वरिष्ठ पत्रकार आ भोजपुरी के चर्चित कथाकार गिरिजाशंकर राय “गिरिजेश” भोजपुरी माटी आ बोली-बानी के संवेदनशील रचनाकार रहलन. उनका कहानियन में भोजपुरी जीवन जगत के जथारथ आ जथारथ का भीतर के साँच उद्घाटित भइल.” ई विचार बलिया के श्रीराम कालोनी में विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बलिया इकाई का तरफ से अतवार का साँझि आयोजित शीकसंवेदन सभा में सम्मेलन के राष्ट्रीय सचिव डा॰ अशोक द्विवेदी प्रगट कइलन.
जनपद का साहित्यकारन का एह बइठकी में बोलत ऊ कहलन कि गिरिजेश जी का पत्रकारिता कैरियर के शुरुआत १९५६ में कलकत्ता से प्रकाशित “हरिजन मित्र” के संपादन से शुरू भइल आ बाद में वाराणसी के “आज” आ “गाण्डीव” दैनिक से जड़लन. १९९० में गोरखपुर का “आज” कार्यालय से रिटायर भइला का बाद ऊ “लोकसत्ता” मासिक के संपादन करत रहलन. भोजपुरी में उनकर “बैरिन बँसुरिया”, “रेस के घोड़ा”, आ “तनी बोलऽ हो मैना” नाँव से तीन गो कहानी संग्रह प्रकाशित बा, गिरिजेश जी का असामयिक निधन से भोजपुरी साहित्य जगत मर्माहत बा.
सभा में उपस्थित कन्हैया पाण्डेय, विजय मिश्र, हीरालाल हीरा, शशि प्रेमदेव, डा॰ श्रीराम सिंह, रमेशचन्द्र, डा॰ ओ॰पी॰ सिंह, बृजमोहन प्रसाद अनाड़ी, शिवजी पाण्डेय रसराज, वगैरह लोग श्रद्धांजलि अर्पित कइल. अध्यक्षता शंभुनाथ उपाध्याय कइलन. सभा का आखिर में दू मिनट ला मौन रख के दिवंगत आत्मा का शांति खातिर ईश्वर से प्रार्थना कइल गइल.
शत्-शत् नमन!