– देवेन्द्र आर्य

जाए के उमिरो ना रहल आ अइसन कवनो जल्दबाजिओ ना रहुवे. निकहा नीमन चलत गोष्ठी के परवान चढ़ा, ईद के मुबारकबाद देत आखिरी सलाम क लिहलन. ना दोस्तन के कुछ करे के मौका दिहलन ना घरवालन के. दिल के दर्द के गैस समुझत रह गइलन आ चल गइलन. जइसे कविते के जिनिगी समुझत रह गइलन मौत का मुहानो पर. कमे लोग अइसन होला जे अपना कर्मक्षेत्रे में खप जाला. कविता उनकर प्रेरणा रहुवे आ गोष्ठीबाजी शगल. दुनू का बीच विदेह हो गइल रहलन आ कविते के मोर्चा पर खेत हो गइलन.
satan-SatyaNarayanMishra
सत्यनारायण मिश्र ‘सत्तन’ भोजपुरी में विरल मिले वाला मौलिक कवियन में से एक रहुवन, हालही में गइल पं. रामनवल मिश्र का तरह बाकिर उनुका से अलग व्यक्तित्व वाला. सत्तन के भोजपुरी कविता में हिन्दी कवितो के धड़कन सुनाले. पारंपरिक शिल्प आ दायरा के निखारे के जद्दोजहद. उनुका भोजपुरी में जइसन आधुनिकता आ समकालीनता लउकत रहे उ दोसरा केहु में दुर्लभ बा, जुगानी के छोड़ के. सत्तन भोजपुरी में आपन मुहावरा गढ़त रहलन, भोजपुरी के नया मुहावरा देत रहलन.

चुवनी चरनिया के ऊँची धरनियां
ओहूले रउरा चरन के ऊँचाई
कहाँ सोन खरिका ई नीमि के सींक
अ.. ह.. राम… बाटे न ठीक
आपन सुनावऽ हमार सब नीक.

हिन्दु पर्वन पर मुसलमान रचनाकार खूबे आ का खूब लिखले बाड़न बाकिर ईद, रमजान पर कवनो हिन्दू रचनाकार के कवनो सुघड़ रचना हमरा जानकारी में सत्तन के जियते जीव ना रहल. हमरा पता ना रहे कि ऊहाँ के हमार शिकायत अबकी ईद पर खतम कर दिहनी आपन आखिरी कविता लिख के –

हमरो तोहके ईद मुबारक
ओनतिस दिन के कइन तपस्या
तन तापन ताकीद मोबारक.
अधिए राति जगावत सेहरी
बीतल पगत पगावत सेहरी
अफतारी पर जेवना जुबरी
असकत झोरि भगावत सेहरी
दिन थकहरल राति ना पवलस
निखरहरे के नींद मोबारक.

इहे उनकर आखिरी मुबारकबाद रहल जाए का ठीक पहिले. दोकाहें चलि गइलें सत्तन, सभ इहे सोचत बा.
SatyaNarayanMishra-Sattan
महाराजगंज जिला के मूल निवासी, डेढ़ हड्डी के 62 बरीस के किसान कवि. बोली बानी भेस भूषा एकदमे साधारण. जिनिगी भर एके रंग, कुर्ता पायजामा से लगवले चाल ढाल ले. इत्मिनान से मिलतन आ सम्मान देके चल जात रहल ऊ साधारण लउकत भोजपुरी के असाधारण कवि. बीए फेल. पत्रकारिता के लमहर पारी बाकिर ना नौकरी ना चाकरी. इरादा बुलंद. कुछ मीत लोग का संगे बनवलन ‘भोजपुरी संगम’. आ कइसन संजोग रहल कि आखिरी साँसो लिहलन संगमे नाम के संस्था के कवि गोष्ठी में.

‘भोजपुरी संगम’ अपना तरह के पहिलका आधुनिक संस्था रहुवे जवना में भोजपुरी के गद्य आ पद्य पर बाकायदा ‘बइठकी’ होखत रहुवे. लिखल परचा पढ़ात रहे आ साल बितला पर ओकरा के किताब का शक्ल में छपावल जात रहुवे.

सत्तन भोजपुरी के प्रयोगधर्मी कवि रहलन. आठ मात्रा में गजल के शिल्प में उनकर भोजपुरी प्रयोग देखीं –
काहो कइसे, कहलें, अइसे.
बीसे रहिहैं, रहब ओनइसे.
दउरत बादर मनई जइसे
सत्तन जियलें जइसे तइसे.

खुद एकइस होखला का बावजूद सत्तन हमेशा अपना के उनइस समुझत रहलन. जइसे तइसे जिए वाला ई साधारण किसान कवि साहित्य संसार के जवन देे गइलन तवना के लोग तब समुझित जब भोजपुरी हिन्दी के उपनिवेश बन के ना रह गइल रहीत. काश! सत्तन के कवनो सरकारी, मुस्तकिल पेशा, संस्थान भा दिल्ली वाला कवनो सहोदर मिलल रहीत. बाकिर तब शायद अतना काश मिलियो के वइसन काव्याकाश ना गढ पाइत. सत्तन बने ला त दोकाहें जइसहीं तइसे जिए के पड़ेला.

भदरल भारी भीर, बलाय सम्हारी के
पलहा खातिर झेली मारामारी के
देके काम घिनावल ओके बखरा में
चोरी से चबदावल गइल चमारी के.

ई हवे पं. सत्यनारायण मिश्र के दलित विमर्श. उनुका आधुनिक काव्य चेतना के एगो बानगी अउरी देखीं –
दुख चिंता सब हारि जाए, जब खेते में
फूटि बाली त घर में केंहा केंहा होई.

केहां केंहा शब्द ह कि विम्ब! ई भासा ह कि ध्वनि, कि जीवन मुहुर्त! केदारनाथ अग्रवाल याद आवत बाड़न. हिंदी वाले आजुकाल्हु लोकभाषा, लोक संस्कृति आ लोकचेतना के बहुते चिंतातुर बात बतियावेलें बाकिर जहाँ लोकभाषा, लोककाव्य बा ओनिए पीठ कइले रहेलें.
ई धोवा के धोती लकदक लउकत बा
एमे करुणा दया के दाग कहाँ होई.

तनिका एह तंज के गहिराई देखीं. नरेश सक्सेना के बहुते चर्चित कविता ह दाग. बाकिर दाग के जवन आयाम सत्तन दे गइले ऊ नरेशो किहां ना मिल पाए. सत्तन के लोक से सायास जुड़े ना पड़त रहे. ऊ सरापा लोककवि रहलें. भाषा के गुमान लोक का नजदीके जाके टूटेला. खड़ीबोली के निर्धनता उघार हो जाले भोजपुरी का सोझा. सत्तन में लोक के अक्षर पढ़े के मिलत रहुवे जवना से ऊ हिन्दी कविता के संस्कार सिखावसु. उनकर मन मड़ई में रमत ना रहे, भींज जात रहुवे. उनुका हिरदा के तड़प से बादल रसगर हो जात रहलें आ बचावतो बचावत दरपन भींजिए जाव. ऊ कविता के बुन्न बुन्न सिरजस आ तबहियों पूरा ना सिरज पावस. एह सिरजन में पूरा पौरूख पथरा जाले, बा‏किर प्रान भींज जाले. ‘मड़ईया में मोर मन भींजि जाला’ सत्तन के हस्ताक्षर गीत रहुवे. भोजपुरी के मानवीय संवेदना के अमर गीत. ऊ कहीं जासु, कुछऊ सुना देस बाकिर जब ले ‘बुन्न बुन्न सिरजीं भरे नाहीं गगरी/ पथराइ पौरुख पिरिथयी पर सगरी/ पल-पल पिराला परन भींज जाला’ ना सुना देश तबले उनुका के लोग बइठे ना देव.

गोरखपुर में उनुका के कबो बइठल देखबो ना कइनी. दउड़ते रहि गइलन भर उमिर अपना गाँव सीवान ले. कवनो कार्यक्रम होखे, ऊ हाजिर रहसु. चुपचाप सुनस-गुनस आ कविता में परगट हो जासु. बंगाली जी का बाद अपना तरह के सबले प्रिय सरस कवि. केहु ना चाहत रहे कि ऊ जासु बाकिर दोकाहें चलि गइलन!

बिछरल मोसे मीत दोकाहें
चीकन चीजु रूखर गर लागै
दुश्मन लागै हित दोकाहें
मधु अस मीठ सबद सब लागै
माहुर अइसन तींत दोकाहें.

सत्तन के सपना पर शीत पड़ गइल बा. उनकर सावन अब कबो ना लवटी. उनकर घर एगो कबो ना खतम होखे वाला इंतजार में उनुका के तिकवत रही. ऊ त लवटे से रहलन.

रितु जाई सपनवा के बीत
मीत अब चलि आ घरे.
परि जाई सपनवा प सीत
मीत अब चलि आ घरे.

उनुकर घरवापसी हो सकेले उनुका संग्रह का रूप में. तीस बरीस से अधिका के रचनायात्रा करे वाला कवि के कवनो संकलन ना होखल दुख देबे वाला बा. कविता से गहिरा संबंध राखे वाला कवि के संग्रह से बेरुखी दुखे ना खिसो उपजावेले. एह आलसी मानसिकता के दर्द जब उपटेला त वश में ना रहे देव. खैर, का भोजपुरी रचना संसार एह ओरि कवनो पहल करी? भोजपुरी इलाका में बावे गोरखपुर विश्वविद्यालय बाकिर एकरा परिसर से भोजपुरी के बहरावल राखल बा. भोजपुरी के नाम पर गावे बजावे, इनाम इकरार से लेके विदेश यात्रा ले करे वाला लोगन का मन में कबो एह भाषा के लेके कवनो दायित्वबोध जागी का कबो? उमीद त राखहीं के चाहीं कि फेरू कवनो ‘सत्तन’ खाली हाथ मत जाव.


DevendraAryaदेवेन्द्र आर्य के फेसबुक सामग्री से भोजपुरी में उल्था क के प्रकाशित.

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