‘महुआ’ के चर्चित रियलिटी शो ‘सुर-संग्राम’ सीजन दू के एक साल बाद आइल फैसला में उपविजेता घोषित ममता राउत कवनो परिचय के मोहताज नइखी. एह बुलन्दी पर पहुँचे खातिर उनुकर संगीत के लगन आ कड़ा मेहनत कामे आइल. लइकाईयें से पढ़ाई का साथही गीत गवनई के जवन जुनून चढ़ल से आजु पूरा भारत में ममता का मार्फत रांची (झारखण्ड) के नाम रौशन करावत बा.

ममता राउत बतावेली कि उनुकर बाबूजी बैजू बावरा आ मोहम्मद रफी के गीतन के प्रशंसक हउवे आ हमेशा उनुकर गीत गुनगुनात रहेले. ममता के दादाजी रामवृक्ष राउन नौंटकी कंपनी चलावत रहले आ खुदहु मंच पर गावत रहले. एहसे संगीत विद्या ममता के विरासत में मिलल बा. बाकिर अपना बड़की बहिन ललिता राउत के ममता अपना प्रेरणा के स्रोत बतावेली. ललिता शादी से पहिले स्टेज शो करत रही.

ममता राउन अपना स्कूल में 6वीं कक्षा रहत घरी “इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के” गाना से अपना गवनई के शुरूआत कइली आ आजु पूरा भारत में सौ से अधिका शो कर चुकल बाड़ी. उनुका सफलता के आलम बा कि साल 2007 में झारखण्ड आईडल का खिताफ मिलल, मेरी आवाज सुनो, (सा रे गा मा पा बिहार) विजेता रहली आ रांची के सबले बड़का संगीत प्रतियोगिता ‘शंखनाद’ में हिट गीत ‘झाड़ू पोछा करब नहीं’ से पार्श्व गायन के शुरूआत कइला से ले के अबले मुकाबला, दामाद चाही फोकट में, इलाका, गुलाम, पागल प्रेमी, राम लखन, रंगदारी टैक्स, दंगल, मंगल फेरा, प्यार भईल परदेसी से, जोड़ी बंधन, रंग दऽ प्यार के रंग में, जिनगी तोहरे नाम कइली, कईसन पियवा के चरितर बा, गजब सीटी मारे सईंया पिछवारे, डोल चढके दुल्हिन ससुरार चलेली वगैरह फिलिमन में गा चुकल बाड़ी.


(अपना न्यूज के भेजल रपट)

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By Editor

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