आखिर ऊ हऽ के?

by | Apr 28, 2010 | 0 comments

जक्शन से खुलल ट्रेन धीरे धीरे आपन रफ्तार पकड़ लिहलस. ओकरे एगो डिब्बा में बइठल ऊ नौजवान कवनो सपना में भुलाइल अपना मंजिल के खोजत रहुवे. ओह जमाना में रेलगाड़ी कोयला पानी खा पी के चलत रहली सँ. तब ना त डीजल इंजन रहे ना बिजली के टइंजन. करिया धुआँ फेंकत ऊ रेल गाड़ि रोजाना का तरह अपना मंजिल का तरफ बढ़त जात रहुवे. डिब्बा में बइठल लोग के आपसी बातचीत का बीच बीच में छुकछुक के आवाज आ रह रह के इंजन के सीटी एगो संगीत जइसन माहौल बनवले रहुवे. धीरे धीरे रात आइल आ लोग नींद लेबे लागल. केहू बईठले बइठल झूलत रहे त केहू खर्राटा भरत नींद में डूबल. बाकिर ओह नवजवान का आँख में नींद कहाँ? ओकरा त इहो ना मालूम रहे कि ऊ जात कहाँ बा? का करी ओहिजा जा के?

केहू तरे रात बीतल. फजीरे अधनीना हालत में जब टीटी ओकरा से टिकट मँगलस त ऊ चौकन्ना भइल. टिकट त पाले रहे ना. से टीटी जुर्माना समेत टिकट बनवलसि आ ऊ अपना लगे के थाती में से केहू तरह अढ़ाई सौ रुपिया दे के टिकट लिहलस.

३६ घंटा के सफर का बाद ऊ शख्स मुंबई का धरती पर रहे. एगो लॉज वाला से रहे खाये के साढ़े तीन सौ रुपिया में तय भइल बाकिर तीसरके दिने लाज के कर्मचारी पइसा माँग बइठलें. अइसनका मुसीबत में अचके बिहारे के रहे वाला एगो असिस्टेन्ट डायरेक्टर से भेंट हो गइल आ ऊ काम दे दिहलें. रोज के पचीस रुपिया पर. गुजारा करे खातिर ओतना काफी रहुवे. रास्ता त मिल गइल बाकिर मंजिल अबहीं दूर रहे. बाकिर ओहसे का? प्रतिभावान आदमी खातिर मुसीबत एगो कमजोर चट्टान होखेले. मन में बा विश्वास कि होखब कामयाब के नारा से स्वर में स्वर मिलावलत ऊ चल देबेला मंजिल के चोटी छुवे. आजु उहो आदमी बुलंदी का साथे मंजिल के चोटी पर चहुँप चुकल बा जहवाँ आज कई लोग चहुँपल चाही.

रउरो सोचत होखब कि ई कवनो फिल्मी कहानी ह कि कवनो कल्पना के उड़ान. बाकिर ह ई एगो सच्चाई आ हकीकत के बयान ओह शख्सियत का जिनिगी का बारे में जे अब चौवन बसन्त पार कर चुकल बा. ओह आदमी के नाम हऽ गोपाल राय जे अब ले सैकड़ो भोजपुरी फिल्म में तरह तरह के रोल कर चुकल बा. हर रोल के इमानदारी आ पूरा लगन से निबहले बाड़े गोपाल राय आ दर्शकन का दिल में आपन अमिट छाप छोड़ दिहले बाड़न.

गोपाल राय के फिल्मन के गिनती मुश्किल काम नइखे बाकिर ओकनी के नाम एहिजा लिखल जरुर बड़हन काम हो जाई. एहसे कुछ गिनितिये भर के फिल्म के नाम दे रहल बानी सात सहेलियाँ, देवरा बड़ा सतावेला, पिया के गाँव, पिया के प्यारी, बैरी कंगना, घर अँगना, गंगा कहे पुकार के, लागल रहा ए राजाजी, दिवाना, जय मईया अम्बे बवानी, माटी, लहु पुकारेला, पांडव, गंगा जइसन माई हमार, ए बलम परदेसी, नाग नागिन वगैरह… आवहू वाला फिल्मन के लमहर लाइन बा.

साल में सात आठ गो फिल्म करे वाला गोपाल राय भोजपुरी सिनेमा के सब सुपर स्टारन का साथ काम कर चुकल बाड़न. इनका अभिनय के शुरुआत अशोक जैन के गंगा किनारे मोरा गाँव से भइल रहे. ५४ बसन्त पार कर चुकल गोपाल राय भोजपुरी के महतारी के सम्मान देत भर जिनिगी एकर सेवा में जुटल रहे के ख्वाहिश राखेलें.


(स्रोत : संजय भूषण पटियाला)

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