“जनभाषा कबहियो शासन के भाषा ना होले. राजसत्ता कबहियो जनता के भाषा के राजभाषा के दरजा ना देव. फेर भोजपुरी त लोकभाषा हिय, संवेदना आ प्रतिरोध के जनभाषा. ऊ सरकार के मुँह ना जोहे. अगर संविधान के अठवीं अनुसूची में एकरा जगहा नइखे मिलत त एकर मतलब ई ना कि ई कमजोर भाषा हिय.”

ई बाति विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बलिया इकाई के पँचवा अधिवेशन में मुख्य अतिथि बन के आइल विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव डा॰ अरुणेश नीरन अपना संबोधन में कहलन.

बलिया के बापू भवन में अधिवेशन के संबोधित करत नीरन आगे कहलन कि संघर्ष आ विरोध के भाषा भोजपुरी के विरोध भारत के कवनो भाषा से नइखे. हँ, हिन्दी के कुछ लोग जरूर भोजपुरी के विरोध करेला. एकरा खातिर फिकिरमंद भइला के जरूरत नइखे. हमनी का ना त दीन हईं ना पलायनवादी. संसार के इकईस देश में एकरा के बोलेवाला लोग बा. एकरा के केहू रोक ना सके.

अधिवेशन के पहिला सत्र में बलिया इकाई के अध्यक्ष शंभुनाथ उपाध्याय मुख्य अतिथि का साथे दिया जरा के आ माँ सरस्वती का चित्र पर माला चढ़ा के सत्र के श्रीगणेश कइलन. राष्ट्रीय योजन सचिव आ बलिया इकाई के संरक्षक डा॰ अशोक द्विवेदी अतिथियन के स्वागत कइलन आ परिचय करवलन. बलिया इकाई के सालाना प्रतिवेदन हीरालाल हीरा पेश कइले.

विचार गोष्ठी के विषय “भोजपुरी भाषा साहित्य के वर्तमान स्थिति” पर विष्णुदेव तिवारी के आलेख पाठ का बाद डा॰ कमलेश राय सवाल उठवलन कि साहित्य अकादमी के कवनो पदाधिकारी कवना आधार पर भोजपुरी साहित्य के समृद्धि आ सशक्तता पर सवाल उठवले.

बनारस से आइल डा॰ प्रकाश उदय दोसरा भाषवन का समानान्तर भोजपुरी में नया लेखकन के ना उभर पावे आ प्रकाशन अउर प्रोजेक्शन कम होखला के बात कहलन. डा॰ रघुवंशमणि पाठक कहलन कि भोजपुरी, ब्रज, अवधी, मैथिली वगैरह हिंदी के ताकत हई सँ.एहन बिना हिंदी के इतिहास पूरा ना हो सके.

विशिष्ट अतिथि डा॰ प्रेमशीला शुक्ल अपना संबोधन में बलिया खातिर कृतज्ञता जतावत कहली कि भोजपुरी इलाका के मूल देवी देवता गौरा पार्वती आ शिव हउवें आ भोजपुरियन के प्रकृति शिव के प्रकृति जइसन हवे. हमनी का आपन मूल प्रकृति छोड़ के विश्व प्रकृति अपनावे का फेर में आपन पहिचान गँवावत बानी जा.

समारोह के शुरूआत में बलिया इकाई का ओर से डा॰ अशोक द्विवेदी आ राजगुप्त अधिवेशन में आइल मुख्य अतिथि डा॰ अरुणेश नीरन, विशिष्ट अतिथि डा॰ प्रेमशीला आ बलिया के वरिष्ठ साहित्यकार डा॰ शत्रुघ्न पाण्डेय के शाल आ श्रीफल देके सम्मानित कइले.

अधिवेशन के दुसरका सत्र में आयोजित काव्य संध्या में आगंतुक कवियन के कविता पाठ भइल. एकर संचालन के के सिन्हा आ अध्यक्षता शंभूनाथ उपाध्याय कइले.

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One thought on “जनभाषा के राजसत्ता कबहियो राजभाषा के दरजा ना देव : नीरन”
  1. हिंदी के गरिया के आपन बात कहे के एगो फैसनो अब चल निकलल बाऽ…
    रूस सहित बहुते देस एकर उदाहरन बा जहाँ जनभासा राजभासा बा, रहे आ रहे के उम्मेदो बाऽ।

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