भिखारी ठाकुर राष्ट्रीय प्रतिष्ठान के आयोजित संगोष्ठी पर एगो रिपोर्ट

by | Jul 25, 2011 | 15 comments

– अमितेश कुमार

दुपहरिया में अचानके एगो कार्यक्रम में पहुँच गइनी. वइसे कार्यक्रम के सूचना रहे लेकिन जाये के इरादा ना रहे. बाकिर पहुँचनी. मौका रहे भिखारी ठाकुर राष्ट्रीय प्रतिष्ठान के तत्वाधान में आयोजित ‘भिखारी ठाकुर के सामाजिक चेतना’ विषय पर संगोष्ठी के. संगोष्ठी में बोले वाला महत्त्वपूर्ण वक्ता रहलें, संजीव (भिखारी ठाकुर के जीवनी “सूत्रधार” के लेखक), मैनेजर पांडे (हिन्दी आ भोजपुरी के प्रसिद्ध विद्वान), नित्यानंद तिवारी (हिन्दी आलोचक), महेन्द्र प्रताप सिंह (भोजपुरी रंगकर्मी), आ मनोज भावुक(कवि). एह वक्ता लोगन के हम जानत रहनी आ ई लोग पहिले से भोजपुरी ला कार करता लोग. बाकिर जवन वक्ता के हम पहिले से ना जानत रहनी ओमे रहलें रविकांत दुबे (बिहार भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष) अउर अजीत दुबे (दिल्ली में भोजपुरी के सक्रिय कार्यकर्ता). श्रद्धा कुमारी आ संतोष पटेल अपन पर्चा पढलक लोग. कार्यक्रम में लोग के उपस्थितिओ संतोषजनक रहल.

बीज वक्त्व्य संजीव देहलें जेमें ऊ विस्तार से भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व आ कृतित्व के चर्चा कइले. महेन्द्र मिसिर के आगे भिखारी के कमतर समझे वाला संजीव अंततः भिखारी नाम के पसरत बाढ के पानी में समा गइले. कहलें कि हमनी अइसन लेखक पोथी के पोथी रंग डालऽता लोग लेकिन समाज जहां बा उहें बा. आ भिखारी अनपढ़ो होके समाज के झकझोर देहलन. रंगश्री संस्था के संचालक महेन्द्र प्रताप सिंह कहलें कि कलाकार समाज के अभिभावक होला. भिखारी पर लागल आरोप के जवाब में ऊ कहलें कि भिखारी सीधा सीदा आजादी के लड़ाई पर ना लिखलें काहे कि उनका अंग्रेज के गुलामी से बड़हन उ गुलामी लागल जवन समाज के जकड़ले रहे. भिखारी ओही समाज के अंग रहले एसे ऊ बड़हन समाज के मुक्ति के बात कइले. जेमें दलित आउर स्त्री शामिल रहे.

भिखारी ठाकुर आ भोजपुरी समाज के लेके सबसे मारक बात मैनेजर पाडे जी कहनी. एगो खिस्सा सुना के बतवनी कि हमनी के भोजपुरी के ले के सारा प्रण खाली संगोष्ठी तक ना रख के घरहू ले जाये के पड़ी. ऊ कहले कि भोजपुरी समाज के नौटंकी से बाहर आके समाज के शक्तिशाली बनावे के होई. काहे कि समाज ओकरे बात सुनेला जे शक्तिशाली होला. भोजपुरी के ले के उनकर महत्त्वपूर्ण सुझाव रहे कि भोजपुरी में साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिका के साथ साथ अखबारो निकाले के चाहीं. ऊ बतवले कि भिखारी ठाकुर के मंडली में सवर्ण तबका के लोग ना रहे. ऊ प्रयत्नपूर्वक बहुजन समाज के जागरूकता लेल काम करत रहले. पांडे जी कहलन कि हमनी के भिखारी के सबसे बड़हन सम्मान तब दिहल जाई जब उनका संदेश के जीवन में उतारल जाई. आजुओ भोजपुरी समाजे में बहुजन समाज पिछड़ल बा, मेहरारू सब के दुर्दशा होता, लोग आपन देस छोड़े ला बेबस बा.

रविकांत दुबे जी अपना वक्त्व्य में भोजपुरी के ले के इंटरनेट पर सक्रिय लोग के उपदेश देहलन कि एह लोग के समझे के चाही के भोजपुरी के दुनिया खाली इंटरनेट के नइखे. बहुत लोग कम्प्युटर नइखे जानत लेकिन भोजपुरी ला आपन जीवन होम क देलक. भोजपुरी में गाना बजाना खुब हो गइल अब एहमें बौद्धिक कार्यक्रम होखे के चाहीं.

(संगोष्ठी के उद्घाटन)


अजीत दुबे भोजपुरी के आठवीं अनुसूची आउर प्रतियोगिता परिक्षा में शामिल करावे ला आंदोलन के बात कइले. भोजपुरी के तिरस्कार पर ध्यान खींचत कहले कि एह भाषा के सम्मान दिलावे खातिर मेहनत करे के होई. कवि मनोज भावुक भिखारी ठाकुर के आजु का समय में का प्रासंगिकता बा एह पर बात कइलन आ वक्ता लोग के सामने कुछ प्रश्न रखले.

आपन अध्यक्षीय भाषण में नित्यानंद तिवारी जी कहलन कि भिखारी ठाकुर के मतलब एगो विकल्पात्मक समाज के संभावना बा. स्थानीय विविधता के रक्षा पर ऊ जोर देहलन काहे कि विविधता में रचे के क्षमता होला एकरूपता मशीनी होला. संजीव के उपन्यास “सूत्रधार” के अंश पढ के सुनावत उनकर नाटक के ताकत के बारे में बतवले.

सम्मेलन में लोग निकहा संख्या में जुटल रहल. जरूरत बा सम्मेलन के आगे बढा के बौद्धिक अभ्यास के प्रोत्साहन देवे के. साथ में ओह सगरी औपचारिकतो के छोड़ला के जरुरत बा जे पुरान हो गइल बा. कार्यक्रम में बहुत समय पुष्प गुच्छ से सम्मानित करे में गंवावल गइल. ई सब कर्मकांड एगो बिमारी का रूप में बौद्धिक समाज में देखल जाला. खाली नाम लेइयो के सम्मान देखावल जा सकऽता. आ जरुरी इहो बा कि सामाजिक चेतना टाइप घिसल पिटल विषय से ऊपर उठल जाव. भिखारी ठाकुर के साथ साथ भोजपुरी जगत के दोसर कला विधा, हस्तीओ पर गंभीर विमर्श कइल जाव.

मिलाजुला के कार्यक्रम सफ़ल रहल. बौद्धिक सत्र के समाप्ति बाद गजाधर ठाकुर के गवनई भइल. कार्यक्रम राजेंद्र भवन दिल्ली में आयोजित रहल.


अमितेश कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी में पी॰एचडी॰ कर रहल बाड़े.
अमितेश के पुरनका लेख

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15 Comments

  1. munna pathak

    bhai logan eh vad vivad ke bad hum e kahal chahat bani ki eh karyakram ke mul bhav ehe rahe ki nayka aa purnka samaj miljul ke aage aawewala sammay me bhojpuri sahitya par gambhir kam kail jav.sabse bad bat e ba ki jawan manejar pandey ji ,dr.nityanand tiwari ji,sanjeev ji,ajit dube ji ravikant ji jaisan bad bujurg logan ke bat hamni ke anukaran kare ke chahi aaur e log se bhi aage jaye ke soche ke chahi.choti-choti batan me aapan urja kharch kaila se jyada niman e ba ki hamni ke jyad se jyada rachnatmak kam me aapan urja lagawal jaw

  2. OP_Singh

    संतोष पटेल जी के उत्तर का बाद अब एह विवाद पर कवनो दोसर प्रतिक्रिया ना प्रकाशित होई.
    हँ भिखारी ठाकुर जी का बारे में प्रतिक्रिया, राय, विचार दिहल जा सकेला.
    – संपादक

  3. Amitesh

    tarun ji mai santosh patel ji ne jo kiya uske bare me bata raha tha. aarop ek pakshiy hi hota hai. santosh ji ne uska jawab dene ki koshish ki hai. mai koi nirnay nahi de rha. sampadak hone se sammelan kara lene se manachaha kary karne ki suwidha nahi mil jati. aur publicity ke liye mujhe santosh ji pe aarop lagane ki kya jarurat hai? apni ijjat ki chinta aadmi ko khud rakha ke kary karna chahiye.

  4. bhola prakash

    आन्हर कुकुर बतासे भूके

    Barking like a blind dog without any reason.

  5. Tarun Chaturvedi

    Amitesh
    Aapne Mr. Santosh Patel se is vishay me koi bat ki thi, ek pakshiya nirnay kahan tak jayaz hai.
    Aaap hi aarop lagain aur aap he judge ban jayen yah kahan tak sahi hai. Bhojpuri Jindgi aur Santosh Patel ke bare main aapko kya pata hai. Santosh Ji English, Bhojpuri se PhD kar rahen. Sabhi Bhojpuri logon ko Delhi main saphalta purvak ekatrit kar rehe hain. Sabhi Bhojpuri bhaiyon ki har sambhav madad bhi karte hain. San 2004 ka lagatar Vishva Bhojpuri Sammelan, Delhi main saphalta purvak kara rahe hain. Do Tremasik Patrika ‘Purvankur’ (Hindi, Bhojpuri) aur ‘Bhojpuri Jindgi’ (Bhojpuri) se bhi jude hain. In dono patrikaon ke sampadak hai. ‘Bhojpuri Jindgi’ Patrika se main bhi juda hun. Kuch bhi likhne se pahle sabhi tathyon aur sambandhit logon ki bhavnaon aur samaj main unki izzat ka khyan rakhna bhi zaroori hota hai. Sirf publicity ke liye ye sab nahin karna chayiye. Ye Bhojpuri ke vikas main bahut bari badha hai. Bhojpuri ke vikas main to ham sab ko miljul kar aage badhna hai. Yadi kisi bhi vyakti se koi bhi samasya hai to pahle usse is vishay main bat karna zaroori hai, apni aapatti darz karana zaroori hai. Yadi phir bhi baat na bane to ek maryada main rahte hue apni baat rakhni chahiye.

  6. Santosh Kumar

    भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के चाहे वाला सभ नेही छोही लोगन के नमस्कार
    काल दिन भर लोग ” गलत भा सही” के आरोप लगावत रहस.
    हम आपन जवन आलेख ” भिखारी ठाकुर के संधर्भ में पढ़नी उ हम प्रस्तुत कर रहल बानी.
    ई हम जरुर मानेब के समय बाध्यता के चलते आपन आलेख के सन्दर्भ/ साभार(reference ) के उल्लेख(acknowledge ) ना कर सकनी. एमे कोनो हमार कवनो गलत मनसा ना रहे बाबजूद एकरा हम ई आलेख पूर्वांकुर में छपे के देले बानी जेसे ई बात के स्पष्ट पता चल जाई के हम ई आलेख के सभ विद्वान लोगन के नाम के उल्लेख कइले बानी की ना.
    दुसर बात अगर ऐसे मुन्ना पाण्डेय के तकलीफ भइल ओकरा ला हम खेद व्यक्त कर रहल बननी.
    तीसर बात, हम कही भागे वाला आदमी ना हई हमार स्थाई पता ” rzh /९४०, राजनगर-II , पालम कालोनी, नई दिल्ली बा आ फ़ोन नो. 9868152874 ह जे केहू के हमरा से तकलीफ बा उ आपन गलतफहमी दूर कर सके ले आ हमर आलेख देख सके ले.
    भिखारी ठाकुर के सामाजिक चेतना के चरचा
    अबहि नाम भईल बा थोरा, जब यह छुट जाई तन मोरा
    तेकरा बाद पच्चीस बरिसा, तेकरा बाद बीस दस तीसा
    तेकरा बाद नाम हो जइहन, पंडित-कवि- सज्जन जस गईहन” (१)
    (१. भिखारी ठाकुर रचनावली, संपादक : नगेन्द्र प्रसाद सिंह, पृष्ठ ३१९, प्र. बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना -०४, प्र. सन. २००९.)
    ” आजू हमनी इहवां दिल्ली ने पढ़ल लिखल लोगन के बीच भिखारी ठाकुर आ उनकर जस 2011 में गावत बानी त कवनो कलमकार काहे एतना नामी गिरामी हो जाला की ओकरा नहियो रहला पर लोग के हिरदय में ओकर छवि नचात रहेला जवन उ देखले रहेला. ओकर मूल में रहेला ओ आदमी के कइल काज आ ओकर व्यक्तित्व जवन आपन एगो इमेज हमनी के सोझा छोड़ जाला जवन हमनी के इयाद करे के मजबूर करेला. भिखारी ठाकुर आपन ईहे छाप हमनी पर छोड़ गइल बाड़े
    आज जब देश के कए गो हिस्सा में मजदूरन पर हमला हो रहल बा, कऐ गो प्रान्त में अभियो पलायन चल रहल बा रोजी रोटी रोजगार के चक्कर में जात- पात छुवाछुत के , भेदभाव नारी के दबा के रखे के कम अभियो चल रहल बा त ई एहिसन हालत में भिखारी ठाकुर बहुत प्रासंगिक हो गईल बाडन.(२)
    (२. मुन्ना पाण्डेय, दिल्ली विश्वविद्यालय के आलेख “भोजपुरी लोकरंग के वैश्विक कलाकार: भिखारी ठाकुर, अंजोरिया.कॉम से साभार )
    “हमनी ई मालूम बा की कवनो रचना भा रचनाकार प्रासंगिक तबे ले बा जब ले ओकर रचनन में उठावल समस्यन के निवारण नईखे हो जात. भिखारी ठाकुर आजो ओतने प्रासंगिक एही बाड़े चुकीं उ आपन नाटक के माध्यम से जवन सामाजिक चेतना के संचार करे के कोशिश कईलन ओकर संचार के जरुरत आजो ओतने बा.
    भिखारी के लागल की हमनी आपन नाटक कला से माध्यम से समाज में सुधर के काम कर सकिले जइसे बंगाल में राजा राम मोहन राय, इश्वर चंद विद्यासागर, स्वामी विवेक नन्द जइसन समाज- सुधारक लोग नव जागरण काल में कईल” .
    (महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रिय हिंदी विश्वविद्यालय के शोधर्थी मन्नू राय के आलेख ” भिखारी के सामाजिक चेतना” भोजपुरी जिनिगी पृ ६ अंक अक्तूबर २००९-मार्च २०१० से साभार)
    “ठाकुर जी आपन लोक नाटक के स्थानीय सामाजिक समस्यन से जोडत रहेले जैसे व्यक्तिगत मुक्ति आ समाज कलायन के काम चले लगत रहे.
    लोकनाटक के माध्यम से भिखारी भोजपुरी के क्षेत्र में जमाखाल रुदिवादी व्यवस्था के सोर से उखार के फेके में आपन न भुलावे वाला भूमिका निभइलंन जेकरा हमेशा इयाद कइल जाई. औरतन के पर्दा से बहरी आवे खातिर प्रेरित कइलंन आ खुलल आँखिन से समाज के देखे के दृष्टि देलन. जानना पर होखे वाला अत्याचार, अंधेरगर्दी के खिलाफ भिखारी जेहाद छेड़ देलन. छोट उमिर में होखे वाला विआह बाल बिआह, बुड्ढ के साथै छोट उमिर के लड़की सन के विआह विधवा के साथै अमानवीय वेवहार जइसन समस्या आ मुद्दा के संगे संगे रुढ़िवादी, कुरुतियाँ आ अंध विश्वास के जम के उठवलन आ सार्थक ढंग से चोट कइलन उनकर ई सोच पर विचार देत रामनिहाल गुंजन के मानल बा की ” भिखारी ठाकुर जी भोजपुरी के शेक्सपियर कहल जानी बाकिर हमार विचार से बिखरी आपन रूढीमुक्त आ प्रगति शील सामाजिक दृष्टिकोण के चलते भारतेंदु के जादे करीब रहस,एही से उनका ‘भोजपुरी के भारतेंदु’ कहल जादे उचित होई.”(३)
    (३. भगवती प्रसाद द्विवेदी के हिंदी आलेख ” भोजपुरी के जनगायक : भिखारी ठाकुर” के हिंदी आलेख आजकल (हिंदी पत्रिका), नई दिल्ली के सितम्बर २०१० अंक के ‘दीर्घा’ स्तम्भ पृ.संख्या ४७ से उधृत )
    डॉ. जयकांत सिंह जय जे एल. एस. कालेज मुजफ्फरपुर बिहार में भोजपुरी के प्रोफेस्सेर बानी के कहनाम बा की ” भिखारी आपन अनुभव आ काव्य प्रतिभा के बदउलत अपना समय आ समाज के तमाम समस्यन, बुराइन, आ कम्जोरियन के विषय बना के भोजपुरी के लोकधर्मी नाटक के कर के समाज के बीच लोक मंच के रचनो कइलन”(४)
    (४.डॉ. जयकांत सिंह जय के आलेख : “भोजपुरी नाटक के विकाश में भिखारी ठाकुर के योगदान” भोजपुरी जिनिगी पृ २७ अंक अक्तूबर २००९-मार्च २०१० से साभार)
    समाज के आपन नियत के बारे में साफ साफ कहल बिखरी के ईमानदारी आ पारदर्शी व्यतित्व के परिचय देला. भिखारी ठाकुर पर पीएच.डी करे वाला भोजपुरी के विद्वान तैयब हुसैन पीड़ित जी के मानल बा की ” साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, सामंतवाद और अध्यात्मिकता के संश्लिष्ट ताने बाने से परिचित हुए बिना भिखारी कुछ कर नहीं सकते थे, जो अपने समय में आजादी के लडाई का सूत्र नहीं पकड सका वह इन सबो के परिणाम की व्याख्या ऊपर ऊपर ही कर सकता था. उनकर ‘ सूत्रधार’ उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकार संजीव ( जो स्याम ई संगोष्ठी में सामिल बानी) ने भी एक बार इन पंक्तियों के लेखक को भिखारी का यथार्थ बताते हुए कहा था ” भिखारी जब भी आगे बढ़ना चाहते हैं, तुलसी उनकी राह रोककर खडे हो जाते हैं”
    भिखारी आपन नाटक कलयुग बहार (पियवा नसइल) के पियक्कड़ पति के दुरवेवहार पर लोग थू थू करे पर मजबूर करत बाड़े साथै साथै ‘नशा’ के आदत से होखे वाला समस्या से जागरूक करत बाड़े.
    बेटी वियोग (बेटी बचवा) में बुढ वर से आपन विआह पर बेटी के वियोग बड़ा कारुणिक बा
    ” रूपया गिनाई लिहल
    पगहा धराई दिहल
    चेरिया के छेरिया बनवल हो बाबूजी ”
    ‘ गंगा असनान से धार्मिक रूढी वादी आ ढोग के विरोध बा त महतारी के प्रति बेटा -पतोह के कर्तव्यबोध के पाठ बा. ‘ भाई विरोध’ नाटक संजुक्ता परिवार टूटे के कहानी बा जहवा पूजीवादी समाज के परिणति बा. श्रम आ पूंजी के विषमता दु गो भाई में बंटवारा के नौबत ले आवत बा”(५)
    (५.तैयब हुसैन पीड़ित के लिखित हिंदी पुस्तक : भारतीय साहित्य के निर्माता “भिखारी ठाकुर” के मोनोग्राफ, पर. साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली में दिहल आलेख ” भिखारी ठाकुर : साहित्य और रंगकर्म की सामाजिक सार्थकता:के पृष्ट स. ९४-९५ से साभार)
    भिखारी के सबसे विख्यात नाटक ‘विदेसिया’ (बहरा बहार) आजो सामाजिक चेतना के झकझोर देला. आखिर गाँव से सहर को ओर पलायन काहे बा ?
    भिखारी के सबसे तगड़ा नाटक ‘गबरघिचोर’ मानल जले. घिचोर बहार के नैयिका के पति के लमहर वियोग से जवन विचलन बा आ ई विचलन से पैदा भईल जमाल के समाजिक मान्यता आ पुरुष प्रधान में माता के अधिकार के सुरक्षित रखे के बात भिखारी कहत बाड़े. भिखारी लमहर पति वियोग से भइल विचलन के भी जाइज मने के पक्ष में खड़ा लउकत बाड़े .पुत्रबध, विध्वविलाप भाई विरोध आदि में खून खराबा के दुसल गईल बा.
    ” भिखारी ठाकुर के नाटकन में स्त्री के सामाजिक स्तिथि, समस्या आ मनोविज्ञान के सामाजिक स्तिथि के गहराई से व्यक्त भईल बा. गबर गिचोर से लेके विधवा विलाप तक भारतीय ग्रामीण औरतन के दुरदासा भिखारी से छुपल नईखे . ईहो बात भिखारी से नईखे छुपल की भोजपुरी समाज में औरतन के दुरदासा के पाछे कवन कारन बा एतने बा कऐ बेर त ई पद के आचाम्भो होला की भिखारी के कविताई कबो एकदम से जिला ज्वर प्रान्त ज्वर देश के सिवान के लाँघ जला जैसे भिखारी कहत बाड़े
    ” जियाला पर कुत्ती कुत्ता
    कहेला पतोह पुता ”
    ई बात एगो अमेरिकेन मुहावरा से ढे खानी मिळत बा जन्व्हा ई कहल जला
    ” son is son till he gets a wife but daughter is daughter all her life “(६)
    (६.. मुन्ना पाण्डेय, दिल्ली विश्वविद्यालय के आलेख “भोजपुरी लोकरंग के वैश्विक कलाकार: भिखारी ठाकुर, अंजोरिया.कॉम से साभार )
    एही से हमनी कह सकिला की भिखारी ठाकुर के सगरो रचना आगू भी प्रासंगिक बा कहे की एह रचनन में जवान समस्या उठावल गइल बा उ आजू के समय में व्याप्त बा.
    जरुरत बा अईसन कज्करम के बौधिक कज्करम के जेकरा माध्यम से भिखारी ठाकुर के सगरो साहित्य पर संबाद हो सके जवना से आज के दिग्भ्रमित हॉट समाज के दिशा आ दशा मिल सके.
    अंत में डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना के शब्द में कहल चाहेब ” जेह्तारे कबीर जी के एक एक दोहा भारतीय जीवन के दर्पण बा ओसहिं भिखारी ठाकुर जी के नाटक के विषय में जेतना उनका समय में प्रासंगिक रहे ओतने आजुओ बा. काहे की जवान समस्या कालहु रहे ओह में तनको घटाव आजुऊ नइखे. बाल बिआह होखे भा अनमेल विवाह दहेज़ परथा भा महाजनी दावं पेंच में, कुलही आजुवो सुरसा नियर मुह ववले खड़ा बा .”(७)
    (७.डॉ. गोरख प्रसाद मस्तानाजी के आलेख : भिखारी ठाकुर एगो इयाद : भोजपुरी जिनिगी पृ 40 अंक अक्तूबर २००९-मार्च २०१० से साभार)
    एह प्रकार से भिकारी ठाकुर जी भोजपुरी भाषा के एगो अनमोल धरोहर बनी. भोजपुरी के जवन सेवा ठाकुर जी कइलन उ हमेशा सुनहला अछर खानी भोजपुरी साहित्य में चमकत रही. समाज के इ समन्वयक, मार्गदर्शक के हमार सन सत नमन.

  7. Amitesh

    munaa pathak ji se bat hui thi. aap ek bar munna pandey ji se bat kar lijiye.

  8. rajeev ranjan rai

    amitesh ji aapne santosh patel ji ke speech par kis se aapatti jataee. if possible then call me9312240631.

  9. SURYBHAN RAI

    chandan bhee ham tohra bat se sahmat bani dubeji t bhojpuri ke daynasor bade. leki yeh bat ke ham na janat rahni. cal sam ke bat kaeel jaee ph karih 9711143512 par. hum yuva sachiv bani BRT ke

  10. SURYBHAN RAI

    bahut badhia ahitare bojpuri ke protshahit kaeel jaeet t hamni ke jarur safalta mili.batiaave ke man kari t ph karbi 9711143512.yuva sachiv bhikhari thakur rastriya pratisthan

  11. चंदन कुमार मिश्र

    ई सब बात अमितेश जी बात पर लिखतानी।
    __________________________________

    मतलब अँजोरिया पर कुछ गलत लोग भी आ गइल बा जेकर चर्चा ईंहा सही मान के होला(ओम जी बात के तनि सा गहराई से समझीं)। रविकांत दूबे के भोजपुरी से संबंध ओइसहीं बा जइसे बिग्जयान के लेखक के इतिहास के मास्टर बना दिआव। अब ई संतोष पटेल जी के काम अइसने बा? अगर राउर खबर सही बा त एकर मतलब बा कि एगो पत्रिका के संपादक एतनो ना कर सकस कि अपना से कुछ इन्तजाम क के कुछ सामग्री लिख के बोल सकस। एकदम अफ़सोस के बात आ मन दुखी करे वाला ई सब बात बा। हम त जब कहेम शाएद लोग के तनि कड़ा लागी आ अखर सकेला बाकिर ए लोग के काम आ प्रचार देखिए के कुछ कहेनी। 2005(संभवत:, ध्यान नइखे कि 2004 में कि 2005 में) में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन में मूँजा मटियारी, गोपालगंज गइल रहनी। ओमें केदारनाथ सिंह सहित ढेर लोग आइल रहे। ओकर आयोजन कइले भोजपुरी के पुरान आ बड़ लेखक/कवि आ भोजपुरी में पहिला बेर पाठ्यपुस्तक तइयार करावे वाला सिपाहीं सिंह पागल/श्रीमन्त के पुत्र आ हमार अध्यापक भारतेश्वर नारायण सिंह्। बाकिर हमरा मालूम बा कि ऊ भोजपुरी के कतना भला कइले बाड़न आ उनकर योगदान कतना बा भोजपुरी में।

    पइसा आ सामाजिक रुतबा से का हो सकेला?
    ओम जी से बिनती बा कि अँजोरिया पर साँचहूँ ई बात सही बा आ अइसन लोग आ जाय त जगे ना दिआव।

  12. Amitesh

    एह कार्यक्रम में संतोष पटेल नाम के सज्जन जे भोजपुरी जिनगी के संपादक हऊएं मुन्ना कुमार पांडे के पर्चा अपना नाम से पढ़ देलें. आपत्ति दर्ज करईला के बाद भी कौनो सुनवाई ना भईल. इ लेख अंजोरिया पर छपल रहे.
    http://anjoria.com/?p=2869 एह लिंक पे क्लिक क के पढीं.

  13. amritanshuom

    बौद्धिक सत्र के समाप्ति के बाद आ पाहिले भी लोक -धुन से गुंजत रहे राजेंद्र भवन .कार्यकर्म बहुत बढ़िया रहल .आलोचना त होखते रहेला .कार्यकर्म करवावे वाला लोगन के बहुत -बहुत धन्यवाद !
    ओ.पी.अमृतांशु

  14. चंदन कुमार मिश्र

    मनेजर पांडे भोजपुरी के बिदवान कब से? गोपालगंज घर होखला से भोजपुरी के बिदवान त होइहें जइहें जब हिन्दी के बड़का आदमी बाड़न। रिपोर्ट बन्हिया लागल। दूबे जी भोजपुरी खातिर कुछ कइले बाड़न? का? एके बेर टपक के आ गइलन भोजपुरी में। ना एगो किताब ना कवनो संबंध भोजपुरी से, उनकरा से बन्हिआ कवनो गाएक आ जाइत। अइसन समारोह, फूलबाजी आ मिठाई त हमेशा होबे करेला। भिखारी ठाकुर के नाम पर एको जाना चुप ना रहिहें बाकिर भिखारी अइसन जनता से जुड़ल के पसन करता एमें से? बस किताब लिखाइल आ गीत गवनई भइल, ईहे त समारोह बा। बुरा मत मानेब ओम जी। अमितेश भाई के रिपोर्ट से ऊहाँ के क्रिया-करम पता चलल। उनकर धन्यवाद!

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अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


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एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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चुटपुटिहा

सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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