– हरींद्र हिमकर


उत्तर ओर सोमेसर खड़ा,
दखिन गंडक जल के धारा |
पूरब बागमती के जानी,
पश्चिम में त्रिवेणी जी बानी |
माघ मास लागेला मेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

त्रिवेणी के नामी जंगल,
जहँवा बाघ करेला दंगल |
बड़का दिन के छुट्टी होला,
बड़-बड़ हाकिम लोग जुटेला |
केतना गोली रोज छुटेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

नदी किनारे सुन्दर बगहां,
मालन के ना लागे पगहा |
परल इन्हा संउसे बा रेत,
चरके माल भरेलें पेट |
रेल के सिलपट इन्हा बनेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

इन्हा मसान नदी बउरहिया,
ऊपर डुगरे रेल के पहिया |
भादो में जब इ फुफुआले,
एकर बरनन करल ना जाले |
बड़का-बड़का पेड़ दहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

इहे रहे विराट के नगरी,
जहँवा पांडव कईलें नौकरी |
अर्जुन इहंवे कईलें लीला,
इहंवे बा विराट के टीला |
बरनन वेद-पुराण करेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

परल इंहवा पानी के टान,
अर्जुन मरलें सींक के बाण |
सींक बाण धरती में गईल,
सिकरहना नदी बह गईल |
जेकर जल हर घड़ी बहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

रामनगर राजा नेपाली,
माँगन कबो ना लौटे खाली |
इहाँ हिमालय के छाया बा,
इन्हा अजबे कुछ माया बा |
एही नदी में स्वर्ण दहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

रामनगर के धनहर खेती,
एकहन खेत रोहू के पेटी |
चार महीना लोग कमाला,
आठ महीना बइठल खाला |
दाना बिना केहू ना मरेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

इहाँ जाईं चानकी पर चढ़,
देखीं लौरिया में नंदनगढ़ |
केहू कहे भीम के लाठी,
गाड़ल बा पत्थर के जाथी |
लोग अशोक के लाट कहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

नरकटियागंज देखीं गाला,
मंगर शनिचर हाट के हाला |
लेलीं बासमती के चाउर,
अन्न इहाँ ना मिली बाउर |
भात बने बटुला गमकेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

आगे बढीं चलीं अब बेतिया,
बीच राह में बा चनपटिया |
इहाँ मिले मरचा के चिउरा,
किन-किन लोग भरेला दउरा |
गाड़ी-गाड़ी धान बिकेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

बेतिया राजा के राजधानी,
रहलें भूप करन अस दानी |
पच्छिम उदयपुर बेंतवानी,
बढ़िया सरेयाँ मन के पानी |
दूर-दूर के लोग पियेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

बेतिया के मीना मशहूर,
गिरजाघर भूकंप में चूर |
बाड़े अबतक बाग़ हजारी,
मेला लागे दशहरा के भारी |
हाथी घोडा बैल बिकेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
आलू डगरा बस बेतिया के,
भेली सराहीं जोगिया के |
गुड़ चीनी के मात करेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

बेतिया के दक्षिण कुछ दूर,
बथना गाँव बसल मशहूर |
इहाँ बा लाला लोग के बस्ती,
धंधा नौकरी और गिरहस्ती |
एमे केतना लोग बसेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

चंपारण के गढ़ मोतिहारी,
भईल नाम दुनिया में भारी |
पहिले इहे जिला जागल,
गोरन का मुँह करिखा लागल |
नीलहा अबतक नाम जपेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

गाँधीजी जब भारत में अइलें,
पहिले इंहवा सत्याग्रह कईलें |
लीलाहा देखी भाग पराईल,
तब से ना चंपारण आइल |
मोतिहारी के नाम जपेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

इन्हवे बसल सुगौली भाई,
गोरे-गोरखे भइल लड़ाई |
हारे पर जब भइलें गोरा,
धर दिहलें गोली के बोरा |
भईल सुलह इतिहास कहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
कँवरथिया के देखीं राबा,
अरेराज बउराहवा बाबा |
नामी अरेराज के मेला,
आके दरशन लोग करेला |
फगुनी तेरस नीर चढ़ेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

छपरा जिला गोरखपुर बस्ती,
जेकर इहाँ होत परवस्ती |
केहू नोकरी केहू नाच करेला,
माँगन लोग दिन-रात रहेला |
केतना लोटा झाल बजेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
खाए में जब खटपट भइलें,
भाग के तब चंपारण अइलें |
माँगी-चाँगी के धन-धान कमइलें,
माँगन से बाबू बन गईलें |
अइसन केतना लोग बसेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

सब दिन खईलें सतुआ लिट्टी,
इहाँ परल देहिया पर पेटी |
बाप के दुःख भूल गईलें बेटा,
भोर परल माटी के मेटा |
अब त लाख पर दिया जरेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

का करिहें कविलोग बड़ाई,
जग चंपारण के गुण गाई |
आपन कमाई अपने खाला,
केहू से ना मांगे जाला |
ए देख दुश्मन ठठुरेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |

रहलें उ कविचूर के साथी,
इहंवे के भईया देहाती |
कविता बा उ देहिया नइखे,
गगरी भरल खींचाते नइखे|
रटना अबहीं लोग करेला,

चंपारण के लोग हँसेला | |

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By Editor

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