-डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
लागेला रस में बोथाइल परनवा
ढरकावे घइली पिरितिया के फाग रे.
धरती लुटावेली अँजुरी से सोनवा
बरिसावे अमिरित गगनवा से चनवा
इठलाले पाके जवानी अँजोरिया
गावेला पात पात प्रीत के बिहाग रे.
पियरी पहिरि झूमे सरसो बधरिया
पछुआ उड़ा देले सुधि के चदरिया
पिऊ पिऊ पिहकेला पागल पपिहरा
कुहुकेले कोइलिया पंचम के राग रे.
मधुआ चुआवेले मातल मोजरिया
भरमेला सब केहू छबि का बजरिया
भींजेले रंग आ अबीर से चुनरिया
गोरिया बुतावेलिन हियरा के आग रे.
धन्यवाद भाई सिंह जी.
विमल
बड़ी मनभावन लुभावन बा इ कबिता