भउजी हो !
का बबुआ ?
मठिया पर के बाबा त आजु लुत्ती फेंकत रहुवन.
काहें बबुआ ?
भभीखना अपना ट्रैक्टर पर गाना बजावत जात रहुवे “लहँगा उठा देब रिमोट से”. गाना सुनते बाबा पिनक गउवन आ लगलन खीसि लुत्ती फेंके.
बाबा के खीस कवना बाति पर रहुवे ? लहँगा उठवला पर कि ओकरा के रिमोट से उठवला पर ?
उनुका त पूरा गनवे पर विरोध रहुवे. सरापत रहुवन कि ससुरा भोजपुरी के बदनाम करि के राख दिहले बाड़न स.
त बाबा के हिन्दी फिलिमन के गाना काहे ना सुनवा दिहनी ? “चोली के पीछे क्या है, लहँगे के नीचे क्या है” चाहे “बात थी यार एक बेर की, बढ़ के हो गई सवा सेर की.” उनुकर जानकारी कुछ बढ़ जाइत. अरे भाई सिनेमा ह कवनो धार्मिक प्रवचन त ह ना.
बाकिर बाबा के कहना बा कि ससुरन के सुने के बा त सुनऽ सँ दोसरा के काहे सुनवावत बाड़े सँ ?
त बाबा से पूछनी काहे ना कि सभा समारोहन में, पूजा वगैरह में, अजान वगैरह में लाउडस्पीकर लगा के दोसरा के काहे सुनावल जाला? सुतल मुश्किल कर देला लोग.
भउजी, हम त कह दिहनी कि बाबा अनेरे खिसियाइल बाड़ऽ. भोजपुरी खातिर आजु ले कइलऽ का ? आ रहल बात भोजपुरी के, त ऊ तोहरा भरोसे जिन्दा नइखे अपना लोक भरोसे बा.
खैर ई छोड़ीं. बताईं कि लहँगवा उठल कि ना रिमोट से ? काहे कि उठी त तबहिए नू जब लहँगो में रिमोट के रिसेप्टर लागल होखी ?
रहे द भउजी. अइसनका लोग से कुकुर बझाँव ना करे के.