम आ मध्यम में बहुते फरक हो जाला. मध्यम माने दू छोर का बीच के. आ एह दुनु छोर पर एकही बात के मौजूदगी होला. रोशनी तनी मधिम कर द, आग तनी मधिम कर द. साफ बा कि एह मधिम आ माध्यम का बीच के फरक इहे बा कि माध्यम का दू छोर पर दू तरह के लोग, चीझु, भा उर्जा होले. बिजली के तार माध्यम होला जवना से बिजली प्रवाहित होले आ एक छोर से चल के दोसरा छोर पर मौजूद उपकरण के उर्जा देले. मीडिया के विकास समाज का विकास का साथे जुड़ल घटना ह. एक जमाना में खाली वाचिक माध्यम रहे. फेर आइल शिला पर भा ताम्रपत्र पर भा लिखे भा खोदे वाला मीडिया. फेर आइल छपाई वाला मीडिया. चूंकि छपाई प्रेस कर के होखत रहे से अखबारी मीडिया के नामे हो गइल प्रेस. बाद में आइल दृश्य मीडिया. सिनेमा टीवी वगैरह. एह मीडियम के प्रेस में समावल संभव ना रहल त नया शब्द चलन में आ गइल मीडिया आ अब ओहू ले आगे नयका मीडिया माने कि इंटरनेट के चरचा होखे लागल बा. प्रेस आ टीवी ले त सरकारन खातिर संभव रहल मीडिया के प्रवाह के काबू में राखल. बाकिर ई नयका मीडिया सुभावे से आजाद बिया. एकरा के काबू में राखे के कोशिश कमो बेस हर देश के सरकार करत बिया बाकिर संभव नइखे हो पावत. या त रउरा एह नयका मीडिया के चले दे सकीलें भा सीधे रोक सकीलें. बीचबिचवा वाला काम ना हो सके कि गालो फुलवले रहीं आ ठठा के हँसियो लीं. प्रेस आ टीवी मीडिया के काबू मे राखे के बहुते तरीका होला सरकारन का लगे बाकिर एह नयका मीडिया के मधिम करे में अबही ले कवनो सरकार सफल नइखे हो पावल. एह रोशनी के रउरा मधिम ना कर सकीं बुता भले दीं.

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2 thoughts on “माँद आ बिल क फरक (बतकुच्चन १२३)”

कुछ त कहीं......

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