देख नयन भरि आइल सजनी

by | Jan 25, 2011 | 0 comments

बिरहा भवन से लवटि के

– दयानंद पांडेय

आजुवे बिरहा भवन से लवटल बानी. दुख, कोहरा, आ धुंध में लपटाइल बिरहा भवन के छोड के. शीत में नहात. बिरहा भवन मतलब बालेश्वर के घर. जे मऊ ज़िला के चचाईपार गाँव में बा. कल्पनाथ राय रोड पर. बालेश्वर के बड तमन्ना रहे हमरा के अपना बिरहा भवन ले जाये के. देखावे के. हमहू गइल चाहत रहनी बाकिर कवनो कवनो व्यवधान आ जात रहे आ कार्यक्रम टल जाव.गोरखपुर में हमरा गांव बैदौली बालेश्वर तीन बेर गइल रहलें. से उहो हमरा के आपन गांव देखावल-घुमावल चाहत रहले. काल्हु बिरहा भवन गइबो कइनी. बाकिर एह तरह जाये के होखी, ई ना जानत रहीं. काल्हु २३ जनवरी के बालेश्वर के तेरही रहुवे. भोजपुरी के एह अमर गायक, अपना माटी के गायक का घरे जइसे पूरा जवार उमड आइल रहे. कहीं कि टूट पडल रहे. सबेरे से देर रात ले लोग के आना-जाना बनल रहल. ई आत्मीय जन समुदाय देख के लागल कि काश बालेश्वर एहीजे आंख मूंदले रहतन भा फेरु कम से कम उन कर अंत्येष्टि एहीजे कइल गइल रहीत त शायद मरला का बाद लखनऊ वाला उपेक्षा ना भोगे के पड़ित. लखनऊ में जवन थोड बहुत लोग आइलो रहे, अधिकतर औपचारिकता निबाहत रहले. बाकिर बिरहा भवन में लोग आत्मीयता में जुटल रहे. अइसे जइसे कवनो दूब ओस में नहाईल होखे. वइसहू बालेश्वर लखनऊ में रहत भले रहले बाकिर कहसु कि, जियरा त हमार वोंहीं रहेला !’ भोजपुरी बिरहा गायकी में ठेका का तौर पर साथी कलाकार जिय !! जिय !! के ललकार जइसे देले वइसहीं.

हालांकि एहिजा लखनऊओ में उनका शव यात्रा में एगो सांसद रहले, भोजपुरी समाज के लोग रहे, मालिनी अवस्थी रहली, विधान सभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर खुद पहुंचे रहले भैंसाकुंड. उनुका के अंतिम विदाई देबे. लखनऊ में रह रहल उनकर सगरी संगी- साथी, कलाकार, हित- मित्र सभे रहे. लेकिन एगो देखावा लगातार पाबस्त रहुवे, जे चचाईपार के बिरहा भवन में दूर-दूर तक ना झलकल. ना ही ई दिखावा करे वाला लोग. उनकर साथी कलाकारो बेसी ना लउकले. उहो लोग ना लउकल जे एहिजा लखनऊ में उनका साथे दिन रात नत्थी रहत रहे. जिनका के एहिजा उह बसवले रहले, अंगुरी पकड के गायकी में चले के सिखवले रहले. हँ, उनकर हरमुनिया मास्टर हरिचरन दू दिन पहले से बिरहा भवन पहुंचल पटाइल रहले. गोया कार्यक्रम के पहिले रिहर्सल आ रियाज़ ज़रूरी रहे कि कहां कतना मीटर देबे के बा, कहवां तान देबे के बा, कहां मुरकी, कहां खटका, आ कहां आलाप भा कोरस देबे के बा. अउर हँ, जिय! जिय! के ललकारो. मास्टर बरिसन से बालेश्वर के संगत अपना हारमोनियम का साथे करत रहले, उनके साथे दुनियो घूमले. अबहियो ओही भूमिका में रहले. हँ, बिल्कुल नया पौध के कुछ कलाकारो चहुंपल रहले आ पूरा मन-जतन का साथे. जइसे संजय यादव, दीपक आ अंगद जइसन बचवा. जिनकर मूंछ की रेघाईयो अबहीं साफ नइखे आइल. अउर अबही पढाईयो खतम नइखे भइल. बालेश्वर जे जियते जिनिगी किंवदंती बन चलल रहले, सभे उनके बतकही में लागल रहले. बालेश्वर के भतीजा हउवन शिवशंकर. गांवे पर रहेले. घर दुआर, खेती-बारी उहे सम्हारेले. बतवले कि एक बेर अइलें त एहीजे खेत मे लोटाये लगले. रोवे लगले. पूछनी कि का भइल ? त हमरा के अँकवारी भर लिहलन. कहे लगलन कि एह माटी के बड़ा करजा बा हमरा पर.हमरा के कहां से कहां पहुंचा दिहलिस. तब ऊ कहीं विदेश से लवटि के आइल रहले.

याद आवत बा १० जनवरी के बालेश्वर का शव यात्रा में एगो सांसद आ भोजपुरी समाज के पदाधिकारी चलत जात रहले आ बालेश्वर का बारे में जवने आध-अधूरा जानकारी रहुवे परोसत जात रहले. आ जब बेसी हो गइल त बालेश्वर के टीम के एगो पुरान एनाऊंसर सुरेश शुक्ला अचानके भडक गइलन. चिचिया के कहलन, ‘रउरा लोग कुछ नइखीं जानत ! बंद करीं ई सब बकवास ! सब गलत-सलत बोलत जात बा. सांसद महोदय भकुआ गइलन. हमरा ओर देखले सशंकित नज़र से. कि जइसे हम उन का बातन के सही ठहरा दीं. ऊ लोग शायद शुक्ला जी के जानतो ना रहुवे. हम चुप रहनी बाकिर जब ऊ दुबारा सवालिया नज़र से हमरा ओरि देखलन त हम गँवे से कहनी, ‘शुक्ला जी ठीक कहत बाड़े.’ लोग बिखर गइल रहे. अइसही १६ जनवरी के प्रेस क्लब में आयोजित श्रद्धांजलि सभो में बहुते सारा लोग आध-अधूरा जानकारी में झूठ-साँच मिला के ताश फेंटत रहले. इहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव, जे कि बालेश्वरे के इलाका के रहे वाला हउवे, बोलत-बोलत रौ में बह गइले. कहे लगलन कि, ‘ जब हम मुख्यमंत्री रहीं तब होली में बालेश्वर अपना टोली का साथ आवत रहसु हमरा इहां. कदंब के पेड का नीचा बइठ के गावसु. एक बेर हमरा से कहे लगले कि हमरा के रेडियो में गावे के मौका दिला दीं. आ हम दिअवनी.”

त ईहो बाति बहुते लोग के हजम ना भइल. संयोग से शुक्ला जी ना रहलें. ना त एहिजा त माइके रहुवे. जाने शुक्ला जी उनकर का गति बनवते. तथ्य ई रहे कि राम नरेश यादव १९७७ में मुख्यमंत्री बनले आ बालेश्वर १९७५ से आकाशवाणी पर ना सिर्फ़ गावते रहले बलुक भोजपुरी गायकी में झंडा गाडत रहले. खैर, एहिजा बिरहा भवनो में खूब बतकही चलल. किसिम-किसिम के किस्सा रहे बालेश्वर का बाबत. भाउकता रहे आ सहज रहे. कतहीं कवनो घाल-मेल ना. निमन-बाउर हर तरह का चाशनी में. बाकिर बिना मिर्च-मसाला के. उनका असल गांव बदनपुरा के कृपाशंकर सिंह बचपन के संहतियां हउवें. आठवीं तक साथ पढले. उनका बारे में एक से एक व्यौरा परोसत रहले. उनुकर खुराफातो बतावत रहले आ उनुकर चालूपनो. बिलकुल मित्र भाव में. बतवले कि, ‘तब बिरहा के दंगल होखे. हमहन बटुरा के लाठी- वाठी ले के जाईं सँ. आखिर दोस्त के जितवावे के रहत रहुवे, बाद में कुछुवो हो जाव.’ अचानके ऊ रूकले, कहले, ‘एक बेर त गज़बे हो गइल. ऐन बिरहा में अपोज़िट पार्टी के गाना में गरिया दिहलन आ भाग चललन. हमनी का घेरा गइनी जा.’ ऊ जइसे कि जोडले, ‘अरे बडा चालू रहे. बाद में कल्पनथवा के चक्कर में आइल त अउरी चालू हो गइल.’ एगो दोसर साथी जोडले,’ चालू रहे तब्बै न एतना आगे बढ गइल. नाम कर गइल ज़िला जवार के.’

ई सही बा कि बालेश्वर के सब से पहिले स्वतंत्रता सेनानी आ विधायक विष्णुदेव गुप्ता पहिचनले आ अपना चुनाव मे सोसलिस्ट पार्टी के मंच दिहले. पर जल्दिये बालेश्वर झारखंडे राय का साथे जुड के कम्युनिस्ट हो गइले. फेर बहुते दिन ले ऊ झारखंडये राय का साथ जुडल रहले. बाद में उनुकर इहे साथी रमाशंकर सिंह कल्पनाथ राय का बहुते दबाव पर बालेश्वर के उनुका से मिलववले. फेर त ऊ कल्पनाथ राय के हो के रह गइलन. आगे चल के त ऊ सभका खातिर गावे लगले. सोनिया गांधी तक खातिर भीड़ बटोर आ ओकरा के बन्हले राखे के काम उणुका के सँउपल गइल. फेर त ऊ मुलायम- लालू से लगायत लाल जी टंडन तक, का जाने केकरा-केकरा ला गवले. लोग कहे कि बालेश्वर के ई पतन ह. बालेश्वर कहसु, पतन ना, मजूरी ह. जे मजूरी देही ओकरे खातिर गाएम. हालांकि साँच इहो बा कि अधिसंख्य बेर बिना मजूरीओ लिहले गावत रहले. संबंध निबाहे खातिर. कई बेर लोग उनुकर मजूरीओ मार देव. बाकिर ऊ ओकर गांती बांध के ना घूमसु. चचाईपार के मनोज यादव बतवले कि अबहिये हमरा एगो दोस्त का घर में शादी रहे. ४ जनवरी के. बालेश्वर चाचा हमरा एके बार के कहला पर लखनऊ से आ के गा दिहलन. हम जब लखनऊ से चहुँपली बिरहा भवन त मनोज यादव जबरदस्ती हमनी के अपना घरे लिआ गइलन नहावे धोवे ला आ खाये खातिर. आ इहे ना चचाईपार के हर घर किवाड खोलले सब के स्वागत खातिर तइयार रहुवे. कि बाहर से जेही आए ओकरा कवनो दिक्कत ना होखे. हालां कि बालेश्वर खुद बिरहा भवन एतना बड बनवा गइल बाड़न कि एगो का दू दू तीन तीन गो बारात टिक जाव ओहिजा. तबहियो गांववालन के आपन भावना रहुवे. बालेश्वर से उनुकर जुडाव रहुवे. ई जुडावे त रहे कि कल्पनाथ राय के बेटा आ बीबी भलही राजनीतिक रूप से अलगा- अलगा होखसु पर अलगे सही अइले सिद्धार्थो राय आ सुधो राय. आ उनुकर बहूओ. कल्पनाथ राय के गांव सेमरी जमालपुर बालेश्वर के गांव से ४ किलोमीटर का दूरी पर बा.

लखनऊ वाला दिखावा एहिजा ना रहे पर अइसन कवनो जमात ना रहे जे ओह दिन बिरहा भवन बालेश्वर के श्रद्धा के फूल चढावे ना आइल होखे. कवनो पार्टी ना रहुवे जवना के कार्यकर्ता ना आइल होखसु. छोट-बड सभे. अतना लोग, अतना तरह से आवत रहे कि का बताईं ? सगरी पूर्व विधायक, वर्तमान विधायक, ज़िला पंचायत सदस्य. अलाने- फलाने. अचानक एके साथ कई-कई गो गाडी जब रूके त ओहिजा मौजूद लड़िकन में कौतूहल उपजे. एगो लडका जे टीन एज रहे, अपना के बेसी चतुर बरतत सभकर व्यौरा परोस जाव. बाकिर जब बेसी हो गइल त केहू पूछे, ‘ई के ह ?’ त ऊ कहे, ‘ कवनो बड़का आदमी !’ आ लोग हंसे लागे. हमरा अचानके कैलाश गौतम के याद आ गइल. अब त उहो नइखन बाकिर एक बेर इलाहाबाद में उनका बेटा के शादी रहे. कार्ड देत कहले, ‘राजा अइह ज़रूर.’ हम गइबो कइनी. बारात में देखनी कि कमिशनर से लगायत खोमचा रिक्शा वाला सभे मौजूद रहे आ सभे एके साथ भोजन करत. इहे हाल बालेश्वरो किहां रहल. कैलाश गौतमो जनता से जुडल कवि हउवें आ बालेश्वरो जनता से जुडल गायक. से ई साम्य स्वाभाविके रहल. लखनऊ में १० जनवरी के जब बालेश्वर के अंत्येष्टि होत रहल त भैसाकुंड पर खडा-खडा कहानीकार शिवमूर्ति जी बोलले, ‘ कवनो दोसर लेखक नइखे लउकत ?’ हम कहनी,’ लेखक समाज में बड़ले कव गो बाड़े ?’ ऊ चुप रह गइले. लेकिन एहिजा बिरहा भवन में केहू चुप ना रहे. ऊ चाहे पंडित जी होखसु भा डोम जी, चाहे ठाकुर सहब होखसु भा यादव जी, अमीर होखे, गरीब होखे, सभे बालेश्वरे का बतकही में धंसल पड़ल रहे. आकंठ. घर में गांव के औरत लाइन से बइठल पूडी बेलत रहली. चलन के मुताबिक गावत ना रहली. गांव में चलन बा कवनो काम करत औरत गाना गावेली बाकिर आजु शोक में कइसे गावसु ? सभ कर आंख नम रहे. बालेश्वर के एगो गीत याद आ जात बा. हमरे बलिया बीचे बलमा भुलाइल सजनी ! जवना का आखिर में ऊ गावत बाड़े,’ लिख के कहें बलेसर, देख नयन भरि आइल सजनी !’ साँचहू हमार आँखि भर आवता. लवटि आवत बानी बिरहा भवन से. शीत में नहात.



दयानंद पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार, लखनऊ

संपर्क सूत्र
5/7, डाली बाग, आफिसर्स कॉलोनी, लखनऊ.
मोबाइल नं॰ 09335233424, 09415130127
e-mail : dayanand.pandey@yahoo.com

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(3)


24 जून 2023
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(4)

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