प्रीति करीं अइसे जइसे, कटहर क लासा !

by | Nov 27, 2013 | 1 comment

MdKhalilमोहम्मद खलील के गायकी के मादकता, मिठास आ ओकर मांसलता वाली महक लोग का मन में अबहियों ताजा बा. उनकर मिसरी जइसन मीठ आ खनकदार आवाज़ आजुओ मन में जस के तस बसल बावे. काहे कि “प्रीति में ना धोखाधड़ी, प्यार में ना झांसा, प्रीति करीं अइसे जइसे कटहर क लासा” जइसन गीत गाए वाला मोहम्मद खलील सचहु अपना गायकी से ना त धोखाधड़ी कइलन, ना अपना के सुनेवालन के झाँसा दिहलन. बाकिर उनकर अमर गायकी आजु हमनी का जइसे बिसार दिहले बानी जा. उनकर एकहू कैसेट, सी. डी.भा डी. वी. डी. बाज़ार में खोजले ना मिले. तब जब कि भोजपुरी गायकी में उ लता मंगेशकर के पाया के गायक रहले. तबहियों चूंकि बाज़ार में उतर के बाज़ारु जुगाड़बाज़ी से उ परहेज़ करत रहले से अगर उनुके ज़ुबान में कहल जाव त उनकर गायकी कवनो खोंतवा में लुका गइल बा.

आकाशवाणी के कुछ केंद्रन से उनुकर गावल कुछ बचल-खुचल गाना बीतला दशक ले कबो-कभार बाज जात रहे त लोग झूम जाव. अब त पता ना आकाशवाणी में उनुकर कवनो टेप बाचल बा कि ना आ कि सगरी मेटा दीहल गइल बा, केहू नइखे जानत. लेकिन मोहम्मद खलील जब गावसु त शारदा मां के स्तुति में एगो गीत गावसु कि, ‘माई मोरे गीतिया में अस रस भरि द, जगवा क झूमे जवानी.’ बाकिर का करब, उनुके गावल एगो गीत ह कि, ‘अंगुरी में डंसले बिया नगिनिया हो, हे ननदो दियना जरा द.’ एही गीत के एगो रुपक ह कि, ‘एक त मरीला हम नागिन के डसला से, दूसरे सतावतिआ सेजरिया हे, हे ननदो दियना जरा द.’ भोजपुरी गाइकी में अइसन बिंब आ अइसन रुपक दुर्लभ बा. प्रेम के ई कंट्रास्ट मिलल मुश्किल बा. त मोहम्म्मद खलील के गाइकी के मादकता के ईहे अंतर्विरोध बावे कि लोग उनुका के सुनल चाहत बाड़े बाकिर उनकर सी.डी., भा डी.वी.डी. बाज़ार में नइखे मिलत. दियना बारे वाली कवनो ननदियो नइखे जे उनुका गीतन के सरिहा के ओकरा के लोग के सुलभ करवा के उनुका गाइकी के दियना बुताए बचा सके. उनुका गाइकी के बिरवा के सहेज सके. मोहम्मद खलील के गाइकी के संघर्ष आ एह त्रासदी के छंद बांचल आसान नइखे.

मोहम्मद खलील बलिया के रहले. रेलवे में ग्रेड फोर के नौकरी करस. गाए बजावे के शौक रहल से बलिए में झंकार नाम से एगो पार्टी बनवले. बलिए के पंडित सीताराम चतुर्वेदी उनुका गाइकी से बहुत प्रभावित भइलन त उनुका के आपन एगो गीत “छलकल गगरिया मोर निरमोहिया” गाए ला दे दिहलन. खलील एकरा के दिल खोल के गवले. फेर त खलील के डंका पीटा गइल. साल १९६५ में खलील के ट्रांसफ़र बलिया से इलाहाबाद हो गइल. इलाहाबाद में भोजपुरी भाषियन के केहू पूछे वाला ना रहे. ओह लोग के तादादो कम रहे. बाकिर इलाहोबाद में खलील भोजपुरी गावत रह गइले. उनुका बचवन से लोग पूछे कि ई अइली, गइली का गावे ले तोहार बाबूजी? बचवन का लगे कवनो जवाब ना होखे.

खैर, खलील के हारमोनियम बजावे ना आवत रहे. से उ तबला के डग्गा ले के गावे लगले. ओही से गाना के धुन बनावसु. लेकिन जल्दिए उनकर मुलाकात उदय चंद्र परदेसी से हो गइल. फेर त उनकर काम आसान हो गइल आ उ इलाहोबाद में फेर से झंकार पार्टी बना लिहले. तबहिए खलील के एगो अउर गीतकार मिल गइले, गाज़ीपुर के भोलानाथ गहमरी. “कवने खोंतवा में लुकइलू आहि रे बालम चिरई” गीत उहे खलील के दिहले. खलील एहू गीत के झूम के गवलें. अब खलीले खलील रहले. उनका आगा-पीछे केहू अउर ना रहे . कवने खोंतवा में लुकइलू, आहि रे बालम चिरई गीत खलील के पहिचान बन गइल. भोजपुरी गाइकी के प्रतिमान बन गइल. आजुओ बा.

खलील के गाइकी में आकर्षणे आकर्षण रहल. एक त ठहरल मीठ आवाज, दोसरे ताल आ लय में गजब के संतुलन, तिसरे खलील के अदाकारी. आ ओहपर से सोना प सुहागा ई कि गीतन में नयापन. महेंद्र मिसिर के लिखल, ‘अंगुरी में डसले बिया नगिनिया हो, हे ननदो दियना जरा द’ गीत त जइसे खलील के भोजपुरी गाइकी के मुकुट पहिरा दिहलसि. फेर त भोजपुरीओ गवनई के मान मिले लागल. मानल जाए लागल कि भोजपुरीओ में साहित्य बा, लालित्य बा. सिरिफ सईंया-गोंइया वाली गाइकिए नइखे भोजपुरी में.

बेकल उत्साही के गीत, ‘गंवई में लागल बा अगहन क मेला/ गोरी झुकि-झुकि काटेलीं धान/ खेतिय भइल भगवान/ हो गोरी झुकि-झुकि काटेली धान’ जइसन गीत खलील आ भोजपुरी दुनु के मान अउरी बढ़ा दिहलसि. “छिंटिया पहिन गोरी बिटिया हो गइलीं” भा फेरू “ले ले अइह बालम बजरिया से चुनरी”, आ कि “लाली लाली बिंदिया” जइसन गीतन से खलील के गाइकी के रंग अउरी टहकार हो गइल. “लागल गंगा जी क मेला, छोड़ऽ घरवा क झमेला” जइसन गीत खलील के गाइकिए के ना भोजपुरी गाइकिओ के धरोहर बन गइली सँ. मोती बी.ए., भोलानाथ गहमरी, हरिराम द्विवेदी, महेंद्र मिश्र, राहगीर बनारसी, युक्तिभद्र दीक्षित, जनार्दन प्रसाद अनुरागी जइसन भोजपुरी गीतकारन के गीतन के खलील अपना >गाइकी में त परोसबे कइले ओह गीतन के संगीतमय आत्मो दिहले. ई अइसहीं ना रहल कि उमाकांत मालवीय, शंभूनाथ सिंह, उमाशंकर तिवारी, ठाकुरप्रसाद सिंह, पंडित श्रीधर शास्त्री जइसन हिंदी के गीतकारो खलील के घरे बइठकी करस इलाहाबाद में.

मोहम्मद खलील हमरा जानकारी में भोजपुरी के इकलौता गायक हउवें जे भोजपुरी लोकगीत के स्तर में कबो एको पइसा के समझौता ना कइले. बाजो में. ढोलक, हारमोनियम, तबला, सारंगी का साथे-साथ करताल, नगाड़ा आ बांसुरीओ के उ कबहू ना छोड़ले. शायद एही के नतीज़ा रहल कि उ बाज़ार के ना साध पवले. आ आजु उनका गीतन के एको सी.डी.बाज़ार में नइखे. उनके गावल गीत कुछ दोसर गायक बहुते फूहड़ अंदाज़ में ज़रुर गवले आ उ सी डी बाज़ार में ज़रुर बाड़ी स. ई एहसानफ़रामोश गायक खलील के गावल गीतन के त नास कइबे कइले, कतहीं एको शब्द में खलील के गाइकी ला कृतज्ञता नइखन जतवले.

बतावल जाला कि उनुका गाइकी से प्रभावित हो के एक बेर नौशाद उनुका के मुंबई ले गइले फिलिमन में गवाए ला. खलील अपना मंडली संगे गइबो कइलन मय नगाड़ा वगैरह के. रहलन कुछ दिन मुंबई. बाकिर जब नौशाद उनुका से अपना गाइकी में कुछ बदलाव ले आवे ला लगातार कहे लगलन कि ई अइसे ना हइसे क दीं, त जब बहुत हो गइल त एक दिन खलील नौशाद से हाथ जोड़ लिहलन आ कहलन कि नौशाद साहब ज़रुरत पड़ल त हम भोजपुरी ला अपना के बेंच देब, बाकिर अपना कमाई ला भोजपुरी के ना बेंचब. आ उ चुपचाप आपन टीम लेके वापस इलाहाबाद लवट अइलन.

सोचीं कि एगो उ दिन रहल भोजपुरी गाइकी के, आ एगो दिन आजु बा कि ढेरहन गायक लोग अपना प्रसिद्धी आ पइसा ला भोजपुरी के रोजे कवनो ना कवनो दाम प नीलाम करत जात बाड़े. भोजपुरी भाड़ में चल गइल त उनुका बला से. १९९१ में जब शुगर का बेमारी के चलते खलील के निधन भइल त उ पचपने साल के रहले. उनका जनाजा में समूचा इलाहाबाद हाजिर रहे. हिंदू, मुसलमान, बंगाली, पंजाबी, छोट-बड़, अमीर गरीब सबही हाजिर रहे.

पता ना काहे अब बेर-बेर लागत बा कि उनका निधन का साथ ही भोजपुरी गाइकी के उ स्वर्णकाल विदा हो गइल. उनके गाना में कहीं त कवनो खोंतवा में लुका गइल, कनवो अतरा में समा गइल उ भोजपुरी गाइकी. अब भोजपुरी गाइकी में ना त उ अगहन के मेला लागऽता, ना गोरी झुक-झुक के धान काटऽतारी. खलील के गावल उ एगो गीत इयाद आवत बा “प्रीति में ना धोखा धड़ी, प्यार में ना झांसा, प्रीति करीं अइसे जइसे कटहर के लासा !” फेर उ नगाड़ा बाजऽता आ ओकर गूंजो. त अब भोजपुरी गायक लोग भोजपुरी गाइकी में पइसा ला एतना धोखाधड़ी क दिहले बाड़न, भोजपुरी गाइकी के एतना झांसा दे दिहले बाड़े कि बिला गइल बा भोजपुरी गाइकी फूहड़पन आ आर्केस्ट्रा के आवाज में. जे अब कवनो सुगना पर लोभात नइखे, कवनो फुनगी पर लुकात नइखे. आ कवनो अंतरे, कवनो खोंतवा में ना बाज़ार के भाड़ में समा गइल लागत बिया. ना जाने ई कवन नागिन हियऽ जे भोजपुरी गाइकी के अइसन डस गइल. जवना के पटना के बा कतहीं के कवनो वैद्य बोलवला से ई जहर उतरत नइके लउकत हाल-फ़िलहाल. भोजपुरी गाइकी में समाइल प्रीति के उ कटहर के लासा अब बिसरा गइल बा. भोजपुरी गीतन से उ रस सूख गइल बा जवना में दुनिया के जवानी झूम-झूम जात रहे. उ मादकता, मिठास आ ओकर मांसलता जवन कबो खलील बोवले रहले बिला गइल बा.


(दयानंद पाण्डेय के ब्लॉग सरोकारनामा से साभार)

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1 Comment

  1. रामरक्षा मिश्र विमल

    अनमोल लेख । मो. खलील जी के स्वर में रिकॉर्डेड गीत इलाहाबाद के आकाशवाणी केंद्र से मिल सकता । दयानंद पांडेय जी आ डॉ. ओ. पी. सिंह जी से हमार आग्रह बा कि जो संभव होखे त उपरियावल जाव आ भोजपुरिका का माध्यम से हमनी के उपलब्ध करावल जाव । हम त मो. खलील जी के स्वर सुनेके बहुत दिन से बेचैन बानी। रामरक्षा मिश्र विमल

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